बिलासपुर। छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों के दामन में लगते दागो से जनता हैरत में है। बताते है कि कई अधिकारी सत्ता के कामकाज में इतने रम चुके है कि आम जनता से सीधे मुँह बात करना तो छोड़, जन प्रतिनिधियों तक की नहीं सुनते। राज्य में नौकरशाही जनता और सिस्टम पर ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधियों पर भी भारी पड़ रही है। बताते है कि अब तो हद हो चुकी है, मुख्यमंत्री के करीबी गिने जाने वाले कई IAS और IPS अफसरों ने तो अदालत तक की सुनना बंद कर दिया है। उन्हें अदालते कई बार बुलाती रहती है, ताकि पीड़ितों को जल्द न्याय मिल सके। लेकिन साहब को फर्क ही नहीं पड़ता। उधर अदालती मामलो से अफसरों के मुँह मोड़ने के चलते पीड़ितों की कठिनाइयां कम होने का नाम नहीं लेती। उनका समय और धन दोनों बर्बाद होता है। हालांकि अब ऐसे मामलो में अदालत सख्त रुख अख्तियार कर रही है। ऐसे ही एक मामले में अदालत का आदेश सुर्ख़ियों में है।
बताते है कि अखिल भारतीय सेवाओं के कई अफसर हाईकोर्ट तक के आदेश को एक कान से सुनकर दूसरे कान से बाहर निकालने की प्रवर्ति को अपनी कार्यप्रणाली का अभिन्न अंग मानते है। प्रदेश के कई अफसरों ने ये नया वर्क कल्चर पिछले दो-तीन सालो में अपना लिया है। नतीजतन, जनता को दरकिनार कर सत्ता की मदहोशी में अदालतों की अवमानना के कई प्रकरण अचानक सामने आ रहे है। भले ही अदालत से वारंट क्यों न निकल जाये। कई अधिकारी न्याय की राह में बाधा डाल रहे है। इंसाफ के मामलो में उनकी सुस्ती से अदालतों में लंबित मुकदमो का बोझ बढ़ रहा है। वही पीड़ितों की सुनवाई के लिए सिर्फ अदालत का ही रास्ता शेष बचा है, लेकिन यहां भी अधिकारी अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के लिए कोई रूचि नहीं ले रहे है।
यह भी बताते है कि छत्तीसगढ़ कैडर के कई अफसर कभी, नाफरमानी और लापरवाही तो कभी अदालत की अवमानना के मामलों में न्यायधिशो तक से माफ़ी मांग चुके है। बताते है कि कई मौको पर कोर्ट से कुछ एक अफसरो को जमानत तक लेनी पड़ी है। इस कड़ी में अब अखिल भारतीय सेवाओं के 2 नए अफसरों का नाम और जुड़ गया है।
अदालत की अवमानना के एक नए मामलों में उच्च न्यायालय बिलासपुर ने छत्तीसगढ़ कैडर के 2 वरिष्ठ IAS अधिकारियों को सशरीर अदालत में पेश करने के आदेश दिए है। कई नोटिस के बावजूद अदालत से कन्नी काटने वाले ये दोनों अफसर भी खूब सुर्खियां बटोर रहे है। दरअसल, अफसरों को सशरीर पेश होने के अलावा अदालत ने उनके खिलाफ जमानती वारंट भी जारी किया गया है। वो भी पूरे 25-25 हजार का, हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए अवमानना के इस मामले में राज्य के दोनों IAS अफसरों पर कड़ी टिप्पणी भी की है।
छत्तीसगढ़ सामान्य प्रशासन विभाग और राजस्व विभाग के दोनों अधिकारियों के खिलाफ अदालत से जारी जमानती वारंट 25-25 हजार का बताया जाता है। कोर्ट ने दोनों IAS अफसरों को 24 मार्च को होने वाली सुनवाई में सशरीर उपस्थित होने का सख्त आदेश दिया है। उधर छत्तीसगढ़ सरकार के इतने वरिष्ठ IAS अफसरो के खिलाफ ही कोर्ट की अवमानना का जमानती वारंट जारी होने से लाखो कर्मचारी – अधिकारी हैरत में है।
