NEWS TODAY CG : छत्तीसगढ़ में देश का सबसे बड़ा शराब घोटाला, सालाना 20 हजार करोड़ के कारोबार पर साहब ने ही मारा हाथ, बड़े खुलासे की ओर ED

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दिल्ली / रायपुर : छत्तीसगढ़ राज्य के गठन के बाद सबसे बड़ा शराब घोटाला सामने आया है। यह राज्य इन दिनों सरकारी लूट से ही दो-चार हो रहा है, नतीजतन प्रदेश में कानून व्यवस्था के हालात बन गए है। नौकरशाहों और अपराधियों की एक टोली “मुख्यमंत्री” के संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल कर सरकारी तिजोरी पर ही हाथ साफ कर रही है। कई IAS और IPS अधिकारी अपने सेवा काल से लेकर रिटायर होने के बाद भी हथियार बन गए है, उनकी सरपरस्ती में छत्तीसगढ़ अब अपराध गढ़ की ओर तेजी से बढ़ रहा है। “बघेलखंड” के लिए भ्रष्टाचार, गबन और सबूतों को नष्ट करने की गंभीर वारदातों को अंजाम देने से सरकारी मशीनरी जांच के घेरे में है।

ताजा मामला राज्य के आबकारी विभाग का है, यहां दिल्ली के शराब घोटाले की तर्ज पर हजारो करोड़ का गोलमाल कर संदेही नौ-दो ग्यारह हो गए है। एजेंसियां उनकी तलाश में जुटी है, उधर संदेही बच निकलने के लिए कई क़ानूनी दॉव पेंच भी आजमा रहे है।

सूत्रों के मुताबिक शराब घोटाले की तह तक जाने के बाद कई परंपरागत और नए नवेले शराब कारोबारियों की खोजबीन शुरू हो गई है। देश की कई नामचीन शराब कंपनियों के मालिकों और कर्ता-धर्ताओ से भी ED पूछताछ कर रही है। बताते है कि डिस्लरी कारोबारियों के अलावा लगभग सभी ठेकेदारों ने साहब के लठैतों और बघेलखंड में हो रही नोटों की बारिश से एजेंसियों को अवगत कराया है, इसके बाद बघेलखंड पर कसते शिकंजे से खलबली है। बताते है कि अब सच बोलने वाले कारोबारियों के खिलाफ छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा फर्जी FIR दर्ज करने का दौर शुरू हो गया है, ताकि घोटालो की तस्दीक करने वालो का मुँह बंद कराया जा सके। 

सूत्रों के मुताबिक ED दफ्तर में राज्य के सालाना लगभग 20 हजार करोड़ के आबकारी कारोबार पर आबकारी विभाग और प्राइवेट कंपनी से जुड़े कई अधिकारी अपनी बेगुनाही की दास्तान सुना रहे है, ईमानदारी और नियमो के पालन पर जोर देने वाले कर्मी बता रहे है कि विभागीय सचिव एपी त्रिपाठी और कुछ प्राइवेट व्यक्ति मिलकर तमाम सरकारी नीति निर्धारण करते थे, उनकी रोजाना की कमाई कई करोडो की थी, जबकि संसाधन और नियम कायदे छत्तीसगढ़ शासन के थे।

बताते है कि सरकारी तिजोरी में हाथ साफ करने के लिए बड़े पैमाने पर आउट सोर्सिंग के जरिये बाहरी तत्वों की तैनाती की गई थी। ऐसे तत्वो के अधीनस्थ आबकारी विभाग के सरकारी अधिकारियों को झोंक दिया गया था। बीते साढ़े चार सालो में आउट सोर्सिंग कंपनी के ही दर्जनों कर्मचारी सरकारी शराब दुकानों से लाखो की नगदी लेकर चम्पत होने के मामलो में भी काफी चर्चित रहे है। सूत्र बताते है कि एक ओर जहां सरकारी लूट से वाकिफ कर्मचारी नगदी पर हाथ साफ करते रहे वही दूसरी ओर उस गैरकानूनी रकम को सरकारी राजस्व करार देकर आबकारी विभाग के ही दागी अफसर उनके खिलाफ अमानत में खयानत की शिकायते पुलिस में करते रहे। बताया जा रहा है कि आउट सोर्सिंग से सरकारी विभाग में कब्ज़ा कर चूका बघेलखंड चौबीसो घंटे शराब परोस कर शासन का खजाना लूट रहा था। इस कार्य में कई सरकारी अधिकारी भी शामिल हो गए थे।

