रायपुर / छत्तीसगढ़ में नक्सली हिंसा के इतिहास में काला अध्याय के नाम से जाने पहचाने जाने वाले सुनियोजित हत्याकांड की 10 साल बाद फाइल खुलेगी | मदनवाड़ा नक्सली हमले की राज्य सरकार ने ज्यूडिशियल इंक्वारी के निर्देश दिए थे | अब इस मामले में जांच आयोग का गठन कर दिया गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर जज न्यायमूर्ति शंभुनाथ श्रीवास्तव की अध्यक्षता में जांच आयोग का गठन कर आयोग को 6 महीेने के भीतर अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। न्यायमूर्ति श्रीवास्तव छत्तीसगढ़ प्रमुख लोकायुक्त रह चुके हैं। राजनांदगांव के तत्कालीन पुलिस अधिक्षक विनोद चौबे समेत 29 पुलिस कर्मियों को नक्सलियों ने मौत के घाट उतार दिया था | शहीद कर्मियों के शवों के साथ बर्बरता करते हुए नक्सली उनके हथियार , मोबाइल , वर्दी , जूते और कई निजी सामान अपने साथ ले गए थे | इस शर्मनाक घटना के पीछे दुर्ग रेंज के तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता की कार्यप्रणाली पर सवालियां निशान लगा था | बावजूद इसके इस कुख्यात अधिकारी को इस मुठभेड़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के चलते गेलेंट्री अवार्ड सौंप दिया गया | सूत्र बता रहे है कि इस मुठभेड़ की खामियों के चलते तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता के खिलाफ अपराधिक षड्यंत्र , देशद्रोह और जवानों की हत्या का मुकदमा दर्ज करने के बजाय तत्कालीन बीजेपी सरकार ने उसे मेडल से नवाज दिया था | इतनी बड़ी वारदात के बावजूद कुख्यात एडीजी मुकेश गुप्ता से ना तो पूछताछ हुई और ना ही घटना के कारणों की कोई विवेचना कराना तत्कालीन बीजेपी सरकार ने मुनासिब समझा | सूत्रों के मुताबिक कई नक्सली नेताओं का छत्तीसगढ़ पुलिस के कुछ आला अधिकारियों के साथ करीब का नाता है | ये अफसर ठीक उसी तर्ज पर नक्सलियों के साथ अपने संबंधों को अंजाम देते है , जैसे कि हाल ही में जम्मू कश्मीर में पदस्थ डीएसपी दविंदर सिंह अपने सरकारी कर्तव्यों का निर्वहन ISI समेत उसके आतंकवादियों के साथ कर रहा था | इस कड़ी में कई गंभीर मामलों के आरोपी एक अधिकारी का नाम संदिग्धों के रूप में लिया जाता है | बताया जाता है कि इस अधिकारी की बड़े पैमाने पर संपत्ति नक्सलियों से सांठगांठ और हिंसात्मक गतिविधियों से अर्जित की गई है | जानकारों के मुताबिक सिर्फ मदनवाड़ा कांड ही नहीं बल्कि बस्तर की झीरम घाटी में कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में हुआ हमले में भी इस कुख्यात पुलिस अधिकारी की भूमिका सवालों के घेरे में है |
बहरहाल बताया जाता है कि मदनवाड़ा मुठभेड़ के दौरान एसपी समेत उनके साथ मौजूद सभी पुलिस कर्मी शहीद हो गए थे , लेकिन तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता ने नक्सलियों से लोहा लिया और मुठभेड़ में अकेले उनकी ही जान बच पाई | किस रणनीति और फार्मूले पर मुकेश गुप्ता ने नक्सलियों से दो दो हाथ किया ये तो वही जानते है | लेकिन उनकी कहानी किसी के गले नहीं उतरी | हकीकत तो यह है कि इस अधिकारी की संदिग्ध गतिविधि मुठभेड़ के दौरान भी चर्चा का विषय बनी रही | जानकारों के मुताबिक ना तो मुकेश गुप्ता की वर्दी में मुठभेड़ के दौरान लगने वाली मिटटी , कट , और ना ही ऐसे कोई दाग धब्बे दिखाई दिए थे