news Today Breaking: आबकारी घोटाले की होगी CBI जाँच, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गले की फ़ांस बनी अदालत की कई नजीरें, सुप्रीम कोर्ट को निष्पक्ष जाँच से परहेज क्यों..? एजेंसियों में डर का माहौल पैदा न करें कोर्ट, जनता की अदालत में जज…

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दिल्ली/रायपुर : सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के 2 हज़ार करोड़ का आबकारी घोटाला अब CBI जांच की राह में है। इस मुद्दे ने राष्ट्रीय स्तर पर नेताओ के दावे-वादे और सत्ता हासिल होने के बाद उसके ठीक विपरीत कार्य करने के मसले पर अदालत का ध्यान भी आकृष्ट किया है। छत्तीसगढ़ सरकार की इस मामले में दायर याचिका खूब सुर्खियां बटोर रही है। दरअसल,अदालत के एक फैसले को मीडिया हाउस,ED के खिलाफ बता रहा है,समाचारों का संकलन और प्रकाशन ऐसे किया जा रहा है,जैसे सुप्रीम कोर्ट के दो माननीय जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अमानुल्लाह की पीठ छत्तीसगढ़ शासन की वकालत कर रही है।

देश की शीर्ष अदालत की टिप्पणियों का राजनैतिक इस्तेमाल करने के लिए उसे तोड़ा मरोड़ा जा रहा है,इसके लिए खास शीर्षकों से कई समाचार पत्रों में ऐसी ख़बरें प्लांट की गई है,जिससे पता पड़े कि ED समेत भारत सरकार राजनैतिक हितो के लिए मुख्यमंत्री बघेल पर शिकंजा कस रही है। ED के गैरकानूनी कृत्यों से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनके साथियो के खिलाफ ED का राजनैतिक इस्तेमाल हो रहा है,मुख्यमंत्री और उनका कुनबा पाक साफ़ है।

आबकारी विभाग के ईमानदार अधिकारियो के साथ मारपीट और जोर जबरदस्ती कर ED बयान दर्ज करवा रही है,मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की छवि अदालती फरमानो की आड़ में सरकारी तिजोरी से चमकाई जा रही है,उन्हें दूध की तरह निर्मल,पाक-साफ़ और पीड़ित बता कर घड़ियाली आंसू बहाए जा रहे है। जबकि अदालत में दाखिल याचिका में दर्ज छद्दम पीड़ितों के सशरीर नाम ही, आबकारी विभाग के अधिकारियो की भूमिका ही संदिग्ध और सवालों के घेरे में है।

सूत्र यह भी दावा करते है कि शीर्ष अदालत में याचिकाकर्ता सरकारी मुलाजिमों को मुख्यमंत्री निवास बुला कर खुद राजनेताओ ने जोर जबरदस्ती हस्ताक्षर करवाए थे , घोटाले की उच्चस्तरीय जांच में रोड़े अटकाए जा सकें। इस मामले को विधानसभा चुनाव से जोड़ कर देखा जा रहा है। ताकि विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री बघेल के दामन पर लगे दाग को अदालती टिप्पणियों को तोड़ मरोड़कर पेश कर उन्हें प्रेस मीडिया के जरिये छत्तीसगढ़ का रहनुमा साबित किया जा सके। 

आबकारी घोटाले की तह तक जाने के लिए सम्माननीय जस्टिस एसके कौल और जस्टिस अमानुल्लाह की पीठ बड़ी बारीकी से सरकारी तंत्र में पनप रही भ्रष्टाचार की जड़ो को मुहैया हो रहे पोषक तत्वों पर भी अपनी नजर बनाए हुए है। कानून के जानकारों का यही मानना है जबकि बघेल सरकार इसका राजनैतिक फायदा उठाने में जुटी है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भ्रष्टाचार के कई मामलों में पेश नजीरे साफ़ करती है कि ऐसे आपराधिक मामलों की निष्पक्ष जांच से किसी भी निर्वाचित राज्य सरकार को परहेज नहीं होना चाहिए।

