बिलासपुर/रायपुर। छत्तीसगढ़ कैडर के सीनियर अधिकारी IPS जीपी सिंह को बिलासपुर हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है । हाईकोर्ट ने उस F.I.R.पर ही रोक लगा दी है, जिसके तहत उनकी गिरफ्तारी की गई थी। हाईकोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। मामला षडयंत्र और नौकरशाही के राजनीतिकरण से जुड़ा है। इसके चलते एक वरिष्ठ IPS अधिकारी को बुरी तरह से प्रताड़ित किया गया था। राज्य की तत्कालीन भू-पे सरकार ने पीड़ित IPS अधिकारी जीपी सिंह के खिलाफ एक के बाद एक मामले दर्ज किए थे, फिर गैर कानूनी रूप से उन्हें गिरफ्तार भी किया था। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के बाद उनके खिलाफ दर्ज F.I.R. पर ही रोक लगा दी है।
छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय और तत्कालीन भू-पे सरकार के दौर में चलनशील IPS अधिकारियों की कार्यप्रणाली चर्चा में है। उनके द्वारा दर्ज झूठे मामलों का मूल्यांकन अब कोर्ट में हो रहा है। यहां सुनवाई के दौरान भू-पे के क्रिया कलापों को लेकर तत्कालीन छत्तीसगढ़ शासन की जमकर फजीहत हो रही है। इसके पूर्व दिल्ली CAT ने चार सप्ताह में जीपी सिंह से जुड़े सभी मामलों को निराकृत कर बहाल किए जाने का आदेश राज्य सरकार को दिया है। CAT के आदेश के बाद जीपी सिंह को हाईकोर्ट बिलासपुर से भी अब बड़ी राहत मिली है। कोर्ट ने जीपी सिंह पर दर्ज F.I.R. पर रोक लगा दी है। इससे नौकरशाही में उत्साह देखा जा रहा है।
बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में नौकरशाही का राजनीतिकरण कर दिया गया है। भू-पे राज में उन अफसरों को भरपूर मौका दिया गया था जो षडयंत्र, उगाही और अपराधों को अंजाम देने में कोई कसर बाकी नही छोड़ते थे। पुलिस मुख्यालय में बीजेपी और कांग्रेस जैसे राजनैतिक दलों से ज्यादा IPS अधिकारियों की राजनीति सुर्खियों मे है। भूू-पे राज में उंगलियों में गिने जाने वाले कुछ चुनिंदा IPS अधिकारियों ने गिरोह बनाकर महादेव ऐप सट्टा कारोबार को संचालित करने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। इसके लिए ऑल इंडिया सर्विस की आचार संहिता की भी जमकर धज्जियां उड़ाई गई थी।
इसके अलावा थानों से उगाही, F.I.R.के खात्मे और फर्जी प्रकरण दर्ज कर आम जनता को प्रताड़ित किए जाने के कई मामले सामने आए हैं। इसी कड़ी में तत्कालीन मुख्यमंत्री भू-पे बघेल ने वर्ष 2020- 2021 में EOW के तत्कालीन ADG जीपी सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला था। बताते हैं कि एक षडयंत्र के तहत 2001 बैच के IPS आनंद छाबड़ा, 2004 बैच के अजय यादव, 2005 बैच के शेख आरिफ और 2007 बैच के प्रशांत अग्रवाल ने IPS जीपी सिंह के खिलाफ फर्जी प्रकरण दर्ज किए थे। इन अफसरों का नाम ED की ECIR विवेचना और EOW में दर्ज प्रकरणों में भी है। ऐसे दागी अफसरों को नौकरी से बाहर का रास्ता दिखाने की मांग भी जोर पकड़ रही है।
जानकारी के मुताबिक भू-पे बघेल और उनकी उपसचिव सौम्या चौरसिया को खुश करने के लिए उपरोक्त दागी IPS अफसरों ने झूठे सबूत रच कर अपने ही वरिष्ठ अधिकारी जीपी सिंह और उनके परिजनों को बुरी तरह से प्रताड़ित किया था। यहां तक कि पीड़ित अधिकारी के 90 वर्षीय बुजुर्ग पिता का नाम भी F.I.R. में शामिल किया गया था, ताकि बीमार पिता की भी गिरफ्तारी की जा सके। हालाकि कोर्ट ने बुजुर्ग पिता की स्थिति से अवगत होकर फौरन उनकी जमानत भी स्वीकृत की थी। यह भी बताया जाता है कि जीपी सिंह की गिरफ्तारी से उनके परिजनों को गहरा धक्का लगा था। उन्हें झूठे मामले में फंसाने से उनके बुजुर्ग माता पिता गहरे सदमे में चले गए थे और तनावग्रस्त रहने के चलते उनका देहांत भी हो गया था।
राज्य की तत्कालीन कांग्रेस की भू-पे सरकार में गैर-कानूनी तथ्यों के साथ झूठी जानकारी एक साजिश के तहत केंद्र सरकार को भी भेजी गई थी। बताते हैं कि यह रिपोर्ट भी दागी IPS अफसरों ने तैयार की थी, ताकि ईमानदार अधिकारी जीपी सिंह को सिस्टम से बाहर किया जा सके। यह भी बताया जाता है कि तत्कालीन छत्तीसगढ़ शासन के झूठे तथ्यों पर विश्वास कर केंद्र ने जीपी सिंह की सेवाएं समाप्त कर दी थी, लेकिन अब अदालत में दूध का दूध और पानी का पानी साफ हो रहा है।
भू-पे बघेल और उसकी टोली का झूठ-फरेब जनता के सामने आ रहा है। बीजेपी की विष्णुदेव साय सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती पुलिस की छवि सुधारना है। दागी IPS अफसरों के खिलाफ कार्यवाही को लेकर अदालत से लेकर केंद्रीय जांच एजेंसियों के दफ्तरों तक गहमा गहमी देखी जा रही है। फिलहाल मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने बेहतर पुलिसिंग के लिए ठोस कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। माना जा रहा है कि लोकसभा चुनाव के बाद दागी अफसरों पर लगाम कसी जा सकती है।