दिल्ली / रायपुर : UPA के दौर में मनरेगा में भ्रष्टाचार आम नजारा था। देश के अन्य राज्यों की तरह इससे छत्तीसगढ़ भी अछूता नहीं रहा है,लेकिन NDA सरकार के कार्यकाल में मनरेगा की तर्ज पर प्रधानमंत्री मोदी की महती योजना जल-जीवन मिशन भी कम सुर्खियां नहीं बटोर रही है। गैर बीजेपी शासित राज्यों में पटरी से उतरी जल-जीवन मिशन योजना में भारी भरकम भ्रष्टाचार से भारत सरकार की साख दांव पर है, जल्द ही ठोस कदम नहीं उठाये गए तो ऐसे राज्यों में होने वाले चुनावों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ना खाऊंगा ना खाने दूंगा जैसा नारा ही बीजेपी को आईना दिखायेगा।
छत्तीसगढ़ तो इस मामले में बानगी पेश कर रहा है, हालत यह है कि कांग्रेस के कई बड़े नेता अब खुद भी तस्दीक करने लगे है कि मनरेगा के दौर की यादें तरो ताजा हो गयी हैं, इसी तर्ज पर ही जल-जीवन मिशन जरुरतमंदो तक पहुँच रहा है, बस लोक सभा चुनाव आने दीजिए, यह मोदी सरकार की स्मारक योजना साबित होगी। विरोधी दलों के कई वरिष्ठ नेताओं को भी पूरी तरह से उम्मीद है कि लोक सभा चुनाव 2024 करीब आते आते ग़ैर बीजेपी शासित राज्यों में जल जीवन मिशन और मनरेगा के बीच भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर कोई अंतर नहीं रह जायेगा, मनरेगा की तर्ज पर NDA का स्मारक भी नजर आएगा।
सूत्र बताते है कि गैर बीजेपी शासित सरकारें जल-जीवन मिशन को ही ठिकाने लगा कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भ्रष्टाचार के मामले में ही कटघरे में खड़ा करने की कार्य योजना को अंजाम देने में जुटे है। देश के कई राज्यों में जल-जीवन मिशन का जायजा लेने के बाद हितग्राही और जरूरतमंद तस्दीक कर रहे है कि पीएम मोदी का नारा “ना खाऊंगा ना खाने दूंगा” की संवेदनशीलता को ही अब आंच आने लगी है।
गैर NDA शासित राज्यों में जल-जीवन मिशन को मोदी के खिलाफ सुनियोजित हथियार के रूप में ढाला जा रहा है, कई इलाको में तो इसे ठप्प तक कर दिया गया है। राजस्थान में तो इस महती योजना को पटरी पर लाने की काफी गुंजाईश है लेकिन छत्तीसगढ़ में हालात बेकाबू है। आगे पाट पीछे सपाट की तर्ज पर जल जीवन मिशन मूर्त रूप ले रही है, यही मोदी सरकार के लिए मुसीबत का सबब साबित हो रहा है।
राजस्थान से ज्यादा खामियां छत्तीसगढ़ में सामने आ रही है, मौके पर जायजा लेने पर ग्रामीण बताते है कि जल-जीवन मिशन से संचालित जल प्रदाय चंद दिनों तक ही जारी रहा,अब पुनः उन्हें पानी के लिए दो-चार होना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ में सबसे ख़राब हालात आदिवासी बाहुल्य इलाको के ही है,यहां सैकड़ो गांव में पाइप लाइन टूट चुकी है।
कांग्रेस शासित इस राज्य के बस्तर और सरगुजा संभाग में जल-जीवन मिशन योजना की प्रगति से लोगो को आस जगी थी,लेकिन दोनों ही संभागो के गिने-चुने ही ऐसे गांव है,जहां इस योजना के लाभार्थियों में संतोष देखा जा रहा है। जबकि ज्यादातर गांव में आम शिकायते है कि कागजो में जल प्रदाय मिशन जोरो पर है,लेकिन जमीनी हकीकत कोसो दूर नजर आ रही है। बस्तर में दंतेवाड़ा,कांकेर,सुकमा,नारायणपुर,जगदलपुर ग्रामीण और बीजापुर जिले के सैकड़ो गांव में तो योजना के श्रीगणेश के उपरांत दो-चार महीने तक ही पानी मुहैया हो पाया था,लेकिन अब महीनो से जल-प्रदाय ठप्प है। प्रभावित आबादी तस्दीक कर रही है कि जो दावा जल-जीवन मिशन में किया गया था,वह झूठा साबित हो रहा है।