लिहाजा इस मामले की भी CBI जांच के अदालती निर्देशों की जांच की मांग वाली आधा दर्जन जनहित याचिकाएं कोर्ट के मुँह बाए खड़ी है। चर्चा है कि अदालत के गलियारों में अब इन याचिकाओं के तथ्य भी सुर्खियां बटोरेंगे।

इस मामले की अगली सुनवाई गौरतलब बताई जा रही है। इस बीच छत्तीसगढ़ में ED ने भ्रष्टाचार के उन्मूलन की सरकारी कोशिशों को अमलीजामा पहनाना जारी रखा है। अदालती दिशा निर्देशों को तोड़ मरोड़कर जनता के बीच भरम और दुष्प्रचार करने वालो पर केंद्र सरकार की नजर है,सूत्र तो यही दावा कर रहे है। लिहाजा राज्य में भ्रष्टाचार का दंश भोग रही जनता,राजनीति और नौकरशाही के घालमेल से लगभग 20 हजार करोड़ के घोटाले की जांच को CBI अथवा ज्यूडिसियल कमीशन गठित कर निष्पक्ष जांच कराने की बेबस जनता द्वारा अदालत से गुहार लगाईं जा रही है।

अदालती सूत्र बताते है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनका कुनबा ही 2 हजार करोड़ की अवैध वसूली में अंतिम लाभार्थी के रूप में शामिल था। देश में किसी भी मुख्यमंत्री के सरकारी तिजोरी में खुद ब खुद शामिल होने के प्रामाणिक तथ्य अदालती कार्यवाही में लगातार दस्तावेजों के साथ सलंग्न किए जा रहे है,मदिरा प्रेमियों द्वारा टैक्स के रूप में जमा की जा रही रकम पर कतिपय नौकरशाह मुख्यमंत्री कार्यालय के जरिए दिन दहाड़े डकैती डाल रहे है।

EOW और ACB जैसी जिम्मेदार एजेंसियों के दफ्तरों से छत्तीसगढ़ शासन के वरिष्ठ अधिकारी ही भ्रष्टाचार के मामलों की शिकायतों को जांच करने के बजाए गायब कर रहे है। इसके बावजूद भी राज्य सरकार की ओर से याचिका दायर कर,जांच करने वाली केंद्रीय एजेंसियों की राह में रोड़ा अटकाया जा रहा है।   

सुप्रीम कोर्ट में केंद्रीय प्रवर्तन निदेशालय बनाम छत्तीसगढ़ शासन और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की टोली से जुडी तमाम आपराधिक मामले बेहद गंभीर किस्म के बताए जाते है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आपराधिक गतिविधियों से जुड़े नान घोटाले,कोल परिवहन घोटाले,सेक्स सीडी कांड,CBI के आरोपी रिंकू खनूजा की ह्त्या-आत्महत्या,भिलाई में साडा की जमीन घोटाले में दर्ज 420 के प्रकरण का एकतरफा खात्मा के अलावा दर्जनों ऐसे प्रकरण है,जिसकी सुनवाई कर रहे जज खुद भी सवालों के घेरे में है। उनके फैसलों पर उंगलिया उठ रही है।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ शासन द्वारा उपकृत जजों की फेहरिस्त लगातार लम्बी होती जा रही है। हालात यह है कि हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कुछ जज भी,बहती गंगा में डुबकी लगाने के लिए अपना मुख्यालय छोड़ रायपुर का रुख कर रहे है। बताते है कि दिल्ली,प्रयागराज और बिलासपुर से कई जजों की रायपुर यात्रा फलदायक जरूर अभी साबित हो रही है,लेकिन अपने पीछे अपराधों की वो कड़ी भी स्थापित करती जा रही है,जो सफ़ेद पोश अपराधियों की गिरेबान में अकसर कॉलर के रूप में लगी नजर आती है। 

