दिल्ली / रायपुर: द्वारिका पीठ और ज्योतिर्मठ पीठ के जगद्गुरुओं ने उस विवाद का पटाक्षेप कर दिया है,जिसके चलते नई लोक सभा में दंड विधान के प्रतीक के रूप में सेंगोल की स्थापना की गई है। इसके साथ ही यह सेंगोल अग्नि परीक्षा के दौर से गुजर रहा था। लेकिन अब उसने कामयाबी हासिल कर ली है। धर्म और अध्यात्म की पीठ बताती है कि सत्ता को काबू में रखने के लिए “दंड विधान” का प्रतीक सेंगोल की स्थापना जरुरी है।
शंकराचार्य बताते है कि इसके बगैर सत्ता पर नियंत्रण की भावना का लोप हो जाता है,राजा खुद को दंड विधान से ऊपर समझने लगता है। इसलिए राज सत्ताओ को धर्मदंड की स्थापना तो करनी ही चाहिए। उन्होंने इसे सरकार का अच्छा कदम बताया।
हालांकि शंकराचार्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और किसी भी राजनीतिक दल का नाम लेने से परहेज करते रहे,लेकिन मुक्तकंठ से उन्होंने सेंगोल की स्थापना किए जाने को सरकार का अच्छा कदम बताया।
रायपुर में न्यूज़ टुडे नेटवर्क से चर्चा करते हुए ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती देश की मौजूदा संवैधानिक स्थिति से जहां बिफरे हुए नजर आए,वही उन्होंने नई लोक सभा में संगोल की स्थापना को जायज और धर्म शास्त्रों के अनुकूल बताया। उन्होंने कहा कि लोक सभा में दर्ज धार्मिक वक्तव्य और संविधान में दर्ज इबारत दोनों में काफी फर्क है,एक ओर जहां संविधान धर्म निरपेक्ष है,वही संसद में सनातनी हिन्दू धार्मिक ग्रंथो के कई दोहे-चौपाई और वक्तव्य दर्ज है। देंखे वीडियो….
उन्होंने सेंगोल का समर्थन करते हुए कहा कि उस दंड के अनुरूप शासन भी होना चाहिए,वर्ना यह सिर्फ प्रतीक बन कर रह जाएगा। ऐसे उद्गार व्यक्त करते हुए द्वारिका पीठ के शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि राज सत्ता और धर्म सत्ता दोनों के सामंजस्य से ही राजकाज की पुराणी परंपरा है,नई संसद में संगोल के आने से राजनेताओ में धर्म के प्रति आदर भाव उत्पन्न होगा।
शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि धर्म दंड का धारण करना न्याय और विश्वास कायम करता है। उनके मुताबिक राज सत्ता को इसका पालन भी सुनिश्चित करना होगा। उन्होंने बगैर किसी टीका-टिप्पणी के सेंगोल के स्थापना को सरकार का बेहतर कदम बताया। देंखे वीडियो….
रायपुर में विभिन्न धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पहुंचे पूरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने भी मुक्तकंठ से प्रशंसा की। चंद घंटो के प्रवास पर रायपुर पहुंचे स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने सेंगोल की स्थापना का पुरजोर समर्थन किया। रेल मार्ग से पूरी रवाना होने से पूर्व धार्मिक रीति रिवाजों से इसे पुनर्स्थापित किए जाने के फैसले को देश हित में बताया।
गौरतलब है कि माता कौशल्या की नगरी में दस्तक देते ही भले ही राजनीतिक टीका टिप्पणी से शंकराचार्य बचते नजर आए, लेकिन एक स्वर में उन्होंने इसे सरकार का जायज फैसला करार देने में शास्त्रों में दर्ज कई घटनाओ का वर्णन भी किया।