प्रयागराज/ कोलकाता /इंदौर, वाराणसी / हरिद्वार – देश के सभी राज्यों में मकर संक्रांति का पर्व अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। लोग इस दिन पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर पुण्य स्नान करते हैं। कोरोना काल पर मकर संक्रांति और पोंगल का पर्व भारी पड़ा है। आस्था का सैलाब ऐसा उमड़ा है कि कोरोना तेल लेने चला गया। पवित्र नदियों से लेकर समुद्र तक भारी भीड़ जुटी है। कहा जाता है कि सारे तीरथ बार – बार, गंगा सागर एक बार। कोलकाता के कालीघाट से लेकर गंगा सागर में जन सैलाब है। पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस बार मकर संक्रांति का रंग बेहद चमकदार है। गंगा सागर द्वीप पहुंचे श्रद्धालु यहाँ डुबकी लगाकर पुण्य के भागीदार बन रहे है।गंगासागर स्थित कपिलमुनि आश्रम के महाराज संजय दास ने न्यूज़ टुडे से कहा कि कुंभ के बाद यदि कोई इतना बड़ा मेला लगता है, तो वह गंगासागर मेला ही है।’
उन्होंने कहा कि गंगा पवित्रतम नदी है, जबकि समुद्र की अलग महिमा है। समुद्र में सारी नदियां आकर लीन हो जाती हैं। यह स्थान अपने आप में विशिष्ट महत्व रखता है। ऐसे में यहां पर जो भी पुण्य स्नान करेगा, वह अवश्य पुण्य का भागी होगा। संजय दास महाराज ने कहा कि जहां तक कोविड का सवाल है, इसमें शक नहीं कि प्रशासन की व्यवस्था हर बार से ज्यादा अच्छी है।
उधर कालीघाट में भी सुबह से भक्तों का ताँता लगा हुआ है। ‘जय काली कलकत्ते वाली तेरा वचन ना जाये खाली’ का नारा जयघोष हो रहा है। कालीघाट काली मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है। कालीघाट काली मंदिर पश्चिम बंगाल के कोलकाता शहर के कालीघाट में स्थित देवी काली का प्रसिद्ध मंदिर है। कोलकाता में भगवती के अनेक प्रख्यान स्थल हैं। परंपरागत रूप से हावड़ा स्टेशन से 7 किलोमीटर दूर काली घाट के काली मंदिर को शक्तिपीठ माना जाता है, जहाँ सती के दाएँ पाँव की 4 उँगलियों (अँगूठा छोड़कर) का पतन हुआ था। यहाँ की शक्ति ‘कालिका’ व भैरव ‘नकुलेश’ हैं। इस पीठ में काली की भव्य प्रतिमा मौजूद है, जिनकी लंबी लाल जिह्वा मुख से बाहर निकली है। मंदिर में त्रिनयना माता रक्तांबरा, मुण्डमालिनी, मुक्तकेशी भी विराजमान हैं। पास ही में नकुलेश का भी मंदिर है। यहाँ भी कोरोना को धत्ता बता कर भारी भक्त जुटे है। नजारा देखकर लग रहा है कि कोरोना हार चूका है।
इधर मकर संक्रांति के पावन मौके पर गंगा के घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी है। प्रयागराज में संगम पर श्रद्धालु संगम की पावन धारा में आस्था की डुबकी लगा रहे है। प्रयागराज में घने कोहरे और कड़ाके की ठंड ने मुश्किल थोड़ी बढ़ा दी है। बावजूद इसके संगम में भारी भीड़ जुटी है। गंगा के सभी घाट में त्रिवेणी के पावन जल में भक्त डुबकी लगा रहे हैं। इस मौके पर तिलकुट, चूड़ा, दही और गुड़ खाते हुए लोगों को देखकर आस्था का रंग साफतौर पर नजर आ रहा है।
कोरोना महामारी के बीच मकर संक्रांति पर स्नान के साथ ही हरिद्वार महाकुंभ का भी श्रीगणेश हो गया है। आज सुबह-सुबह लोगों ने मकर संक्रांति के मौके पर हरिद्वार में स्नान किया। गंगा में आस्था की डुबकी लगाने के लिए उत्तर भारत से पांच लाख से अधिक श्रद्धालुओं के हरिद्वार पहुंचने की संभावना है। इस बार कुंभ मेला 48 दिन का ही है। ग्रहों की चाल के चलते इस बार कुंभ 12 के बजाए 11वें साल में पड़ रहा है। 83 साल बाद पहली बार 12 साल से कम समय में कुंभ का योग बना है। स्नान के लिए हरिद्वार में बड़े स्तर पर व्यवस्था की गई है। कुंभ पर चार शाही स्नान होंगे। पहला शाही स्नान महाशिवरात्रि के अवसर पर 11 मार्च को होगा। दूसरा मौनी अमावस्या (11 फरवरी), तीसरा बसंत पंचमी (16 फरवरी) और आखरी माघ पूर्णिमा (27 फरवरी) होगा। जबकि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (13 अप्रैल) और रामनवमी (21 अप्रैल) साल के इन छह दिन पर भी स्नान करने के अनुष्ठान को निभाने की परंपरा है।
लोगों का उत्साह चरम पर दिखाई दे रहा है। जानकार बताते है कि सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के साथ ही खरमास का समापन हो जाता है। और शुभ कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इससे पहले बुधवार को उत्तराखंड हाई कोर्ट ने हरिद्वार महाकुंभ मेले के इंतजामों से असंतुष्ट होकर राज्य सरकार से कहा कि वो 22 फरवरी तक अधूरे पड़े सभी कामों को पूरा कराए | हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान अधिकारियों ने हाई कोर्ट को बताया कि 85 फीसदी काम पूरे कर लिए गए हैं और बाकी काम युद्धस्तर पर चल रहे हैं।
इधर वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर में मकर संक्रांति पर पहली बार खिचड़ी उत्सव का आयोजन किया गया है। मकर संक्रांति के पर्व पर बाबा विश्वनाथ को 108 किलो खिचड़ी का भोग लगाकर प्रसाद का भक्तों में वितरण किया जाएगा। विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालक अधिकारी एसएन त्रिपाठी ने न्यूज़ टुडे से कहा कि गोरखपुर के गोरक्षनाथ मंदिर की तर्ज पर यहां भी खिचड़ी उत्सव मनाने की तैयारी है। ज्ञानवापी परिसर में यज्ञशाला के पास खिचड़ी पकाकर दोपहर भोग में बाबा को चढ़ाई जाएगी। बाद में वहीं पर खिचड़ी भक्तों में बांटी जाएगी। काशी के तमाम घाटों पर देश – विदेश से भारी तादात में भक्त जुटे है। यहाँ भी अहसास हो रहा है कि अब देश से कोरोना की विदाई की बेला है। भक्तों के उत्साह को देखकर कोरोना संक्रमण तेल लेने चला गया।