जानकारी के मुताबिक अधिकारियों को सशरीर कोर्ट में पेश होने से पहले हाईकोर्ट ने सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग और सचिव राजस्व विभाग को डिप्टी कलेक्टर पद की सीनियरिटी के मामले में अवमानना याचिका पर नोटिस जारी किया था। इसके बावजूद भी अधिकारियो ने पीड़ितों की सुध तक नहीं ली। जानकारी के मुताबिक रिट याचिका डिप्टी कलेक्टर शंकरलाल सिन्हा ने हाईकोर्ट में अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय और घनश्याम शर्मा के माध्यम से दायर की थी।
बताते है कि साल 2016 में तहसीलदार के पद पर पदस्थ शंकरलाल सिन्हा के साथ कार्यरत तमाम तहसीलदारों का प्रमोशन डिप्टी कलेक्टर के पद पर किया गया था। लेकिन याचिकाकर्ता शंकरलाल सिन्हा के खिलाफ विभागीय जांच लंबित होने की वजह से उन्हें डिप्टी कलेक्टर के पद पर प्रमोशन से वंचित कर दिया गया था। जबकि अगस्त 2018 में विभागीय जांच में शंकरलाल सिन्हा दोषमुक्त पाए गए थे।
पीड़ित ने दोषमुक्ति के बाद वैधानिक कार्यवाही के लिए वरिष्ठ अधिकारियों से कई बार गुहार लगाई थी। लेकिन वरिष्ठ अफसरों के कानों में जूं तक नहीं रेंगी। आखिरकार पीड़ित ने हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की। इसमें साल 2016 से अपने सहकर्मियों के समान ही डिप्टी कलेक्टर के पद पर सीनियरिटी की मांग की गई।बताते है कि अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद छत्तीसगढ़ शासन को 4 माह के भीतर प्रकरण का निराकरण किए जाने के निर्देश दिए थे।
उच्च न्यायालय ने रिट याचिका पर फैसला देते हुए मुख्य सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग एवं सचिव राजस्व विभाग को 4 माह के भीतर मामले का नियमानुसार निराकरण किए जाने का साफ साफ निर्देश दिया गया था। लेकिन 4 माह से कई माह बीत जाने के बाद भी जब मामले का निराकरण राज्य शासन ने नहीं किया, तब शंकरलाल सिन्हा ने अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय और घनश्याम शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की।
बताते है कि मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने अफसरों को अदालत की अवमानना के दायरे में पाया। जबकि कोर्ट ने नामजद अधिकारियों को पिछले साल 24 अगस्त को अवमानना का नोटिस जारी किया था।याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट को बताया कि 6 महीने बाद भी सचिव, सामान्य प्रशासन विभाग और सचिव राजस्व विभाग ने अपना जवाब तक अदालत को देना मुनासिब नहीं समझा।
बताते है कि सुनवाई के दौरान दोनों IAS अधिकारियो के रुख पर उच्च न्यायालय ने कड़ी नाराजगी भी जाहिर की है। याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन सुनिश्चित कराने को लेकर नौकरशाहो की गंभीरता से अदालत को अवगत कराया। बताया जाता है कि मामले में सरकार के वरिष्ठ अधिकारियो के रुख पर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर की है। इसके उपरांत अदालत ने राज्य में IAS अफसरों द्वारा हाईकोर्ट के आदेशों की लगातार नाफरमानी और अवमानना पर चिन्ता व्यक्त की है।
कोर्ट ने कठोर निर्देश देते हुए, सचिव-सामान्य प्रशासन एवं सचिव-राजस्व विभाग के खिलाफ 25,000 – 25,000 रूपये का जमानती वारंट जारी किया है। हाईकोर्ट द्वारा सचिन-सामान्य प्रशासन एवं सचिव-राजस्व विभाग को दिनांक 24 मार्च 2023 को अदालत के समक्ष सशरीर उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है। सूत्र बताते है कि इसी तरह के अन्य दो मामलो में पीड़ितों द्वारा अदालत के फैसले का इंतजार हो रहा है।