ऐसी मनाई जाती है होली, कोई सीखे इनसे, चर्चा में छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा

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रायपुर/कवर्धा। छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा इन दिनों चर्चा में हैं। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के बीच होली का त्यौहार उमंग और उल्लास के साथ देश-प्रदेश भर में मनाया जा रहा है। इस मौके पर रोजाना हजारों लोग नेताओं से मेल मुलाकात कर रहे हैं। कोई अपनी कठिनाइयों से नेताओं को अवगत करा रहा है तो कोई बधाइयां देने के लिए जुटा है। आमतौर पर तीज त्यौहार के मौके पर नेताओं की चौखट पर जनता का जमावड़ा देखने को मिलता है यह प्रजातंत्र का अंदाज है।छत्तीसगढ़ के गृहमंत्री विजय शर्मा भी इससे अछूते नही हैं।उनके घर आंगन से लेकर दफ्तर तक होली का हर्षोल्लास देखने को मिल रहा है।

नेताजी के निजी मित्रों से लेकर समर्थकों का हुजूम उनके इर्द गिर्द नजर आ रहा है। इस भीड़ में वो लोग भी दिखाई दे रहे हैं जिनके चेहरे पर ना तो होली की कोई उमंग दिखाई दे रही थी और ना ही उनके घर में राशन पानी का कोई इंतजाम था। फिर भी वे मंत्री जी से होली की आस लगाए बैठे थे।ऐसे पीड़ितों की विजय शर्मा से मुलाकात वाकई यादगार रही,उसने अपना रंग दिखाया।संवेदनशीलता का ऐसा परिचय पीड़ितो को अभी तक नही हुआ था। लेकिन इस दिन जो हुआ वो वाकई हैरत भरा था। मेल मुलाकात के दौरान फिर जो हुआ उसने किसी विजय शर्मा का नही बल्कि उस पद की गरिमा को बढ़ा दिया जिस गृहमंत्री पद की कुर्सी पर विजय शर्मा काबिज हैं। पीड़ितो की जुबानी हकीकत भरी थी।

छत्तीसगढ़ में इन दिनों मौसम प्रजातंत्र के उस उत्सव का है,जिसकी छटा से लोकतंत्र निखर रहा है। लोकतंत्र का पर्व चुनाव, इसके चलते ही हम अपनी सरकार चुनते हैं। इस पर्व की बेला में रंगोत्सव का खासा महत्व है।राजनेताओं के जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं जब उनकी संवेदनशीलता से उनकी शख्शियत का पता चलता है। शख्शियत के ही कारण नेताओं की छवि जनता के बीच निखर कर आती है वरना तो नेताओं के क्या कहने ? आश्वासन दो और पीड़ितों को चलता करो, रोज नए मिलेंगे, कठिनाइयों का कोई अंत है क्या ? यह वाक्या उस दिन का है, जब होली के त्यौहार को लेकर गहमागहमी थी, त्यौहार सिर पर था और सरकारी दफ्तरों में ताला लगना शुरू हो गए थे।होली की रंगत के बीच दफ्तरों से कर्मियों का नदारद होना भी शुरू हो गया था। हर कोई अपने घरों का रुख कर रहा था।इस बीच श्रमिकों और कर्मियों का एक प्रतिनिधि मंडल गृहमंत्री विजय शर्मा से रू-ब-रू हुआ था ।पीड़ित मनरेगा कामगार थे।

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पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने उनकी सुध तक नही ली थी। फिर नई सरकार के गठन से पीड़ितों को आशा की उम्मीद नजर आ रही थी। वे पूरी मुस्तैदी के साथ गृहमंत्री के बंगले पर डटे थे।किसी का 6 माह तो किसी का 3-4 माह से वेतन लंबित था। मनरेगा कर्मचारी खासकर तकनीकी सहायक बड़ी बेरुखी और निराशा के साथ जता रहे थे कि पूर्ववर्ती भू-पे सरकार के कार्यकाल में ना तो कभी समय पर भुगतान किया गया था और ना ही अब दूर-दूर तक लंबी भुगतान की कोई उम्मीद नजर आ रही है। उन्होंने बताया कि जेब में पैसा नही होने से त्यौहार तो क्या परिवार में भूखे मरने की नौबत है, अब तो होली का त्यौहार भी मुंह बांए खड़ा है। इतना सुनते ही गृहमंत्री विजय शर्मा चिंता में डूब गए।

