रायपुर: छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्यप्रणाली देश भर में चर्चित हो रही है। IT-ED समेत कई केंद्रीय एजेंसियां सरकार की गोद में बैठे अखिल भारतीय सेवाओं के अफसरों और उनके कारोबारियों के गिरेबान में आए दिन हाथ डाल रहे है। काले कारनामो में लिप्त कई सरकारी अधिकारियों की काली कमाई के साथ-साथ उनकी आपराधिक कार्यप्रणाली भी सामने आ रही है।
भले ही छत्तीसगढ़ सरकार और उसके नेता केंद्रीय एजेंसियों की कार्यवाही को राजनैतिक करार दे रहे हो,लेकिन मनी लॉन्ड्रिंग और अनुपातहीन सम्पत्तियों के मामले तस्दीक कर रहे है कि राज्य में भ्रष्टाचार का बोल बाला है। इसके चलते आम जनता का हाल-बेहाल है। राज्य की गरीब और जरूरतमंद जनता की सरकारी तिजोरी में जमा होने वाली रकम को कई अधिकारी ऐसे लूट रहे है जैसे छत्तीसगढ़ में सत्ता में परिवर्तन सिर्फ उनके हितो और अवैध कमाई के लिए ही हुआ है।
आदिवासी और सामान्य इलाको में खर्च होने वाली अरबो की सरकारी रकम मुख्यमंत्री बघेल की उपसचिव सौम्या चौरसिया,आईएएस समीर विश्नोई,सुनील अग्रवाल और सूर्यकांत तिवारी समेत उसके कई नाते रिश्तेदारों की तिजोरी में चले गई। ऐसे अधिकारियों और कारोबारियों को प्राप्त सरकारी संरक्षण राज्य के छले गए आम वोटर देख रहे है। हद तो तब हो रही है, जब जायज मामलों को लेकर राज्य की पुलिस वैधानिक कार्यवाही करने के बजाए प्रभावशील आरोपियों के सामने ही दंडवत हो जाए।
नतीजतन पीड़ितों को इन्साफ के लिए अपनी गाढ़ी कमाई कोर्ट-कचहरी के चक्कर में खर्च करनी पड़ रही है। वैधानिक मामलो में भी छत्तीसगढ़ पुलिस की बेरुखी के चलते पीड़ितों को अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ रहा है। पुलिस के रवैये से परेशान होकर पीड़ित कोर्ट में परिवाद दाखिल करने को मजबूर है। जबकि अधिकारियों को शिकायतों के निपटारे के लिए नियमानुसार कार्यवाही का अधिकार प्राप्त है।
बताते है कि सरकार को राह दिखाने वाले कई चर्चित अफसर और उनका कुनबा आम जनता पर भारी पड़ रहा है। उनके क्रियाकलापों से जहाँ सरकार की साख पर बट्टा लग रहा है वही आम जनता का अमन चैन भी लगातार छीन रहा है। पीड़ितों का मानना है कि कांग्रेस का दावा अब होगा न्याय सिर्फ शिगूफा तो नहीं ? दरअसल बीते चार सालो में उन अफसरों की पौ बारह है ,जो सरकार चला रहे है। उनकी काली करतूतों की सुध लेने वाला कोई नहीं। यह भी बताते है कि कारोबारी अफसरों का व्यापार कई जिलों में फैला हुआ है।
न्यूज़ टुडे को प्राप्त जानकारी के मुताबिक दागी अफसरों के नाते रिश्तेदारों और उनकी शैल कंपनियों को देख सुनकर आप हैरान हो जायेंगे। फिलहाल पीड़ितों को अब अदालत से ही राहत की उम्मीद है।