सूत्र बताते है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के आर्थिक अपराधों में लाभार्थी और हितग्राहियो में विभिन्न अदालतों में पदस्थ जजों के बाल-बच्चे भी शामिल है। 2018 से 2023 के बीच ऐसे जजों के कुनबे में भी भ्रष्टाचार की फसल लहलहा रही है। राजधानी रायपुर के शैलेन्द्र नगर-टैगोर नगर जैसे महंगे इलाको में करोडो की अचल संपत्ति बाल-बच्चो के नाम दर्ज हो जाती है,उस पर अस्पताल बनाने का बीड़ा भ्रष्ट अधिकारियो के कंधो पर लादे जाने की जानकारियां सामने आ रही है।

इलाहाबाद के कई पंडे भी बहती गंगा में गोता लगाने के लिए रातो-रात माता कौशल्या के आश्रम में दंडवत हो रहे है।इस मामले में देश में न्याय का ढोल पीटने वाले देश के चर्चित तत्कालीन चीफ जस्टिस न्यायमूर्ति एन वी रमन्ना भी कहां पीछे रहने वाले थे। 

सूत्र बताते है कि न्यायिक कार्यो के लिए अक्सर व्यस्त रहने वाले न्यायमूर्ति एनवी रमन्ना ने भी ऐसी ही छत्तीसगढ़ शासन की कई याचिकाओं के चलते दिल्ली से रायपुर का रुख किया था,ताकि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से एकांत में चर्चा की जा सके। बताते है कि मेल-मिलाप के बाद देश के तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमन्ना ने दोबारा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और छत्तीसगढ़ शासन से जुडी याचिकाओं का रुख तक नहीं किया,जबकि वे डॉयस के ऊपर और टेबल के नीचे के तमाम तथ्यों से भली भांति वाकिफ थे।

सूत्र यह भी बताते है कि आरोपी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सेक्स सीडी कांड मामले की सुनवाई कर रहे रमन्ना के एकांतवास के लिए हरियाणा कैडर की एक महिला IAS ने,सेज सजाई थी। इसके लिए दिनांक 30 जुलाई 2022 को न्यायाधीश एन वी रमन्ना रायपुर स्थित हिदायतुल्ला राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय (HNALU) के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे। 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति अरूप कुमार गोस्वामी कार्यक्रम में बतौर प्रोटोकॉल उपस्थित रहे। सूत्र बताते है कि पर्दे के पीछे,कैमरों की आँखों को मिलन समारोह से दूर रखने की खास हिदायत के बाद मिलन समारोह में “मन की बात” हुई थी। 

देश के मुख्य न्यायाधीश जिन्हें आरोपी भूपेश बघेल के ट्रायल को नहीं बल्कि सर्वोच्च जांच एजेंसी CBI को सिर्फ ट्रांसफर रिट पर फैसला देना था। वो सिर्फ “तारीख पे तारीख” देते चले गए,जबकि CBI मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और उनकी टोली के आपराधिक तत्वों के खिलाफ सिर्फ राजनैतिक आरोपों और कानूनी दाँवपेंचो से बचने के लिए उनकी कोर्ट में अर्जेंट हियरिंग  की याचिका तक दायर करने से लगातार बचते रही,मायलॉर्ड,यही होता है अदालती खौफ। 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बनाम ED,CBI,IT-ED ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ शासन बनाम आम जनता और पत्रकार मामलों की जांच भी CBI से नहीं बल्कि महाआयोग से कराने की जरूरत है। वर्ष 2018 से लेकर 2023 तक छत्तीसगढ़ शासन के समस्त मामले संदिग्ध है,इनमे घुन के साथ गेहू को भी पीस दिया गया है,नतीजतन राज्य की सरकारी मशीनरी ही जाम हो गई है।