बताते हैं कि पीड़ितों की भीड़ के बीच एक शख्स ने कहा था कि “मंत्री जी भले ही होली पर आम लोग रंग गुलाल खेलें, मिठाईयां खाएं लेकिन आज शाम से हमारे घर में चूल्हा तक नही जलने वाला है। उनकी जेब में फूटी कौड़ी भी ना होने से हालात पस्त है, कुछ कीजिए ? बताते हैं कि पीड़ितों की फरियाद सुनकर गृहमंत्री विजय शर्मा का चेहरा घोर आश्चर्य में पड़ गया था। उन्हें उम्मीद ना थी कि तीज त्यौहारो के मौके पर कई विभागों के श्रमिकों को समय पर वेतन नही मिल पाता है। बताते हैं कि मंत्री जी ने पीड़ितों की व्यथा सुनते ही अपने जेब से मोबाइल फोन निकाला और जुट गए उनके आंसू पोछने,पीड़ितों के लंबित वेतन भुगतान को लेकर उन्होंने सरकारी प्रक्रिया का हालचाल जाना और फौरन मामले के निराकरण के निर्देश दिए। इसके साथ ही मंत्री जी ने ढांढस बंधाया और पीड़ितों को सीधे घर जाने की हिदायत दी। बताते हैं कि उनके घर पहुंचने से चंद मिनटों पहले ही वेतन भुगतान की आस जग गई।इसे जानकर पीड़ितों की बांछे खिल गई।

पीड़ितों के मोबाइल फोन पर मंत्रालय से लेकर पंचायत और ग्रामीण विकास विभाग के अफसरों के फोन घनघनाने लगे। सरकारी दफ्तर में लंबे अरसे से धूल खा रही मनरेगा कर्मचारियों के वेतन और मानदेय की फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल का सफर तय करने लगी।आखिरकार वेतन भुगतान का मामला अंजाम तक पहुंचा।मनरेगा आयुक्त ने कर्मचारियों के लंबित भुगतान को स्वीकृत करते हुए भविष्य में समय पर कर्मचारियों को वेतन देने का वादा किया। इसके साथ ही उनके खातों में वेतन की राशि भी हाथों-हाथ सौंप दी गई।

होली का असली तोहफा तो पीड़ितों को गृहमंत्री विजय शर्मा ने दिया था। बताते हैं कि दुसरे दिन शाम ढलने से पहले ही दिल से धन्यवाद देने के लिए कई पीड़ित मंत्री जी को धन्यवाद देने उनके बंगले में पहुंचे थे।श्रमिकों और मजदूरों के घरों में होली की खुशियां देखते ही देखते बिखर गई थी। मौके पर मौजूद पीड़ित मंत्री जी की संवेदनशीलता से गदगद थे। आंखो में आंसू भरे कई नौजवान विजय शर्मा को दिल से गले लगा रहे थे। उन्हें बड़े दिनों बाद ऐसा कोई संवेदनशील नेता नज़र आया था। जिसकी शख्शियत से गृहमंत्री की कुर्सी की गरिमा फलीभूत होती दिखाई दी।

इस हुजूम में शामिल मनरेगा कर्मचारी कुलदीप, छन्नू, अनिल, सोहन और दिनेश ने न्यूज टुडे संवाददाता से चर्चा करते हुए अपनी आप बीती सुनाई। उन्होंने बताया कि संवेदनशीलता का ऐसा नजारा कम ही देखने को मिलता है। वरना तो कई नेताओं और अफसरों की चौखट पर नाक रगड़ने के बावजूद कानूनी रूप से देय भुगतान के मिलने के आसार नजर नही आ रहे थे। आचार संहिता का हवाला देकर नौकरशाही ने भी अपना मुंह मोड़ लिया था। जबकि मामला सरकारी प्रक्रिया से जुड़ा था ना कि चुनाव प्रचार से। पीड़ितों के बच्चे बिलख रहे थे, परिवार के सामने खाने पीने के लाले पड़े थे, ऐसे समय मंत्री विजय शर्मा की संवेदनशीलता ने अपना रंग दिखाया।