छत्तीसगढ़ में आदिवासी इलाको के अलावा मैदानी इलाको में भी जल-जीवन मिशन की कामयाबी सवालों के घेरे में है। राजनांदगांव और दुर्ग जिले में दर्जनों उप-संभागो में गुणवत्ताविहीन कार्यो को लेकर ढेरो शिकायते सरकारी टेबलों पर धूल खा रही है,ग्रामीण योजना के लाभ से वंचित होने का आरोप लगा रहे है,लंबित बिलो के भुगतान के तौर-तरीको,ठेको में गड़बड़ी की शिकायतों को लेकर ठेकेदार संगठनो के विरोध प्रदर्शन जारी है। बावजूद इसके दिल्ली में आयोजित कई पुरस्कार समारोह में कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों की पीठ थप-थपाई जा रही है।जल-जीवन मिशन की नब्ज टटोलने पर इसकी हकीकत भी सामने आ गई है।
बताते है कि सरकारी विज्ञापनों और PHE विभाग के दफ्तरो में नजर आ रहे जल-जीवन मिशन की जमीनी हकीकत में दिन-रात का अंतर है। केंद्रीय जांच दल योजनाओं की प्रगति की तस्दीक उन्ही इलाको में कर रहा है,जहां का खांका राज्य सरकार के चुनिंदा अधिकारी खींच रहे है। जल-जीवन मिशन के दायरे में लाभान्वित होने वाले कागजी आंकड़े और जमीनी हकीकत के बीच खींचा अंतर प्रधानमंत्री मोदी की शख्शियत को मुँह चिढ़ा रहा है।
भारत सरकार की महती योजना जल-जीवन मिशन के कार्यो की गुणवत्ता और कामयाबी का दारोमदार थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन पर निर्भर है। योजना की प्रगति की समीक्षा केंद्र और राज्य सरकार इसी TPT (थर्ड पार्टी टेंडर) के माध्यम से आंकलन करती है। इस योजना की नब्ज टटोलने के बाद हैरान करने वाला खुलासा हुआ है,इसी फार्मूले से देशभर में जल-जीवन मिशन योजना को मार्ग से भटकाने की दिशा तय की गई है।
जल-जीवन मिशन में राज्य सरकार खासतौर पर TPT के जरिए उन कंपनियों की एंट्री तय की जा रही है,जो चुनिंदा अधिकारियो की मंशानुरूप कागजी घोड़े दौड़ा सके।राजस्थान के बाद छत्तीसगढ़ में भी जल-जीवन मिशन की प्रगति की हकीकत और कागजी आंकड़ा दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति कर रहा है। इसकी बानगी थर्ड पार्टी अर्थात TPT की रिपोर्ट तय कर रही है,गैर बीजेपी शासित राज्यों में TPT के जरिए ही जल-जीवन मिशन योजना दम तोड़ रही है। बताते है कि कई राजनैतिक कारोबारियों के हाथो में TPT की कमान सौंप दी गई है, ऐसी कंपनियों को उपकृत करने के लिए जल-जीवन मिशन योजना से जुड़े जिम्मेदार अधिकारी भी जी जान से जुटे हुए है।
छत्तीसगढ़ के अकेले एकमात्र जिले चांपा-जांजगीर में ही सूरत गुजरात में रजिस्टर्ड एक कंपनी ग्रीन डिवाइस को लगभग 11 सौ करोड़ का TPT तश्तरी में रख कर सौंप दिया गया है। जबकि शिकायतकर्ता तस्दीक करते है कि बगैर जमीनी हकीकत परखे ऐसी ही कई गुमनाम कम्पनियाँ जल-जीवन मिशन में कार्यरत है। विभागीय सूत्र दावा कर रहे है कि ब्लैक लिस्टिंग प्रक्रिया के दौर से गुजर रही इस कंपनी की जांच प्रक्रिया रोक कर उसे दोबारा हजारो करोड़ का TPT हाथो-हाथ सौंपने के निर्देश दिए गए थे। उनके मुताबिक प्रदेश के लगभग सभी जिलों का यही हाल है,गुणवत्ता से समझौता कर बाजार भाव से कही ऊँची दरों पर जल-जीवन मिशन से जुड़े समस्त ठेके दागियों को सौंपे जा रहे है,नतीजतन यह महती योजना भ्रष्टाचार की शिकार हो रही है।
बताते है कि उन कंपनियों को ही राज्य सरकार एंट्री दे रही है,जो राज्य शासन की मंशानुरूप रिपोर्ट तैयार कर केंद्र सरकार के लिए दस्तावेजी खानापूर्ति में सहायक साबित हो सके। जल-जीवन मिशन के ही कई अधिकारी तस्दीक कर रहे है कि ठेको में पारदर्शिता के आभाव के चलते लीक से हटकर थर्ड पार्टी का चयन किया जा रहा है, इनके उपकृत होने से योजना ही खटाई में पड़ गई है।
छत्तीसगढ़ में जल-जीवन मिशन भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गया है,राज्य में गिने-चुने गांव कस्बो में ही पेयजल की आपूर्ति इस योजना के माध्यम से हो रही है,जबकि दूसरी ओर योजना की कामयाबी का ढिंढोरा पीटने में राज्य सरकार एड़ी चोटी का जोर लगा रही है, इसमें पीएम मोदी को निशाने पर लिया जा रहा है,राज्य सरकार की हिस्सेदारी सिर्फ ठेकेदारों के बिलो के भुगतान तक ही सीमित है,जबकि केंद्र सरकार के हिस्से में घर-घर पानी पहुँचाने का मोदी का वादा याद दिलाया जा रहा है।