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छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले का जनहित से जुड़ा एक मामला अदालत में सुर्खियां बटोर रहा है। पीड़ितों ने परिवाद दाखिल कर अदालत से न्याय की गुहार लगाईं है। इस परिवाद में आरोपी बनाए गए लोगो के खिलाफ IPC की धारा 420,467,468,471 अपराध दर्ज करने की मांग की गई है।दुर्ग के अभय कुमार शुक्ला-जामुल भिलाई निवासी ने एक परिवाद दाखिल कर मेसर्स वेदप्रकाश चोपड़ा एंड कंपनी और उनके पार्टनर अलोक लुनिया एवं श्रीमती रेहाना टुटेजा -दुर्ग,अनिल टुटेजा-तत्कालीन आयुक्त नगर पालिक निगम भिलाई ,जीएस ताम्रकार तत्कालीन सहायक अभियंता दुर्ग और सहायक संचालक नगर एवं ग्राम निवेश दुर्ग के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग की है।
परिवाद में कहा गया है कि फरियादी सुन्दर विहार कालोनी वेलफेयर सोसायटी का अध्यक्ष है। इस सोसायटी में 10 पदाधिकारी और 34 सदस्यगण है। इन्होने श्रीमती रेहाना टुटेजा से प्लाट क्रय किया है। प्लाट की रजिस्ट्री समेत अन्य दस्तावेजों में रेहाना टुटेजा और अलोक लुनिया ने कॉलोनी वासियों को नियमानुसार तमाम मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का वादा किया था।
इसके लिए पीड़ितों ने मोटी रकम दोनों को चुकाई थी। परिवाद के अनुसार बिल्डर ने सड़क,बिजली,पानी, सीवरेज,निकासी,सेप्टिक टैंक,ड्रेनेज सिस्टम समेत अन्य मुलभुत सुविधाओं को जुटाए बगैर नगर निगम एवं नगर ग्राम निवेश विभाग से तमाम अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल कर लिए।
यही नहीं कई एकड़ में फैली इस आवासीय कालोनी के बंधक बनाए गए प्लॉटों को भी मुक्त करा लिया। परिवाद में बताया गया है कि मूलभूत सुविधाओं को बगैर जुटाए इस बिल्डर को शासन ने स्वंतंत्र कर दिया। जबकि पीड़ित शासन के अधिकारियों और विभागों को असलियत से वाकिफ कराते रहे। यहां तक कि पीड़ितों के साथ हुई धोखाधड़ी के सबूत और शिकायत सौंपे जाने के बावजूद पुलिस ने मामले की सुध तक नहीं ली। बताते है कि अधिकारियों के प्रभाव में पुलिस ने मामले को सिविल मैटर करार देकर किनारा कर लिया।
पीड़ितों के मुताबिक धोखाधड़ी के इस तरह के कई मामलों में पुलिस पहले भी अपराध दर्ज कर अदालत में प्रकरण प्रस्तुत कर चुकी है,लेकिन इस मामले की पुलिस ने सुध तक नहीं ली। पीड़ितों की दलील है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी अधिकारी अनिल टुटेजा के प्रभाव के चलते बिल्डरों को उपकृत किया गया है,उन्हें कई फर्जी दस्तावेज टुटेजा के हस्तक्षेप से प्राप्त हुए है। रेरा भी चुप रहा। परिवाद में कहा गया है कि पीड़ितों ने अपनी जीवन भर की गाढ़ी कमाई से यह प्लाट ख़रीदे थे। लेकिन ठगे गए। पीड़ितों ने हैरानी जताई की बगैर भौतिक सत्यापन किए टुटेजा के निर्देश पर अधिकारियों ने कागजी घोड़े दौड़ा दिए।
उनके मुताबिक प्रभावशील बिल्डरों और अधिकारियों की कार्यप्रणाली के चलते उन्हें दस्तावेज जुटाने में भी कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। उन्होंने बड़ी मुश्किल से सूचना के अधिकार के तहत दस्तावेज जुटा कर अदालत की शरण ली है।न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ ने परिवाद में आरोपी बनाए गए लोगो से उनका पक्ष जानने का प्रयास किया,लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।