रायपुर : प्रवर्तन निदेशालय द्वारा छत्तीसगढ़ में एक बड़े आबकारी घोटाले की जाँच जारी है। बताते है कि कोल खनन परिवहन घोटाले की छापेमारी के दौरान कुछ नेताओं, कारोबारियों और ठेकेदारों को ED ने अपने कब्जे में लिया था। इनसे व्यापक पूछताछ के बाद ED ने आबकारी विभाग के दफ्तर में भी छापेमारी की थी। सूत्रों के मुताबिक छापेमारी में एक बड़े शराब घोटाले का खुलासा हुआ है। इसकी जद में भी मुख्यमंत्री का कार्यालय शामिल बताया जाता है। सूत्रों के मुताबिक कोयले की तर्ज पर साहब का शराब का भी बड़ा कारोबार सुर्खियों में है।
बताते है कि राज्य में सरकारी और गैर सरकारी शराब का बड़ा कारोबार संचालित हो रहा है। इसमें डिस्लरी से सीधे तौर पर रोजाना लाखो लीटर शराब उत्पादित हो रही थी। लेकिन सरकारी दुकानों से बिकने वाली शराब का एक छोटा हिस्सा ही राजस्व के रूप में सरकारी तिजोरी में जमा कराया जाता था। जबकि बड़ा हिस्सा बघेलखंड के खजाने में जमा कराया जा रहा था। बताते है कि मात्र 4 सालो के भीतर मुख्यमंत्री बघेल के “कर कमलो” से शराब के कारोबार ने दिन दूनी और रात चौगुनी प्रगति की थी। लोगो के मुताबिक पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार की तुलना में कांग्रेस सरकार के राज में शहरों से लेकर गांव कस्बो तक यह कारोबार मजबूती के साथ अपनी जड़े जमा चूका है।
बताया जा रहा है कि बीजेपी शासन काल में बनाई गई शराब नीति को अपने अनुसार तोड़-मरोड़ कर उसे बघेलखंड ने अपनी आमदनी का मुख्य जरिया बना लिया था। इसके तहत सरकारी तंत्र के साथ मिलकर आउट सोर्सिंग गैंग हर माह लगभग 5 हजार करोड़ से ज्यादा की चपत सरकारी तिजोरी पर लगा रहा था। सूत्र बताते है कि आबकारी विभाग के कई जिम्मेदार अधिकारी विभागीय सचिव एपी त्रिपाठी के साथ मिलकर इस घोटाले को अंजाम दे रहे थे। बताया जाता है कि आबकारी विभाग की कमान ऐसे अफसरों के हाथो में सौपी जाती थी, जो राजस्व को सरकारी तिजोरी के बजाय बघेलखंड के हिस्सेदारों को सौप रहे थे।
बताते है कि हालिया छापेमारी में शराब कारोबारियों ने पूछताछ में ED को हकीकत से रूबरू करा दिया है। इसके चलते साहब की परेशानी बढ़ गई है। बताते है कि अब उन शराब कारोबारियों पर शिकंजा कसा जा रहा है जो आबकारी नीति और नियमो को लेकर अपना कारोबार करने पर जोर दे रहे थे। ऐसे कारोबारियों पर फर्जी प्रकरण दर्ज कर उन्हें ED को दिया गया अपना बयान बदलवाने पर विवश किया जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक ज्यादातर शराब कारोबारियों ने पिछले चार सालो का हिसाब किताब एजेंसियों के सामने रख दिया है।
बताते है कि कई डिस्लरी कारोबारियों की यूनिट पर बघेलखंड का कब्ज़ा है। सरकारी और गैरसरकारी तंत्र ने शराब का उत्पादन और वितरण पर एकाधिकार कायम कर रखा है। यह भी बताते है कि डिस्लरी से चौबीसो घंटे सिर्फ गैरकानूनी रूप से शराब की आपूर्ति होती है, महीने के आखिरी में आपूर्ति का हिसाब-किताब कर कच्चे में ही रकम का आदान-प्रदान होता था। इससे अर्जित मोटी रकम का ब्यौरा मुख्यमंत्री कार्यालय में पदस्थ सौम्या चौरसिया और अनिल टुटेजा को सौपा जाता था।
बताते है कि घोटाले के उजागर होने के बाद बघेलखंड में खलबली है। उसके कई भागीदार भूमिगत हो गए है, अंदेशा जाहिर किया जा रहा है कि जल्द ही एजेंसियां नशे के कई बड़े सौदागरों को अपने कब्जे में ले सकती है, खासतौर पर ऐसे भागीदारों को जो सरकारी राजस्व अपनी झोली में डाल रहे थे। सूत्रों के मुताबिक छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर इकठ्ठा होने वाली रकम रायपुर से लेकर देश के कई चर्चित हवाला कारोबारियों द्वारा ऑपरेट की जाती थी। इस कार्य में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से शामिल कई आढ़तियों और हवाला कारोबारियों से पूछताछ शुरू हो गई है।
बताया जा रहा है कि राज्य में वैध-अवैध शराब का सालाना कारोबार लगभग 20 हजार करोड़ से जयादा का है। इसका छोटा हिस्सा ही सरकारी तिजोरी में जमा कराया जा रहा था। बताते है कि साहब के धंधे को लेकर मुँह खोलने वाले उद्योगपतियों के खिलाफ अब फर्जी FIR दर्ज करने का सिलसिला शुरू हो गया है। उन्हें बयान बदलने के लिए सरकारी तंत्र के जरिये दबाव डाला जा रहा है। बताते है कि रायपुर बिलासपुर रायगढ़ और कोरबा में पदस्थ अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियो की कार्यप्रणाली पर ED की निगाहे टिकी हुई है।
बताते है कि बिलासपुर की तर्ज पर कोरबा और रायगढ़ में भी ED की जद में आये कारोबारियों और उद्योगपतियों को भी ED को दिया गया, बयान बदलवाने के लिए बघेलखंड जमकर हाथ-पैर मार रहा है। लेकिन कही भी उसकी दाल नहीं गल रही है। एजेंसियां उन सरकारी तत्वों की पहचान में जुटी है जो फर्जी मामले दर्ज कर तो कभी जाँच के नाम पर ED के गवाहों को उनका बयान बदलवाने के लिए माफियाओ की मदद में जुटा है। सूत्रों के मुताबिक पीड़ितों के द्वारा मामला संज्ञान में लाये जाने के बाद एजेंसियां सक्रीय हो गई है।
बताते है कि सबसे ख़राब हालत उन नेताओ की है जो एक ओर शराबबंदी लागू करने के मुद्दे पर अध्ययन अध्यापन और कई प्रकार के शोध कार्यो का दावा कर रहे है, वही दूसरी ओर डिस्लरी से सीधे शराब की सप्लाई कर गांव-गांव में शराब की नदी बहा रहे है। बताते है कि बघेलखंड अपने अपराधों से रोजाना बे नकाब हो रहा है, प्याज के छिलको की तरह उसके गुनाह एक के बाद एक सामने आ रहे है। इस बीच ऐसे डिस्लरी कारोबारी पसोपेश में है, जो कम से कम बेईमानी कर अपना चौपट होता कारोबार बचाने में जुटे थे।
पुरानी कहावत है, “खाया पीया कुछ नहीं, गिलास तोड़ा 75 पैसे दो”। बताते है कि ऐसी नौबत उन कारोबारियों की है, जो काले सच की तस्दीक कर रहे है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भ्रष्टाचार की जांच को सार्वजनिक रूप से जायज बता रहे है, जबकि उद्योगपतियों पर छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्यवाही उनके दावों और वादों की पोल खोल रही है।