घोटालेबाज़ अफसरों को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर की रिव्यू पिटीशन , समाज कल्याण विभाग में एक हजार करोड़ से ज्यादा के घोटाले में किसे बचाना चाहती है , सीएम भूपेश बघेल सरकार ? 

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बिलासपुर /  छत्तीसगढ़ में एक हजार करोड़ से ज्यादा के समाज कल्याण घोटाले में शामिल अफसरों को बचाने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार ने अपनी साख दांव पर लगा दी है | भ्रष्ट्राचार के खिलाफ शंखनाद करने का दावा करने वाली मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार के रिव्यू पिटीशन से राज्य की जनता हैरत में है | उसे उम्मीद थी कि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के कार्यकाल में हुए घोटालों की जांच से कई भ्र्ष्ट अफसरों के चेहरों पर से नकाब हटेगा | लेकिन जनता उस समय मायूस हो रही है जब उसे पता पड़ रहा है कि अब खुद राज्य की कांग्रेस सरकार के चेहरे से नकाब हटने लगा है | राज्य सरकार के इस रुख से बिलासपुर हाईकोर्ट का गलियारा भी हैरत में है | यहां इस बात की चर्चा जोरो पर है कि आखिरकर छत्तीसगढ़ सरकार किस भ्रष्ट अफसर को बचाना चाहती है | दरअसल एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान बिलासपुर हाईकोर्ट ने समाज कल्याण विभाग में हुए अरबों के घोटाले में सीबीआई जॉच के निर्देश दिए है | इससे सरकारी महकमे में खलबली मच गई है | हाईकोर्ट ने प्रभावशील दो दर्जन दर्जन अफसरों के खिलाफ FIR दर्ज करने के निर्देश दिए है | इसमें राज्य के पूर्व चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड समेत आधा दर्जन से ज्यादा वरिष्ठ आईएएस अधिकारी और चिन्हित किये गए अन्य अफसर शामिल है | हाईकोर्ट ने सभी के खिलाफ सीबीआई को हप्तेभर के भीतर FIR दर्ज करने के लिए आदेशित किया है |   

हाईकोर्ट के इस फैसले से प्रदेश का सचिवालय महानदी और इंद्रावती भवन और  अन्य  प्रशासनिक मुख्यालय हिल गए है | सरकारी रकम की कागजों में बंदरबांट का यह ऐसा मामला है कि इसकी तुलना बिहार के चारा घोटाले से की जा सकती है | बुधवार को राज्य के बिलासपुर हाईकोर्ट में मौजूद लोग उस समय हैरत में पड़ गए जब उन्हें पता पड़ा कि घोटाले में शामिल अफसरों को दंडित करने के बजाय कांग्रेस सरकार ने उन्हें बचाने के लिए रिव्यू पिटीशन दायर की है | इस पिटीशन में कहा गया है कि याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जनहित याचिका दायर की | याचिका में दर्ज इबारतों में यह भी कहा गया है कि अफसरों का चरित्र हनन करने के लिए यह जनहित याचिका दायर की गई है | फ़िलहाल सरकार की ओर से दायर रिव्यू पिटीशन पर अदालत की ओर से अभी कोई फैसला नहीं आया है | लेकिन अदालत में इस बात की चर्चा जोरो पर है कि जनहित याचिका की लगभग ढाई साल तक चली सुनवाई के बाद राज्य सरकार याचिकाकर्ता पर दोषारोपण कर रही है | यह भी उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार इस याचिका के दायर होने के बाद लगभग 14  महीने का कार्यकाल पूरा करने जा रही है |    

इस घोटाले की कई सुर्ख़ियों में से एक यह है कि समाज कल्याण विभाग के तत्कालीन अफसरों ने सरकारी पैसों पर डाका डालने में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस अल्तमश कबीर को भी नहीं बख्शा था । राज्य में उनके मात्र दो दिवसीय प्रवास में वाहन व्यय के नाम पर 31 लाख रुपए सरकारी खाते से निकाल लिया। जबकि सीजेआई को प्रोटोकॉल के तहत सरकारी सुविधाएं प्राप्त होती है| चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया के ट्रेवल चार्ज का भुगतान कोई एनजीओ क्यों करेगा ? वह भी यह भुगतान चेक से करना बताया गया | इन बिलों को देखकर अदालत भी हैरत में पड़ गई | क्या सीजेआई के लिए पेट्रोल ख़र्चा 31 लाख कभी हो सकता है ? सीधे तौर पर कहा जा सकता है, अफसरों ने चीफ जस्टिस के नाम पर भी घोटाला किया था । यही नहीं डॉक्टर संजीव रेड्डी नाम के एक गुमनाम डाक्टर को एकमुश्त 24 लाख रूपये का भुगतान किया गया | डॉक्टर संजीव रेड्डी कौन है, उन्हें किस लिए भुगतान किया गया , इसे लेकर अफसरों ने चुप्पी साध ली | 

