छत्तीसगढ़ में सत्ता बीजेपी के ‘व्यवस्था’ कांग्रेस के हाथों, अदालतों में पूर्व मुख्यमंत्री ‘बघेल संग सौम्या’  के हितों पर नहीं आई आंच, झूठे और फर्जी मामलों की पैरवी के लिए प्रत्येक पेशी 25 हज़ार का भुगतान आज भी यथावत जारी….

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में सरकारी तिजोरी से प्रति पेशी 25 हज़ार रुपयों का भुगतान आज भी उन वकीलों को किया जा रहा है, जिन्हे फर्जी, झूठे और बेबुनियाद प्रकरणों की पैरवी के लिए नियुक्त किया गया था। राज्य में बीजेपी के सत्तारूढ़ हुए लगभग 11 माह पूरे होने को है। इतने महीनों बाद भी कांग्रेस सरकार द्वारा उपकृत ऐसे वकीलों की छुट्टी नहीं की गई है, जिन्हे पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और उनकी धर्म प्रेतिन पत्नी सौम्या चौरसिया के पारिवारिक हितों को दृष्टिगत रखते हुए सरकारी खर्च पर नियुक्त किया गया था।

बताते है कि कांग्रेस राज में भूपे और सौम्या के गैर-क़ानूनी कृत्यों का विरोध करने वाले कई लोग तत्कालीन छत्तीसगढ़ शासन प्राइवेट लिमिटेट के शिकंजे में कसे गए थे। उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री की आतंकी प्रशासनिक व्यवस्था का शिकार होना पड़ा था। ऐसे लोगों को कुचलने के लिए भूपे की खास अदालती व्यवस्था बीजेपी शासन काल में भी सुचारु रूप से जारी बताई जा रही है।बताया जा रहा है कि कई गैर-क़ानूनी गतिविधियों को एक साथ संचालित कर रहा भूपे गिरोह उन लोगो को अपना शिकार बनाता था, जो सत्ता की आँखों की किरकिरी बने हुए थे। ऐसे लोगो को सबक सिखाने के लिए कानून के कई चुनिंदा जानकारों को अदालती गलियारों में उतारा गया था। उन्हें प्रति पेशी 25-25 हज़ार स्वीकृत किये जाते थे। सरकारी तिजोरी पर व्यर्थ का बोझ बने ऐसे वकीलों की लंबी फौज को आज भी भुगतान, यथावत जारी है।

राज्य सरकार ने उन वकीलों के काम-काज और औचित्य को लेकर अभी तक कोई ठोस फैसला नहीं लिया है, जिन्हे कांग्रेस राज में नियुक्त किया गया थ। लिहाजा प्रत्येक पेशी का 25 हज़ार रूपये भुगतान बे-रोक-टोक पिछले 10 माह से जारी है। ऐसे कानून के जानकारों की प्रकरणों में उपस्थिति से अदालती परिसर में गहमा-गहमी देखी जा रही है। बताया जा रहा है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपे का ‘छत्तीसगढ़ शासन प्राइवेट लिमिटेड’ प्रदेश भर में सक्रिय था। उसका नेटवर्क शहरी इलाकों से लेकर गांव-कस्बों तक फैला हुआ था। इस नेटवर्क में कई गिरोह सक्रियता के साथ विभिन्न किस्म के अपराधों को अंजाम दे रहे थे। इसमें 25 रुपये टन कोयले पर लेव्ही, शराब और महादेव ऐप घोटाला, रेत और अन्य खदानों से बहुमूल्य खनिज पदार्थों की तस्करी, DMF घोटाला जैसे कई कारोबार सरकारी संरक्षण में सुनियोजित रूप से अंजाम दिए जा रहे थे।

ऐसी गैर-क़ानूनी गतिविधियों पर मजबूत पकड़ कायम रखने के लिए तत्कालीन सरकार ने दर्जनों उन वकीलों की नियुक्ति की थी, जो ‘पूर्व मुख्यमंत्री दंपत्ति’ के हितों से जुड़े थे। ऐसे दक्ष वकीलों को आज भी मोटा भुगतान सुर्ख़ियों में है। बताया जा रहा है कि कांग्रेस शासन काल में दर्ज झूठे और फर्जी प्रकरणों की पैरवी मौजूदा दौर में भी पूरी संजीदगी के साथ की जा रही है। अदालती गलियारों में उन प्रकरणों की पैरवी के मामले सुर्खियां बटोर रहे है, जिसमे पूर्व मुख्यमंत्री बघेल और सौम्या ने अपने दौर में खासी दिलचस्पी दिखाई थी।उनके हितों के लिए बड़े पैमाने पर सरकारी धन लुटाया भी गया था।

‘भूपे राज’ में सक्रिय ज्यादातर परंपरागत और महंगे वकीलों को बीजेपी शासन काल में यधपि कार्यभार मुक्त कर दिया गया है। लेकिन उन वकीलों की तादात आज भी दर्जनों में बताई जा रही है, जिन्हे मौजूदा दौर में यथावत भुगतान जारी है। प्रशासनिक हल्को के अलावा निगम मंडलो तक में ऐसे सैकड़ों कर्मचारी और अधिकारियों का रेला जस की तस कुर्सी तोड़ रहा है, जिन्हे भूपे सरकार ने नियुक्त किया था। बताया जाता है कि बीजेपी शासन में भी उनकी तूती बोल रही है। जानकारों के मुताबिक गैर-जरुरी ये फौज सरकारी तिजोरी पर बोझ बन चुकी है। बहरहाल बीजेपी शासन काल में भी परजीवी फौज को ढोया जाना, हैरान करने वाला प्रसंग बताया जाता है।