जयपुर : देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी आखिर क्यों रिमोट कंट्रोल अपने पास रखना चाहती है | यूपीए शासन काल में पीएम मनमोहन सिंह का रिमोट गांधी परिवार के पास था | अब नया पार्टी अध्यक्ष भी चाबी भरने वाला नजर आ रहा है | हालाँकि अशोक गहलोत के रंग -ढंग से नहीं लगता की वो रिमोट कंट्रोल से ज्यादा दिनों तक उड़ान भर पाएंगे | फिर भी इस वक्त वे गाँधी परिवार के सबसे निष्ठावान नेता के रूप में अपनी पहचान बता रहे है | हालाँकि राहुल गाँधी के साथ उनके संबंध सोनिया जैसे घनिष्ठ नहीं बताए जाते |
इस वक्त राहुल गाँधी भारत जोड़ो यात्रा के जरिए अपनी खोई हुई जमीन को वापस मजबूत करने में जुटे है | जानकारों के मुताबिक 22 साल में पहली बार ऐसा हंगामा मचा है कि गांधी परिवार सियासी तौर पर खुद को बेहद असुरक्षित महसूस कर रहा है | गुलाम नबी आजाद समेत कांग्रेस और गाँधी परिवार के कई नेता पार्टी से किनारा कर चुके है | गांधी परिवार को पिछले कई दशक से जानने वाले बताते हैं कि अध्यक्ष पद को लेकर ऐसी छटपटाहट कभी देखने को नहीं मिली |
वर्ष 1991 में राजीव गांधी की असमय मौत की वजह से गाँधी परिवार का कोई भी सदस्य राजनीति से न तो जुड़ा हुआ था और न ही उनमें से किसी ने कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आने की अपनी कोई इच्छा ही जताई थी | राजीव की मौत के तकरीबन नौ बरस बीत जाने के बाद उनके अच्छे दोस्त कैप्टन सतीश शर्मा ने सोनिया गांधी को सक्रिय राजनीति में आने के लिए न सिर्फ मनाया बल्कि पार्टी की कमान अपने हाथ में लेने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के लिए भी तैयार किया था | इसके बाद सोनिया ने पलट कर नहीं देखा |
प्रणव मुखर्जी और अहमद पटेल. इन दोनों नेताओं को गांधी परिवार की आंख, कान व नाक समझा जाता था | उन्होंने ने भी सोनिया का खूब साथ दिया | बताते हैं कि जब साल 2004 में कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए ने केंद्र में अपनी सरकार बनाई तब भी तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहीं ज्यादा इन्हीं दो नेताओं की 10 जनपथ में तूती बोला करती थी |
इसे संयोग कहे कि कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव करवाने की मजबूरी भी ऐसे वक्त पर आ गई है जब गांधी परिवार के सबसे वफ़ादार माने जाने वाले दोनों ही नेता इस दुनिया में नहीं हैं | हालांकि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पिछले इतने सालों में गांधी परिवार को अपनी वफ़ादारी का सबूत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है |इसलिए वे इन दिनों सोनिया के आँखों के तारे बने हुए है
बावजूद इसके सीएम बने रहने को लेकर अभी वे जिस तरह की बयानबाजी कर रहे है , उसे देखते हुए ही राहुल गांधी को उदयपुर चिंतन शिविर के उस संकल्प की याद दिलानी पड़ी कि यहां हर नेता की औकात सिर्फ एक पद पर ही बने रहने की है. सो, खुद ही तय कीजिये कि इतनी पुरानी पार्टी का अध्यक्ष बनना है या फिर सीएम की कुर्सी से ही चिपके रहना है |
राहुल गांधी के नजदीकी सूत्र तो ये भी दावा करते हैं कि उन्होंने पार्टी के एक अंदरुनी सर्वे का जिक्र करते हुए ये भी साफ कर दिया कि राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मौजूदा सीएम की अगुवाई में 2023 में कांग्रेस दोनों ही राज्यों में मुँह की खाएगी | उसके बाद ही गहलोत को अपनी ये जिद छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा | लेकिन सचिन पायलट को अगले सीएम की रेस से बाहर रखने के लिए वे अब भी सक्रिय है |इसके बाद कयास लगाया जा रहा है कि पार्टी में राहुल और गहलोत के बीच भविष्य में शीत युद्ध ना शुरू हो जाए | गहलोत को जानने वाले बताते है कि वे ज्यादा दिनों तक रिमोट कण्ट्रोल से संचालित नहीं हो सकते |