जिससे पता पड़ता हो कि उसने मुठभेड़ में हिस्सा लिया हो | सूत्र तो यह भी कह रहे है कि मुकेश गुप्ता की निष्ठा किस ओर थी , मुठभेड़ में हिस्सा लेने वाले जवान इस तथ्य की खोजबीन में जुटे रहे | बताया जाता है कि फ़िल्मी कहानी की तर्ज पर मुकेश गुप्ता ने एनकाउंटर की फर्जी दास्तान सुनाकर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के राजनैतिक संरक्षण में मेडल हासिल कर लिया था | यहां तक कि मेडल स्वीकृत करने वाली कमेटी ने भी अकल्पनीय साइटेशन को स्वीकार कर लिया |
राज्य के राजनांदगांव जिले के मदनवाड़ा के पास 12 जुलाई 2009 में हुए माओवादी हमले में तत्कालीन एसपी विनोद कुमार चौबे सहित 29 पुलिसकर्मियों की मौत हुई थी। यह राज्य में पहला मामला था जिसमें पुलिस का कोई एसपी स्तर का अधिकारी माओवादियों के हमले में शहीद हुआ हो। एसपी विनोद कुमार चौबे को मरणोपरांत कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। पहली कड़ी में राजनांदगांव से 100 किमी दूर मानपुर के मदनवाड़ा में नक्सलियों ने दो जवानों को गाेली मार दी थी। सूचना पर एसपी विनोद चौबे जवानों को साथ लेकर तत्काल मौके के लिए रवाना हुए थे। इस दौरान आईजी और एसपी के बीच रणनीति को लेकर चर्चा हुई | बताया जाता है कि इस चर्चा के उपरांत तत्कालीन एसपी विनोद चौबे पर गलत निर्देशों का पालन करने के लिए मुकेश गुप्ता ने दबाव बनाया था | विनोद चौबे हालात को भांपते हुए उस मार्ग से नहीं जाना चाहते थे जहाँ नक्सलियों ने एम्बुश लगाया था | जबकि आईजी मुकेश गुप्ता उन्हें उसी मार्ग से रवाना होने के लिए जोर डाल रहे थे | नतीजतन कोरकोट्टी के जंगलों में नक्सलियों ने बारूदी सुरंग विस्फोट किया। इस घटना में एसपी चौबे सहित 29 जवान हमले में शहीद हो गए थे। सूत्र बता रहे है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता की संदिग्ध कार्यप्रणाली के चलते छत्तीसगढ़ पुलिस को बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ था | यही नहीं बगैर किसी ठोस रणनीति , सुरक्षा और सुविधा के मुकेश गुप्ता ने मदनवाड़ा में पुलिस कैंप खुलवाया था | बताया जाता है कि यह कैंप जनता के बजाये नक्सलियों की रणनीतिक चाल के तहत खोला गया था | यह भी बताया जा रहा है कि तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता की कार्यप्रणाली की असलियत इस न्याययिक जांच से सामने आ जाएगी |
प्राप्त जानकारी के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार ने जाँच के 10 बिंदु तय किये है | इसमें घटना किन परिस्थितियों में हुई? , क्या घटना को घटित होने से बचाया जा सकता था? , सुरक्षा निर्धारित प्रक्रियाओं और निर्देशों का पालन किया गया था? , किन परिस्थितियों में एसपी और सुरक्षाबलों को अभियान में भेजा गया? , हमले के बाद क्या एक्शन लिए गए, अतिरिक्त बल भेजा गया या नहीं? , मुठभेड़ में माओवादियों को हुए नुकसान और उनके मरने और घायल होने की जांच सुरक्षा बल किन परिस्थितियों में घायल हुए अथवा मरे , क्या घटना को रोका जा सकता था? ,घटना से पहले, उस दौरान और बाद में कौन से मुद्दे इससे संबंधित थे? , राज्य और केंद्रीय फोर्स के बीच तालमेल था या नहीं? फ़िलहाल इस आयोग के गठन के बाद दुर्ग रेंज के तत्कालीन आईजी मुकेश गुप्ता के ऊपर एक बार फिर कानून का शिंकजा कस सकता है |