फिर विवादों में घिरे छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री, दवा घोटाले में शामिल कंपनी को 90 करोड़ के भुगतान को हरी – झंडी, मुख्यमंत्री साय के सुशासन और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस नीति की गरिमा से समझौता नहीं, निष्ठावान सरकारी मुलाजिमों की गुहार…..

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य विभाग में सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ़ करने माफिया फिर हावी हो गए है। विभाग में घोटालों और भ्रष्टाचार से बचने के लिए दो दिन पहले ही जैम पोर्टल से खरीदी करने का फैसला किया गया है। लेकिन इसके साथ ही उन दगाबाज कंपनियों के पुराने बिलों के भुगतान की राह भी तय कर दी गई है, जिनका नाम दवा घोटाले में अव्वल नंबर पर है। दरअसल, CAG की रिपोर्ट के बाद कई ऐसी कंपनियों का भुगतान पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में रुक गया था, जिनकी दवा, सप्लाई हुए बगैर ही ना केवल दस्तावेजों में दर्ज हो गई, बल्कि उनकी खपत इतनी अधिक दर्शाई गई की मरीज भी सुनकर बेहोश हो जाये ? प्रति मरीज दवा की खपत के आंकड़े आश्चर्यजनक है। बताया जाता है कि दवा बाजार में ऐसे कई माफिया थे, जिन्होंने कोरोना काल में निर्धारित सरकारी दरों और मात्रा से 4 गुना अधिक दवाओं की आपूर्ति की। दवा माफियाओं की एक कंपनी को फर्जी भुगतान के 90 करोड़ में से 50 करोड़ का भुगतान तय कर बिल ट्रेजरी भेज दिया गया है।

सूत्र तस्दीक करते है कि सौंदा 50 फीसदी पर तय हुआ है। उधर बिलों के भुगतान को लेकर ट्रेजरी के पदस्थ अधिकारी हैरत में है। उनका मानना है कि ऐसे भुगतान पर रोक के बावजूद मंत्री जी आखिर क्यों आहरण के लिए दबाव बना रहे है। आपदा में भ्रष्टाचार का अवसर तलाशने वाली ऐसी कंपनियों ने 90 से 100 करोड़ के टर्नओवर को तोड़ते हुए CGMSC की खरीदी 400 से 500 करोड़ तक पहुंचा दी। भूपे राज में अंजाम दिए गए हैरतअंगेज दवा घोटाले को तत्कालीन मुख्य विपक्ष दल बीजेपी के विधायकों ने सदन में उठाया था। उन्होंने जनहित में ऐसी कंपनियों की जांच और भुगतान रोकने की मांग की थी। आखिरकार भुगतान रोका गया, लेकिन मौजूदा बीजेपी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री के द्वारा बगैर किसी ठोस जांच पड़ताल के ऐसी विवादित कंपनियों के बिलों के भुगतान को हरी – झंडी दे दी गई है, उनके बिलों की भुगतान की प्रक्रिया शुरू होने से विभाग के कई अफसर पसोपेश में है। उन्हें मंत्री जी की कार्यप्रणाली पर अफ़सोस हो रहा है।

कुछ पीड़ित बाबू और अफसरों ने तस्दीक की है कि ट्रेजरी में लगभग 90 करोड़ का बिल जल्द से जल्द पहुंचाने को लेकर उन पर दबाव की स्थिति है, इसी हफ्ते बिल क्लियर करने का फरमान सुना दिया गया है। पीड़ितों मुलाजिमों के मुताबिक जांच प्रक्रिया का नियमानुसार पालन किये बगैर जल्दबाजी में विवादित बिलों के भुगतान का ठीकरा उन पर फूटना तय है। उनके मुताबिक हाल ही के विधानसभा के मानसून सत्र में इस कंपनी से करोड़ो की दवा खरीदी का मामला सदन में गरमाया था। इस मामले को बीजेपी के माननीय सदस्यों ने ही सदन में उठाकर खरीदी प्रक्रिया पर सवालियां निशान लगाए थे, बावजूद इसके स्वास्थ्य मंत्री के खास सहयोगी द्वारा बिल भुगतान के लिए डाला जा रहा दबाव, गैर- वाजिब है, फ़िलहाल तो उन्हें तमाम खानापूर्ति कर उन बिलों को ट्रेजरी तक पहुंचाने की जवाबदारी सौंप दी गई है। बताया जाता है कि ऐसी विवादित कंपनियों ने स्वास्थ्य विभाग में पिछले माह से ही बिलों के भुगतान को लेकर अपने समीकरण फिट करना शुरू कर दिया था। हाल ही में सोशल मीडिया में दवाओं के नष्टीकरण का एक वीडियो भी वायरल हुआ था।

महासमुंद बसना मार्ग में बड़े पैमाने पर CGMSC की सरकारी सप्लाई वाली दवाओं को नष्ट किये जाने की जानकारी सामने आई थी। बताते है कि भूपे राज में ओवर पर्चेजिंग के चलते गोदामों में रखा स्टॉक गैर-क़ानूनी रूप से नष्ट किया गया था। इसका मकसद नए सिरे से फिर उन दवाओं की आपूर्ति से जुड़ा बताया जाता है। जानकार यह भी तस्दीक करते है कि बीजेपी विधायक धरमलाल कौशिक ने ऐसी कंपनियों से खरीदी गई दवाओं और उनसे जुड़ी शिकायतों के साथ CGMSC की मंशा पर ध्यानाकर्षण के जरिये सरकार का ध्यानाकृष्ट कराया था। उन्होंने शिकायतों और जांच -कार्यवाही को लेकर बीते 3 सालों का ब्यौरा भी माँगा था। इस दौरान स्वास्थ्य मंत्री ने सदन को समुचित कार्यवाही का भरोसा भी दिलाया था। लेकिन अब बताया जा रहा है कि विधानसभा सत्र के समाप्त होने के बाद से मंत्री जी की कार्यप्रणाली ठीक वैसी ही हो गई है, जो भूपे राज में कई मंत्रियों की नजर आती थी।

सूत्रों के मुताबिक मंत्री जी के किसी खास सहयोगी सरकारी मुलाजिम ‘गुप्ता’ नामक शख्स के माध्यम से ऐसी घोटालेबाज कंपनियों ने एक बार फिर स्वास्थ्य विभाग में अपनी जड़े जमाना शुरू कर दी है। विवादित कंपनियों के बिलों के भुगतान को लेकर स्वास्थ्य विभाग के कई जिम्मेदार अधिकारी हैरत में बताये जाते है। लेकिन बताते है कि अब ट्रेजरी के अफसर भी ऐसे बिलों के भुगतान को लेकर दो -चार हो रहे है। उन्हें भी बिलों के जल्द भुगतान की हिदायत दी जा रही है। विभागीय कर्मी बताते है कि इस ‘गुप्ता’ नामक शख्स को मंत्री जी की खास फरमाइश पर वर्क डिपार्टमेंट से प्रतिनियुक्ति पर CGMSC के कंस्ट्रक्शन विंग में SDO के पद पर बैठाया गया है। लेकिन ये साहब अपना मूल कार्य छोड़ दवा माफियाओं के संकटमोचक के रूप में नई जिम्मेदारी संभाल रहे है। उनकी कार्यप्रणाली से निष्ठावान अधिकारी दो – चार हो रहे है, विभाग में कमीशनखोरी और भ्रष्टाचार को एक बार फिर हवा मिल रही है।