राज्य के पूर्व एवं तत्कालीन चीफ सिकरेट्री अजय सिंह ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान पिछले साल हाईकोर्ट में 500 पन्नों की रिपोर्ट बतौर जवाब सौंपी थी। इस रिपोर्ट में चीफ सिकरेट्री ने स्वीकार किया है इस मामले में लगभग 200 करोड़ रुपए की गड़बड़ी हुई है। जांच रिपोर्ट में उन्होंने हाईकोर्ट को बताया कि संस्थान में 21 लोगों को अधिकारी, कर्मचारी बताते हुए उनका वेतन निकाला गया। जबकि वास्तव में वहां एक कर्मचारी काम करता नहीं पाया गया। दरअसल  अफसरों ने कागजों में एनजीओ का गैर-क़ानूनी ढंग से गठन कर अरबो रूपये अपनी तिजोरी में डाल लिए थे | तत्कालीन चीफ सिकरेट्री अजय सिंह ने अदालत में यह भी कहा है कि चार करोड़ रुपए समाज कल्याण के अफसरों ने बिना अनुमोदन लिए प्रायवेट लोगों के खातों में ट्रांसफर कर दिया था।


दरअसल जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता कुंदन सिंह ने हाईकोर्ट में जस्टिस मनिंद्र मोहन श्रीवास्तव की कोर्ट में घोटाले से जुड़े कई दास्तावेज पेश किये थे | केस की गंभीरता को देखते जस्टिस श्रीवास्तव ने उसे तत्कालीन चीफ जस्टिस अजय त्रिपाठी को भेज दिया। चीफ जस्टिस और जस्टिस प्रशांत मिश्रा के डबल बेंच ने इस याचिका को पीआईएल के तहत छत्तीसगढ़ के चीफ सिकरेट्री से जांच कर पूरी रिपोर्ट मांगी थी। राज्य सरकार ने प्रकरण की जांच के लिए जीएडी सिकरेट्री डा0 कमलप्रीत सिंह को जांच अधिकारी नियुक्त किया था | लेकिन, याचिकाकर्ता ने सीएस के बजाए सचिव से जांच कराने पर आपत्ति की |  सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाते हुए सीएस को तलब किया , और उन्हें ही जांच करके रिपोर्ट सौंपेने के निर्देश दिए थे ।  तत्कालीन सीएस अजय सिंह ने पिछले साल विधानसभा चुनाव के दौरान अक्टूबर माह में कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंपी | उन्होंने कोर्ट को बताया कि  राज्य श्रोत निःशक्त जन संस्थान नाम की कोई संस्था का वास्तव में अस्तित्व नहीं है।

दरअसल घोटाले को अंजाम देने के लिए दिव्यांगों के कल्याण के लिए यह कागजों में बनाया गया एक एनजीओ था। सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि, इस काग़ज़ी एनजीओं को केंद्र सरकार से सीधे अरबों का अनुदान मिला था । इस रकम को लूटने में समाज कल्याण विभाग के अफसरों ने कोई कसर बाकि नहीं छोड़ी थी । एनजीओं का व्यय दिखाने के लिए कागजों में एक ही मशीन को हर साल खरीदी करना दर्शाया गया | इसके एवज में 30 से 35 लाख रुपए निकाले गए। पड़ताल में यह सामने नहीं आया कि अफसरों ने वे कौन सी मशीनें खरीदी थी , और कहाँ-कहाँ उसका उपयोग किया गया | इस घोटाले में जिन अफसरों के खिलाफ सीबीआई को कार्रवाई के निर्देश दिए गए है उनमे तत्कालीन चीफ सेक्रेटरी विवेक ढांड , दो एसीएस क्रमश एम.के राउत और बी.एल अग्रवाल समेत अन्य पांच आईएएस शामिल है | इनके अलावा योग आयोग के अध्यक्ष एमएल पांडे, स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव आईएएस आलोक शुक्ला, आईएएस पीपी सोती, सतीश पांडे, राजेश तिवारी, अशोक तिवारी, हरमन खलको, एमएल पांडे और पंकज वर्मा शामिल हैं |