बताते है कि सरकारी रकम की लूटमार, नंबर एक और नंबर दो की शराब की बिक्री के अलग अलग हिसाब किताब, रोजाना इकठ्ठा होने वाली मोटी रकम को सरकारी तिजोरी में जमा कराने के बजाय मुख्यमंत्री के करीबियों के निर्देश पर मनचाही जगह पहुंचाने, एक ही परमिट पर शराब से लदे वाहनों की अनगिनत आवाजाही और माल में हेर फेर के साथ सरकारी रकम के हवाला के जरिये ठिकाने लगाने के मामलो जैसे गैरकानूनी कृत्य आबकारी विभाग का दैनिक कामकाज बन गया था। 

यह भी बताया जा रहा है कि एपी त्रिपाठी के निर्देश पर आबकारी विभाग और उसका पूरा अमला अवैध शराब के कारोबार में शामिल था। इससे इकठ्ठा होने वाली ब्लैक मनी हवाला ऑपरेटर और आढ़तियों के जरिए तय ठिकाने लगाई जा रही थी। जानकारी के मुताबिक गैरकानूनी कार्यो और शराब की तस्करी में सहयोग नहीं करने वाले कई वरिष्ठ सरकारी अधिकारियो को अलग-अलग फरमानो के जरिए लूप लाइन में डाल दिया गया था। ऐसे ही सरकारी अधिकारी चलन में थे, जो राजनीतिक संरक्षण में सरकारी निर्देशों का पालन कर रहे थे। 

बताते है कि पिछले साढ़े चार सालो में महत्वपूर्ण विभागीय गतिविधियों में प्राइवेट लोगो अर्थात मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा निर्देशित व्यक्ति ही शराब नीति का पालन सुनिश्चित कर रहे थे। प्राइवेट व्यक्ति किसी वैधानिक अधिकार पत्र के शराब दुकानों का लेखा-जोखा और नई शराब दुकाने खोले जाने का फैसला ले रहे थे। उनके निर्देश पर छत्तीसगढ़ और झारखण्ड दोनों ही राज्यों के बीच शराब की विवादित नीति के पालन का वैधानिक करार भी किया गया था। इसकी कमान खुद एपी त्रिपाठी ने संभाली थी।

इसके लिए विभाग द्वारा विधिसंगत आदेश भी जारी नहीं किये गए थे। बताते है कि आबकारी घोटाले को अंजाम देने के लिए पहले विभाग में ट्रांसफर घोटाला कर ऐसे वरिष्ठ अधिकारियो को किनारे किया गया था, जिनसे विभागीय माफिया एपी त्रिपाठी खतरा महसूस करते थे। यह भी बताया जा रहा है कि केंद्र सरकार के दूरसंचार विभाग में पदस्थ एपी त्रिपाठी को प्रतिनियुक्ति पर आबकारी विभाग में गैर क़ानूनी रूप से लम्बे समय तक तैनात रखा गया है, जबकि केंद्रीय अधिकारियो की प्रति नियुक्ति और सेवा की अवधि को लेकर स्पष्ट दिशा निर्देश है। सूत्रों के मुताबिक वर्ष 2018 के उपरांत एपी त्रिपाठी को पदोन्नत करते हुए मुख्यमंत्री कार्यालय द्वारा सरकार के सभी संवैधानिक अधिकार उसे सौंप दिए गए थे। बताते है कि विभागीय मंत्री कवासी लखमा के समस्त अधिकारों का उपयोग-दुरुपयोग एपी त्रिपाठी द्वारा किया रहा था, मंत्री लखमा सिर्फ सरकारी नोटशीट और दस्तावेजों पर सिर्फ अपनी सील, मुहर, अंगूठा लगाते रहे।

