दिल्ली / रायपुर :छत्तीसगढ़ में बिजली विभाग सुर्ख़ियों में है। उपभोक्ताओं को महँगी बिजली खरीदने के लिए विवश होना पड़ रहा है। जबकि सरकार द्वारा दावा किया जा रहा है कि उपभोक्ताओं को कोई महँगी बिजली नहीं दी जा रही है। यही नहीं दावा यह भी किया जा रहा है कि बिजली मीटर की दुबारा अमानत राशि वसूलना भी नियमो के विपरीत नहीं है। साफ़ है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के प्रभार वाले बिजली विभाग का कामकाज पारदर्शी और सामान्य है। इस विभाग में भ्रष्टाचार का नामोनिशान नहीं है। यह सच भी हो सकता है। लेकिन CSEB की कमान संभाल रहे कुछ एक जिम्मेदार अफसरों की कार्यप्रणाली बताती है कि “खुद भी खूब खाओ,नेताओ को भी जमकर खिलाओ” भ्रष्टाचार में धरे गए तो घोटाले की रकम से मामले निपटाओ |छत्तीसगढ़ में कई सरकारी अफसर इसी कार्यप्रणाली की तर्ज पर अपनी सेवाएं देते नजर आ रहे है। प्रदेश का EOW हो या फिर IT-ED की छापेमारी,अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की सेवाएं खूब सुर्खियां बटोर रही है।
जानकारी के मुताबिक छत्तीसगढ़ बिजली विभाग का दोहरा प्रभार संभाल रहे 2006 बैच के आईएएस अधिकारी अंकित आनंद की कार्यप्रणाली सुर्ख़ियों में है।अंकित आनंद बिजली विभाग के सचिव और उसकी कंपनियों के अध्यक्ष की कुर्सी के साथ-साथ मुख्यमंत्री कार्यालय के सचिव के रूप में चर्चित है। आमतौर पर बिजली विभाग के सचिव और कंपनी अध्यक्ष के पद पर पूरवर्ती बीजेपी शासन काल तक ACS स्तर के वरिष्ठ अधिकारियो की नियुक्ति होती थी। लेकिन कांग्रेस शासन काल में अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों की पदस्थापना को लेकर सीनियर और जूनियर जैसे मापदंड गुजरे दिनों की बात हो गई है।इससे ब्यूरोक्रेसी में एक नया वर्क कल्चर नजर आ रहा है।
हालांकि इसका विपरीत असर कई अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर पड़ रहा है। खासतौर पर अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों के मनमानी फैसलों के चलते सरकार की तिजोरी पर जहां चोट पड़ रही है,वही प्रदेश की जनता को अनावश्यक रूप से महँगी बिजली खरीदने को मजबूर होना पड़ रहा है। बताते है कि अंकित आनंद के सुनियोजित और खास लोगो को अनुचित लाभ पहुंचाने वाले फैसलों के चलते बिजली विभाग को साल दर साल के वितीय वर्षो में अरबो का चुना लग रहा है।जबकि इस विभाग से पैदा होने वाली ब्लैक मनी से केंद्रीय जांच एजेंसिया दो-चार हो रही है। जानकारी के मुताबिक रायगढ़ स्थित बिजली विभाग के पावर हाउस में कोयले की आपूर्ति और परिवहन के ठेको को पिछले साल बाजार भाव से तीन गुने अधिक दाम पर दिया गया था।
सूत्रों के मुताबिक इसके चलते छत्तीसगढ़ शासन और बिजली विभाग को लगभग 500 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा था। जबकि मुनाफे की रकम की बंदर बांट और बेनामी निवेश को लेकर IT-ED सूर्यकांत तिवारी की जांच में जुटी है। सूत्र बताते है कि सूर्यकांत तिवारी को अनुचित फायदा पहुंचाने के लिए CSEB के जिम्मेदार अधिकारियों ने पिछली बार ना तो ठेको की स्वस्थ प्रतिस्पर्धा होने दी ,और ना ही कायदे कानूनों का पालन किया था ।वही रवैया इस बार भी अपनाया जा रहा है।
बताते है कि ऊँची परिवहन दरों और टेंडर निविदा में खास लोगो को फायदा पहुंचाने के मामलों की शिकायतों और तथ्यों को संज्ञान में लाने के बावजूद CSEB की कार्यप्रणाली में कोई बदलाव नहीं आया है।बताते है कि पिछली बार सरकार से करीबी संबंधो के चलते कोयला माफिया सूर्यकांत को ठेका सौंप दिया गया था। उसी तर्ज पर इस बार भी दिल्ली के एक कोल माफिया की अगुवाई में अंबिकापुर से सम्बद्ध PWD से जुडी एक कंपनी को कोल बाजार में एंट्री दी गई है। बताते है कि इस कंपनी पर देश के चर्चित बड़े कारोबारी समूह ने हाथ रखा है।
