छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में फिर बड़े घोटाले की तैयारी, घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट की खरीदी के बाद डायल-112 एंबुलेंस के टेंडर में बड़ा खेल आया सामने, वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में, CBI में चर्चित ZHL को 140 करोड़ का टेंडर तस्तरी में परोस कर देने की तैयारी, गृह मंत्री के रुख का इंतज़ार……  

0
179

रायपुर: छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में जरुरी वस्तुओं की खरीदी और सार्वजनिक सेवाओं को उपलब्ध कराने को लेकर एक के बाद एक बड़े घोटाले सामने आ रहे है। हाल ही में 13 करोड़ के घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट की खरीदी और भुगतान को लेकर मचे बवाल के बावजूद एक नए घोटाले की सुगबुगाहट तेज हो गई है। ताजा मामले का खुलासा उस वक़्त हुआ जब डायल-112 एम्बुलेंस के टेंडर को एक दागी कंपनी के नाम करने के लिए कतिपय अफसरों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी। हालांकि टेंडर जारी होने के पहले ही मामले के खुलासे से पुलिस मुख्यालय में हड़कंप है। सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि मामला संज्ञान में आने के बाद गृह मंत्री विजय शर्मा ने अधिकारियों से वास्तु – स्थिति स्पष्ट करने के लिए कहा है, गृह मंत्री के रुख का इंतज़ार किया जा रहा है।

बताया जाता है कि जिस कंपनी को करोड़ो का यह टेंडर हाथों-हाथ तस्तरी में रखकर पेश किया जा रहा है, उस कंपनी के खिलाफ CBI जांच में जुटी है। राजस्थान में सीबीआई में दर्ज FIR के तथ्यों को छिपाते हुए इस कंपनी ने छत्तीसगढ़ में टेंडर हासिल करने की बुनियाद रख दी थी। इस कार्य में कई जिम्मेदार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठ रहे है। यह भी बताया जाता है कि जिस ZHL कंपनी के पक्ष में टेंडर दिए जाने की कवायत जोरो पर है, उसके खिलाफ मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे कई प्रदेशों में 70 से अधिक गंभीर मामलों की लंबी फेहरिस्त है। 

सूत्रों के मुताबिक निष्पक्ष और पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया का पालन करने के बजाय पुलिस मुख्यालय ने ZHL के पक्ष में विशेष दिलचस्पी दिखाई है। एक शिकायत में दावा किया गया है कि पुलिस मुख्यालय में पहले ही तय कर लिया था कि टेंडर ZHL के पक्ष में ही देना है। इसके लिए टेंडर प्रक्रिया को गैरकानूनी रूप से अंतिम समय में 2 घंटे तक बढ़ा दिया गया था। इस अवधि में केवल ZHL और BVG नामक दो कंपनियों के टेंडर अनधिकृत समय पर स्वीकार किये गए। 

टेंडर की शर्तों के मुताबिक 75 करोड़ का एक टेक्निकल कार्य होने पर ही कंपनी योग्य मानी जाएगी। इसी शर्त के आधार पर TCIL को टेंडर प्रक्रिया से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। बताते है कि दस्तावेजों में इस कंपनी ने वर्क ऑर्डर नहीं संलग्न किया था। शिकायत में अब यह जानकारी सामने आई है कि ZHL कंपनी के दस्तावेजों में ऐसा कोई वर्क ऑर्डर संलग्न नहीं है, इस कंपनी को एक ‘सीए सर्टिफिकेट’ के आधार पर एलिजिबल कर दिया गया है।

बताया जाता है कि ZHL कंपनी को फायदा पहुंचाने के लिए प्रतिस्पर्धा में शामिल IT सेक्टर की दिग्गज सरकार के उपक्रम टेली-कम्युनिकेशन कंसल्टेंट इंडिया लिमिटेड (TCIL) को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। जानकारी के मुताबिक प्राइज बिड में भी बड़ी गड़बड़ी सामने आई है। करोड़ो के इस टेंडर में 5 कंपनियों ने हिस्सा लिया था। इसमें TCIL और BVG को टेक्निकल ग्राउंड में रिजेक्ट कर दिया गया। बताया जाता है कि डायल-112 एम्बुलेंस सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पुलिस मुख्यालय ने जरुरत से ज्यादा तेजी दिखाते हुए पूरी टेंडर प्रक्रिया को विवादित बना दिया है।

जानकारों के मुताबिक छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय द्वारा जारी टेंडर में 80 फीसदी कार्य IT और मात्र 20 फीसदी कार्य वाहनों के खर्चे के आधार पर स्वीकृत किये गए है। इससे बड़े भ्रष्टाचार की  ‘बू’ आ रही है। इस गैर-जरुरी मापदंड से एक खास कंपनी को फायदा पहुंचाने की राह तय कर दी गई है। जानकारों के मुताबिक स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और सरकारी रकम के व्यय को निर्धारित करते हुए डायल-112 के टेंडर में देशभर के ज्यादातर राज्यों में खर्च मात्र 20 फीसदी आईटी और 80 प्रतिशत वाहन खर्चों पर व्यय किया जा रहा है। ऐसे राज्यों में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान समेत कई बड़े राज्य शामिल है।

इस प्रक्रिया के पालन से इन राज्यों में सरकारी तिजोरी पर चोट नहीं पड़ी है, जबकि टेंडर में रेट नियंत्रित पाया गया है। इसकी तुलना में छत्तीसगढ़ में दूसरे राज्यों के मुकाबले दुगुनी दरों का भुगतान चर्चा का विषय बना हुआ है। वर्तमान में छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय एक वाहन पर 1 लाख 85 हजार रुपए प्रतिमाह व्यय स्वीकृत कर रहा है। जबकि यही कार्य राजस्थान समेत कई राज्यों में मात्र 67000 रुपए प्रतिमाह में विभिन्न कंपनियां आसानी से कर रही है। यही नहीं टेंडर शर्तों को सेवादाता कंपनी के पक्ष में तैयार करने के आरोप भी पुलिस मुख्यालय पर लग रहे है। जानकारों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में एम्बुलेंस वाहन सरकारी रकम से खरीद कर कंपनी को मुहैया कराने का प्रावधान किया गया है। जबकि राजस्थान समेत कई राज्यों में सेवादाता कंपनी को स्वयं वाहन खरीदना होता है।

नाम ना जाहिर करने की शर्त पर पुलिस सूत्र तस्दीक कर रहे है कि भविष्य में यह टेंडर बड़े घोटाले का रूप लेगा। लिहाजा सरकार को मामले की फ़ौरन निष्पक्ष जांच करानी चाहिए।उधर मामले के खुलासे के बाद पुलिस मुख्यालय में लीपा-पोती जारी बताई जा रही है, जिम्मेदार अफसर दलील दे रहे है कि अभी तो टेंडर प्रक्रिया शुरू हुई है, प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजने के बाद अनुमोदन प्राप्त होगा, इसके बाद ही किसी कंपनी को वर्क आर्डर सौंपा जायेगा। फ़िलहाल मामले की शिकायत गृहमंत्री विजय शर्मा से की गई है, उनके रुख का इंतज़ार किया जा रहा है।