बताया जा रहा है कि बतौर कैबिनेट मंत्री कवासी लखमा बघेल सरकार में सिर्फ दस्तखत करने की सरकारी सेवा करते रहे, वही दूसरी ओर साहब का धंधा फलता-फूलता रहा। बताया जा रहा है कि कई नीतिगत कार्यो में बगैर विभागीय मंत्री की अनुशंसा के ऐसे कार्य भी किये गए जो गंभीर अपराधों की श्रेणी में है। बताते है कि कोरोना काल में बड़े पैमाने पर अवैध शराब की निकासी और धड़ल्ले से तस्करी भी की गई थी। इसे आउट सोर्सिंग कर्मियों के जरिए एक संवैधानिक प्रमुख के सहयोगी ही संचालित कर रहे थे। बताते है कि पूरे कोरोना काल में डिस्लरी से शराब का उत्पादन होता रहा। लेकिन सरकारी शराब दुकानों के दरवाजो पर ताला लटकता रहा।

ऐसे में शराब की सप्लाई और खरीदी बिक्री प्रक्रिया सवालों के घेरे में है। बताते है कि शराब की होम डिलेवरी से अर्जित होने वाली रकम के ब्योरे में भारी हेर-फेर है। सरकारी शराब दुकानों का पूर्ण ब्यौरा भी विभाग के पास उपलब्ध नहीं है, सूत्र बताते है कि सरकारी दुकानों की कागजों में दर्ज सख्या से कहीं ज्यादा दुकाने खोली गई है। इसका रिकॉर्ड भी विभाग के कुछ अफसर रफा-दफा करने में जुट गए है, शराब की होम डिलिवरी योजना भी भारी भ्रष्टाचार के दायरे में बताई जाती है।

सूत्र बताते है कि कोरोना काल में साहब के धंधे में रिकार्ड तोड़ कमाई हुई थी, इसे ठिकाने लगाने के लिए कुछ विदेशी हवाला ऑपरेटर की सेवाएं भी ली गई थी। बताया जा रहा है कि एपी त्रिपाठी का इस सिलसिले में काला चिठ्ठा भी सामने आया है। इसके चलते अनिल टुटेजा की भी मुसीबत बढ़ गई है, दोनों के बीच कई संदेहजनक चैट और दस्तावेजों का आदान-प्रदान पाया गया है। 

बताते है कि कोरोना काल में बड़े पैमाने पर अवैध शराब की निकासी चल रही थी। इसे आउट सोर्सिंग कर्मियों के जरिए एक संवैधानिक प्रमुख के सहयोगी ही ठिकाने लगा रहे थे। बताते है कि पूरे कोरोना काल में डिस्लरी से शराब का उत्पादन होता रहा। लेकिन सरकारी शराब दुकानों के दरवाजो पर ताला लटकता रहा। बावजूद इसके प्रदेश भर में ऊंची कीमतों पर शराब की बिक्री हो रही थी। सूत्र बताते है कि ऐसे अवैध बिक्री केन्द्रो को मुख्यमंत्री कार्यालय का संरक्षण प्राप्त था। सौम्या चौरसिया और अनिल टुटेजा के साथ मिलकर कई प्राइवेट लोग मनचाहे स्थानों पर शराब की आपूर्ति कर रहे थे।

बताते है कि कोरोना काल में  किसी ने अपनी होटलो, बार और दुकानो से महीनो तक शराब का अवैध कारोबार किया तो किसी ने डिस्लरी में कब्ज़ा कर शराब की अवैध निकासी जारी रखी थी। सूत्र बताते है कि ऐसे दस्तावेजी प्रमाण और चैट एजेंसियों को मिले है जिससे पता पड़ता है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से सम्बद्ध कुछ प्रभावशील कारोबारी नए खिलाडी के रूप में शराब कारोबार में शामिल हुए थे, इन्हे व्यवसाय में भागीदार बनाया गया था।

फ़िलहाल प्रवर्तन निर्देशयल जाँच में जुटा है, शराब के नशे में डूबी सरकार जिस तेजी से छत्तीसगढ़ में नशे का कारोबार फैला रही थी, उससे बड़ा शराब घोटाला सामने आया है। बताते है कि 4 सालो का हिसाब-किताब लेकर परम्परागत शराब कारोबारी हकीकत से पीड़ित है, वही दूसरी ओर कच्चे की रकम और बगैर वैधानिक दस्तावेजी अधिकार पत्र के “साहब” का धंधा ही ED के शिकंजे में है।