जल-जीवन मिशन के हितग्राहियो द्वारा तस्दीक की जा रही है कि ठप्प पाइप लाइन वर्ष 2024 में होने वाले आम चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ पानी के बजाए आक्रोश का जहर उगलेंगे।
मनरेगा में व्यापक सुधार कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुरानी बोतल में नई शराब की तर्ज पर मनरेगा को NDA शासनकाल में भी जारी रखने में जोर दिया है। लेकिन अपनी दिलचस्पी वाली इस योजना में, भटकाव तय करने वाले कई जरुरी लीकेज बंद करने के मामलों में कामयाब होते नहीं दिख रहे है।
छत्तीसगढ़ में जल-जीवन मिशन योजना शुरूआती दौर से ही ब्लैक मनी उत्पादन परियोजना में तब्दील हो चुकी है,मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को केबिनेट की बैठक में लगभग 15 हजार करोड़ के ठेको को रद्द करने का पूर्व में फैसला लेना पड़ा है।बावजूद इसके भ्रष्टाचार की रोकथाम के मामले में राज्य सरकार फिसड्डी साबित हुई है।
छत्तीसगढ़ में केंद्र प्रदत योजनाओ की बदहाली का दौर जारी है,मनरेगा से ज्यादा ख़राब हालत जल-जीवन मिशन की है,NDA के दौर में इस योजना की बेरुखी गरीबो का कंठ सूखा रही है। पिछले दो वर्षों में कोविड -19 महामारी,लॉकडाउन तथा अर्थव्यवस्था में गिरावट के बावजूद, जल जीवन मिशन के कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है।
योजना का जायजा लेने पर पता चलता है कि चालू वित्तीय वर्ष के दौरान 2.06 करोड़ से अधिक ग्रामीण परिवारों को नल के पानी का कनेक्शन प्रदान किया गया है। वर्तमान में, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव, गोवा, हरियाणा, पुद्दुचेरी और तेलंगाना ‘हर घर जल’ वाले राज्य / केंद्र शासित राज्यों में इस योजना ने एक बड़ी आबादी को पेयजल की समस्या से मुक्त किया है,लेकिन छत्तीसगढ़ जैसे प्रदेश देश के लिए चुनौती बन गए हैं।
देश के 106 जिलों और 1.45 लाख गांवों में हर घर में नल के कनेक्शन से पानी की आपूर्ति हो रही है।यहां सुबह सवेरे कई घरो से हर-हर गंगे सुनाई दे रहा है,किसान मजदूर हो या फिर कामकाज में जाने वाली आबादी,समय पर पानी मुहैया होने से घर-घर मोदी कर रहा है। एक जानकारी के मुताबिक केंद्रीय बजट 2023-24 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम यानी मनरेगा योजना के लिए 60,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए है।
वित्त वर्ष 2021-22 में जल जीवन मिशन के लिए 50 हजार 11 करोड़ के मुकाबले करीब 10 हजार करोड़ रुपये इसे अधिक बताया जा रहा हैं। जबकि पिछले वित्त वर्ष में 3.25 करोड़ नए कनेक्शन देने का लक्ष्य रखा था। बताते है कि आम चुनाव से पहले एक बड़ी ग्रामीण आबादी को फायदा पहुँचाने के लिए संशोधित बजट अनुमान 45 हजार 11 करोड़ रुपये के मुकाबले तो यह करीब 15 हजार करोड़ रुपये अधिक रखा गया है।
जल जीवन मिशन 3.60 लाख करोड़ बजट देने का प्रावधान चालू वित्तीय वर्ष में किया गया है। बताते है कि राज्य सरकार व केंद्र सरकार द्वारा इसमें अलग-अलग बजट दिया जाएगा। योजना के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले देशभर के घर-घर में पीने के पानी के लिए जल कनेक्शन प्रदान किए जा रहे है,आंकड़े बताते है कि अभी तक कुल 3.27 करोड़ ग्रामीण परिवारों को वाटर कनेक्शन प्रदान किया गया है।
बहरहाल पेयजल आपूर्ति के मामलों में छत्तीसगढ़-राजस्थान के अलावा पश्चिम बंगाल,बिहार,तेलंगाना,पंजाब और केरल जैसे राजनैतिक रूप से सक्रिय राज्यों में भी जल-जीवन मिशन की प्रगति सुर्ख़ियों में है।