भोपाल: मध्यप्रदेश में लोक संस्कृति और कलाओं के प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण में जुटे संस्कृति विभाग के बजट पर सालाना हाथ साफ़ करने के एक बड़े मामले का खुलासा हुआ है। दरअसल इस विभाग की कमान सालों पहले रिटायर हो चुके एक बाबू के हवाले कर देने से जहाँ एक ओर लोक-कलाओं का अस्तित्व दांव पर लग चूका है, वही ‘बाबू साहब’ की कंपनी का कारोबार दिन बा दिन सैकड़ों करोड़ पर पहुँच गया है। जानकारी के मुताबिक ‘दागी बाबू’ विभाग के एक मात्र सर्वेसर्वा अधिकारी है, उनका सीधा नाता महाराजा विक्रमादित्य शोध संस्थान से जुड़ा बताया जाता है, वे इस पीठ के निर्देशक भी बताये जाते है।
यह भी बताया जाता है कि संस्कृति विभाग में सालों से जिम्मेदार अधिकारियों की नियुक्ति नहीं होने से विभाग में लोक संस्कृति के संरक्षण के नाम पर बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार हो रहा है। विभाग में डायरेक्टर के पद हेतु भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान है। लेकिन एक दशक से इस विभाग की ओर राज्य सरकार ने अपनी निगाहे फेरी हुई है। नतीजतन, संस्कृति की रक्षा के नाम पर भ्रष्टाचार का प्रदर्शन बेरोक-टोक जारी है। इससे जुड़े काम-धंधों में इस बाबू की ‘D कंपनी’ ही मालामाल बताई जा रही है। एक शिकायत के मुताबिक कई सालों से संस्कृति विभाग के बजट की सुनियोजित बंदरबाट जारी है, यह उपक्रम मौजूदा बीजेपी सरकार के कार्यकाल में बदस्तूर जारी है। इसमें मुख्य लाभार्थी विभाग के सर्वेसर्वा श्रीराम तिवारी बताये जाते है। उनके पूरे कार्यकाल की जांच की मांग की गई है।
शिकायत में यह भी कहा गया है कि विभाग का काम-काज सिर्फ कागजों में संचालित किया जा रहा है। यही नहीं लोक कलाकारों को नजरअंदाज कर सिर्फ उन्हें उपकृत किया जा रहा है, जो महाराजा विक्रमादित्य शोध संस्थान के निर्देशक के हितों को ध्यान में रखकर अपनी प्रस्तुतियां पेश कर रहे है। जानकारी के मुताबिक संस्कृति विभाग के बजट में साल दर साल करोड़ो की वृद्धि हो रही है।
राज्य सरकार की मंशा के अनुरूप विभागीय कार्य के लिए कायदे कानूनों का पालन भी सुनिश्चित किया गया है। लेकिन आरोप है कि श्रीराम तिवारी की कार्यप्रणाली के चलते तमाम शोध संस्थान और उपक्रमों में भ्रष्टाचार जोरो पर है, इसका सीधा लाभ उस कंपनी को भी हो रहा रहा है, जिसमे बतौर डायरेक्टर श्री राम तिवारी खुद बा खुद शामिल है। कंपनी में उनकी हिस्सेदारी करोड़ो में बताई जाती है। इससे जुड़े दस्तावेज भी इन दिनों सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहे है।
बताया जाता है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष 2024-2025 के सालाना बजट में संस्कृति विभाग अकेले के लिए 1 हज़ार 81 करोड़ का प्रावधान किया गया है। इतने भारी भरकम बजट के खर्चों की एकतरफा कमान शोध पीठ संस्थान के निर्देशक श्रीराम तिवारी के हाथों सौंप देने से ना तो सरकार की मंशा के अनुरूप सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण हो पा रहा है, और ना ही लोक कलाकारों को अपेक्षित लाभ सुनिश्चित हो पा रहा है।
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शिकायत में कहा गया है कि श्रीराम तिवारी 2014 में रिटायर हो चुके है। वो इसी महकमे में सालों ‘बड़े बाबू’ के रूप में कार्य कर चुके है। सेवानिवृति के पूर्व उन्हें संयुक्त संचालक का कार्यभार सौंपा गया था। बताते है कि अपने फन में माहिर इस बाबू ने लंबे समय से विभाग की समस्त गतिविधियों पर ही अपना कब्ज़ा जमा लिया है। उनकी कार्यप्रणाली में भ्रष्टाचार अभिन्न रूप से शामिल बताया जाता है।
शिकायती पुलिंदे में विभाग से जुड़ी कई गतिविधियों में बजट के दुरुपयोग और चहेतों को लाभ पहुंचाने के दर्जनों साक्ष्य भी प्रस्तूत किये गए है। एक साक्ष्य में कहा गया है कि हाल ही के लोक सभा चुनाव के दौरान पूरा देश चुनावी रंग में रंगा हुआ था। सरकारी मशीनरी चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुरूप निष्पक्ष मतदान के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक रही थी। ऐसे समय श्रीराम तिवारी के द्वारा 40 दिनों का विक्रम उत्सव आयोजित किया गया था। इस एक मात्र आयोजन पर करोड़ो रुपये फूंक दिए गए।
शिकायत के मुताबिक यह कार्यक्रम सिर्फ कागजों पर संचालित था। खानापूर्ति मात्र के लिए कुछ चुनिंदा कलाकारों और राष्ट्रीय विभूतियों को प्रदर्शन के लिए मौका दिया गया। जबकि उनकी आढ़ में बड़े पैमाने पर गैर-जरुरी व्यय किये गए थे। शिकायतकर्ता ने दर्जनों प्रकरणों का हवाला देते हुए इस शोध संस्थान के निर्देशक श्रीराम तिवारी की अनुपातहीन संपत्ति और विभाग में सक्रिय बोगस कंपनियों की जांच की मांग की है। न्यूज़ टुडे संवाददाता ने तिवारी पर लगे आरोपों को लेकर उनका पक्ष जानना चाहा, लेकिन कोई प्रतिउत्तर प्राप्त नहीं हुआ।