राजस्थान| राजस्थान के जालोर जिले के एक परिवार ने अपने परदादा के सपने को पूरा करने के लिए जो किया उसे सुनकर आप भी दंग रह जाएंगे। दरअसल इस परिवार ने एक करोड़ से अधिक लागत के दो चांदी के घोड़े बाबा रामदेव की कर्मभूमि रामदेवरा में बाबा की समाधि पर चढ़ाए।बता दें की इस विशालकाय चांदी के घोड़ों को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। बताया गया कि एक घोड़ा करीब 150 किलो वजनी है। जबकि दूसरा घोड़ा 20 किलो का है।
चांदी के घोड़े चढ़ाने की मांगी थी मन्नत
ओमप्रकाश खत्री जालोर जिले की आहोर तहसील के गुडा बालोतान गांव के रहने वाले हैं। वह शनिवार को अपने परिवार के साथ बाबा रामदेवजी के समाधिस्थल रामदेवरा पहुंचे। खत्री ने बताया कि उनके परदादा को सपना आया था। इसके बाद उन्होंने बाबा की समाधि पर घोड़े चढ़ाने की मन्नत मांगी थी। उसी मन्नत को पूरा करने के लिए परदादा के बताए अनुसार वे घोड़े लेकर पहुंचे हैं। रामदेवरा पहुंचने के बाद परिवार ने ढोल-नगाड़ों और गाजे-बाजे के साथ अपने परदादा की इच्छा अनुसार बाबा रामदेवजी की समाधिस्थल पर चांदी के दो घोड़े चढ़ाकर उनकी मन्नत पूरी की।
सपने में सुनी थी घोड़े दौड़ने की आवाज
खत्री ने बताया कि उनके परदादा को सपने में घोड़े दौड़ने की आवाज सुनाई थी। इसके बाद उन्होंने बाबा रामदेवजी के समाधिस्थल पर रामदेवरा में घोड़ा चढ़ाने की मन्नत मांगी थी। मन्नत मांगने के बाद उनके सपने में घोड़े दौड़ने की आवाजें आनी बंद हो गईं। इसके बाद उनके परिवार ने उनकी इस इच्छा का सम्मान करते हुए उनकी मांगी मन्नत के मुताबिक चांदी के दो घोड़े चढ़ाए बाबा की समाधि पर चढ़ाकर उनकी इच्छा को पूरा किया।
150 किलो वजनी चांदी का घोड़ा
खत्री ने बताया कि वे अपने परदादा की मन्नत पूरी करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने घोड़े बनवा दिए। ऐसे में उन्हें उनके वजन का सटीक अनुमान नही हैं। लेकिन बड़े घोड़े में अनुमानत: 150 किलो चांदी और करीब 50 किलो दूसरी धातु लगी है। जबकि छोटे घोड़े में 20 किलो चांदी लगी है। दोनों घोड़ों का बाजार मूल्य 1 करोड़ से अधिक बताया गया।
तीन साल पहले बनाए थे घोड़े
ओमप्रकाश खत्री ने बताया कि वे मूलतः जालोर जिले के गुड़ाबालोतान गांव के रहने वाले हैं। उनका जोधपुर और मुम्बई में सोने-चांदी का व्यापार है। उन्होंने बताया कि बाबा रामदेव जी उनके आराध्यदेव हैं और कई पीढ़ियों से उनका परिवार बाबा रामदेव जी की पूजा-अर्चना करता आ रहा है। खत्री ने बताया कि उनके परदादा की मन्नत पूरी करने के लिए उन्होंने तीन साल पहले ही घोड़े बनवा दिए थे, लेकिन कोरोना के कारण मंदिर बंद होने के कारण वे आ नहीं सके। अब कोरोनाकाल खत्म होने के बाद उन्होंने मन्नत पूरी की।