वर्ष 2018-19 से लेकर अब तक सुप्रीम कोर्ट के 4 सम्माननीय जजों का कार्यकाल गुजर चुका है,लेकिन आरोपी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पिता नंदलाल बघेल से जुड़े तमाम अदालती मामले जस की तस है। छत्तीसगढ़ सरकार प्रायोजित कानूनी दाँवपेंचो से उनके विचारण की गति कछुए की चाल से भी धीमी हो गई है। इसका नियंत्रण अखिल भारतीय सेवाओं के हाथो में आने के बाद बेलगाम हो चुका है।

छत्तीसगढ़ में सिर्फ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से जुड़े आपराधिक मामले ही नहीं लाल फीता शाही का शिकार हो रहे है,बल्कि उनके गुरु और पूर्व चीफ सेकेट्री विवेक ढांड के 1 हजार करोड़ के समाज कल्याण घोटाले पर भी लम्बे अरसे से सुप्रीम पाबन्दी है,जबकि जरूरतमंद गरीब लोगो के कल्याण की रकम नौकरशाही के जेब में चली गई। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट बिलासपुर ने मामले की जांच के लिए CBI को अधिकृत किया था। लेकिन छत्तीसगढ़ सरकार की ऐसे ही कानूनी दाँवपेंचो से यह मामला भी सुप्रीम कोर्ट में धूल खा रहा है।

नान घोटाले का मुख्य आरोपी अनिल टुटेजा की अदालती राहत सुर्खियां बटोर रही है,जबकि केंद्रीय एजेंसियां फटकार और गैरजिम्मेदाराना राजनैतिक आरोपों से दो-चार हो रही है। मुख्यमंत्री की उपसचिव सौम्या चौरसिया के भ्रष्टाचार का मामला एक महीने से अंजाम की राह तक रहा है,जेल या बेल का फैसला रिजर्व है,उम्मीद की जा रही है कि अदालत दूध का दूध और पानी का पानी साफ़ करेगी।  

आरोपी मुख्यमंत्री और उसकी टोली से जुड़े मामले सिर्फ अपीलीय न्यायालय ही नहीं बल्कि ट्रायल कोर्ट में भी धूल खा रहे है। देश के मौजूदा प्रधानमंत्री हो या फिर शीर्ष अदालत का महत्त्व अपने फैसलों से जाहिर करने वाले कई न्यायमूर्ति अपनी तकरीर में भ्रष्टाचार को देश का दुश्मन करार देते है। लेकिन सेवाओं के धंधो को लेकर उनकी प्राथमिकता अपने कर्तव्यस्थलो में साफ़ झलक रही है।

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निचली अदालतों में भी बघेलखण्ड के भ्रष्टाचार कानूनी रूप से जाम है,सुनवाई के मामलों में सिर्फ “तारीख पे तारीख” और जजों का तबादला ही सामने आ रहा है,मायलॉर्ड। ऐसे में केंद्रीय जांच एजेंसिया यदि जनता का धन सरकारी तिजोरी में वापिस करने में जुटी है,तो फिर उसकी राह में रोड़े क्योँ ? मायलॉर्ड…. 

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छत्तीसगढ़ उच्च न्यायलय के तत्कालीन चीफ जस्टिस और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के उपकृत होने के मामले नहीं बल्कि कई अदालती उपद्रव राज्य की जनता पर भारी पड़ रहे है।छत्तीसगढ़ शासन की गंभीर याचिकाओं में जोर निष्पक्ष जांच को नहीं बल्कि कानूनी दाँवपेंचो के जरिए पीड़ितों के अरमानो पर पानी फेरने की मंशा से दायर किए जा रहे है।

नतीजतन अदालतों को भी मुँह मांगे दाम में खरीदने का दौर जारी है,माननीय अदालत को छत्तीसगढ़ शासन की मंशा और याचिकाकर्ताओं के फर्जी दावों के बीच बाल की खाल उधेड़नी होगी,तभी भ्रष्टाचार के असली बघेल जनता की अदालत में बे’नकाब हो सकेंगे। 