बताया जा रहा है कि वर्ष 2022-2023 के ठेको में एक बार फिर उसी कार्यप्रणाली की पुनरावृति हो रही है। इस बार सूर्यकांत तिवारी तो सेन्ट्रल जेल रायपुर में कैद है,लेकिन उसके स्थान पर दिल्ली का एक नया कोयला माफिया प्रगट हो गया है। बताते है कि RG नामक चंदा-मामा के सहयोग से CSEB में गो+यल जी का अवतरण हुआ है। अब वो CSEB के ठेको में माफिया राज की मुहिम को आगे ले जाएंगे। मसलन सूर्यकांत तिवारी की भूमिका में नजर आएंगे। उनके लिए कंपनी भी तय कर दी गई है। बस,ठेके का ऐलान होना बाकि है। CSEB में गुणवत्ता वाले कोयले के बजाए घटिया कोयले की सप्लाई,कोयला चोरी और ऊँची दरों पर कोयले का परिवहन जैसी महत्वपूर्ण सुविधाएँ मुहैया करा कर बाजार भाव से चार गुणा अधिक मुनाफा वो भी नंबर एक में कमाने के लिए उनके साथ MOU संपन्न होने की खबर आ रही है।
ख़बरों के मुताबिक पिछले साल की तर्ज पर इस साल भी छत्तीसगढ़ की सरकारी तिजोरी में 500 करोड़ से ज्यादा की चपत लगने वाली है। आम जनता की गाढ़ी कमाई वाली यह रकम ठेकेदार,नेता और अधिकारियों की जेब में जाना तय माना जा रहा है। बताते है कि प्रतिस्पर्धा से नहीं बल्कि हामी के बाद अध्यक्ष जी ने गैर कानूनी ठेको पर अपनी मुहर लगा दी है। जल्द ही अंबिकापुर की एक कंपनी को इस गैर कानूनी ठेके को सौंपे जाने की खबर आ सकती है।इसके लिए चंद औपचारिकताऐ ही शेष बताई जा रही है।
जानकारी के मुताबिक रायगढ़ के गारे पालमा में अडानी की MDO हिस्सेदारी वाली कोल खदान से CSEB के पावर प्लांट तक कोल परिवहन के ठेको में बड़े पैमाने पर धांधली बरते जाने की खबर आ रही है। सूत्रों के मुताबिक नए ठेको को भी मैनेज कर लिया गया है। जबकि पुराने ठेके में घटिया कोयले की सप्लाई से हुए नुकसान की भरपाई के लिए आईएएस अंकित आनंद ने कोई ठोस प्रयास नहीं किए। नतीजतन लगभग 100 करोड़ से ज्यादा की रकम मय ब्याज सहित नहीं वसूले जाने से पुराने ठेकेदारों की पौबारह है। इसकी वसूली नहीं होने से अंकित आनंद की कार्य प्रणाली सवालों के घेरे में है।
बताया जाता है कि ठेकेदारों से सांठगांठ के चलते CSEB में लम्बे समय तक घटिया कोयले की आपूर्ति होते रही। जब बिजली उत्पादन घटा और कोयले की खपत बढ़ी तब घटिया कोयले की आपूर्ति से हुए नुकसान का मामला सामने आया था।दरअसल,कोल परिवहन के लिए 4 कंपनियों ने अपनी दावेदारी की थी। इसमें अहमदाबाद की थ्रोन्स और श्रीजी कृपा जबकि रायपुर की बरबरीक और जय अम्बे ने प्रतिस्पर्धा में शामिल होकर ठेको के लिए अपना भाग्य आजमाया था।
बताते है कि इस बार भी कोल परिवहन की दरें 650 रूपए से लेकर 700 रूपए प्रति टन को लेकर बोली लगाईं है। जबकि इसी इलाके में भारत सरकार की नवरत्न कंपनियों में से एक SECL और कोल इंडिया जैसी कम्पनिया क्रमशः 0 से 3 किलोमीटर तक 40 रूपए,3 से 10 किलोमीटर तक 87 रुपए और 10 से 20 किलोमीटर तक 116 रूपए प्रति टन की दर पर भुगतान कर रहे है। सवाल यह उठ रहा है कि एक ही इलाके में परिवहन दरों में 5-10 रुपए नहीं बल्कि 500 रूपए का अंतर आ रहा है।
सूत्र बताते है कि परिवहन दरों में भारी अंतर होने के बावजूद लगातार दूसरी बार आईएएस अंकित आनंद और CSEB के अधिकारी महंगे ठेको के जरिए सरकार को चुना लगा रहे है। SECL की परिवहन दरों वाली रेट लिस्ट पारदर्शी है। जबकि CSEB की लिस्ट गोपनीय रखी गई है।सूत्र बताते है कि महंगे ठेको की असलियत सामने ना आ जाए इसके चलते 2 कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। जबकि शेष 2 कंपनियों के साथ निजी MOU को अंजाम दिए जाने की खबर आ रही है।
जानकारी के मुताबिक मौजूदा मैनेजमेंट से परिवहन ठेके की लागत बढ़कर लगभग 1000 करोड़ का आंकड़ा छू सकती है। जानकार बता रहे है कि भारत सरकार से एप्रूव्ड SECL की परिवहन दर गाइडलाइन नहीं अपनाने से छत्तीसगढ़ शासन को दोबारा 500 करोड़ से ज्यादा का नुकसान होगा। जबकि पारदर्शी टेंडर प्रक्रिया अपनाने से जनता की रकम की बंदर बांट पर रोक लगाईं जा सकती थी।
गौरतलब है कि CSEB की रायगढ़ स्थित 2 लोकेशन रॉबर्ट्सन और धरगोडा के लिए ऊँची दरों पर ठेका दिए जाने की प्रक्रिया जोरो पर है। बताया जाता है कि देश भर में सर्वाधिक महँगी दरों पर कोल परिवहन ठेको को आईएएस अंकित आनंद ने मंजूरी दी है। आमतौर पर अधिकतम 350 रूपए प्रति टन की दरों को CSEB में दूसरी बार ऊँची दरों पर ठेकेदारों को सौंपे जाने की प्रक्रिया जारी है। शिकायतकर्ताओं ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का ध्यान इस मामले की ओर दिलाया है। पूर्ववर्ती ठेको में हुए नुकसान में सरकारी रकम की वसूली और निविदा टेंडर की जांच की मांग CVC से भी की गई है।