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उधर,सूत्र यह भी दावा कर रहे है कि तमाम अदालती फरमानो से लेकर सत्ताधारी दल की वाहवाही और झूठी व्याख्या को जनता के समक्ष परोसने का कार्य कतिपय अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियो ने अपने कंधो पर उठाया हुआ है। प्रेस मीडिया में सत्ता विरोधी लहरों से जुडी खबरों को बाधित करने का मामला हो या फिर पत्रकारों को झूठे मामलों में फंसाकर उनकी चरित्र हत्या की योजनाओ को अंजाम देने की प्रक्रिया,दोनों ही मामलों में जनसम्पर्क विभाग की भूमिका जनसंकट विभाग के रूप में तब्दील हो चुकी है।

2001 बैच के IPS अधिकारी इन दिनों समस्त प्रकार के गैरकानूनी कृत्यों के कानूनी सलाहकार के रूप में काबिज हो गए है। उनकी कार्यप्रणाली प्रजातंत्र पर भारी है। राज्य में जूनियर IPS अधिकारियो ने भारत सरकार के बजाए खुद का बघेलखण्ड राज्य का नया कैडर स्थापित कर लिया है,यह छत्तीसगढ़ कैडर को कड़ी चुनौती दे रहा है।

IPS अधिकारियो का गिरोह आम जनता पर भारी पड़ रहा है।अखिल भारतीय सेवाओं का धंधा करने वाले संदेही IT-ED के दफ्तर में बैठ कर जहां खुद की बेगुनाही साबित करने के लिए पसीना बहा रहे है,वही खुली आजादी पाते ही अपनी क्षमता और सरकारी संसाधनों का इस्तेमाल भारत सरकार और केंद्रीय जांच एजेंसियों की विश्वसनीयता पर चोट पर चोट करने में कर रहे है।

इसके लिए रायपुर से लेकर दिल्ली तक प्रेस मीडिया की दुकाने हो,या फिर देश के नामचीन गैरकानूनी सलाहकारों के ठिकाने,इन ठीयो में जन धन की आपूर्ति अखिल भारतीय सेवाओं के माध्यम से ही संचालित हो रही है। मायलॉर्ड इन तथ्यों पर भी गौर फरमाना होगा क्योँकि भ्रष्टाचार के मामलों की वैधानिक जांच के प्रकरणों में ही छत्तीसगढ़ शासन मौन,प्रशासन मौन ऐसे में आम जनता की सुनेगा कौन ? फिलहाल तो पीड़ित जनता चीख रही है,कोटरिया काका जिंदाबाद। 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कार्यप्रणाली अचरज करने वाली है,पहले तो उन्होंने पुलिस समेत राज्य की अन्य एजेंसियों से घोटालो की जांच तक नहीं करवाई। जब पानी सिर से गुजर गया तो केंद्रीय जाँच एजेंसियों को दिल्ली से रायपुर का रुख करना पड़ा,अब बघेल जांच भी नहीं होने दे रहे है,कानूनी दांव-पेंचो का हवाला देकर जांच में खुद रोड़े अटका रहे है।

भारत सरकार की विश्वसनीय  एजेंसियां ही सरकारी घोटाले की जांच करेगी,ना की पाकिस्तान और दुबई से अंडरवर्ल्ड की जमात, दाऊद इब्राहिम रायपुर पहुंचकर मुख्यमंत्री बघेल के घोटालो की जांच कर अदालत में चालान प्रस्तुत करेंगे।

छत्तीसगढ़ शासन के कर्णधारो को यह सोचना होगा। इस तथ्य को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को बखूबी समझना होगा। इसके लिए विधिक सलाहकारों का रुख करना होगा ना की कानून तोड़ने वालो की चौखट पर सिर्फ अपने लिए सुलभ और सुविधानुसार सरकारी इन्साफ की पैरवी के लिए नाक रगड़नी होगी।