बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए पदयात्रा की शुरुआत बुधवार को की गई है | जगदलपुर स्थित मां दंतेश्वरी मंदिर के दर्शन करने के पश्चात बड़ी संख्या में लोग बस में सवार होकर छत्तीसगढ़- ओडिशा सीमा स्थित भेजापदर ग्राम पहुंचे | बतादें कि यहीं इंद्रावती नदी छतीसगढ़ में प्रवेश करती है | स्थानीय ग्रामीणों के साथ नगरवासियों ने अभियान की शुरुआत इसी नदी तट से की | पदयात्रा में माता रुक्मणी सेवा संस्थान डिमरापाल के दो दर्जन से अधिक बच्चे,शहर की युवा,पुरुष और बड़ी संख्या में महिलाएं शामिल हुए | इंद्रावती बचाओ,बस्तर बचाओ के नारे के साथ पदयात्रा नदी के बीचो-बीच रेत और कटीले पेड़ पौधों के रास्तों होते हुए आगे बढ़ी | नदी किनारे पडने वाले गांव के लोगों ने जगह जगह पदयात्रियों का स्वागत किया | प्रत्येक गांव के लोग यात्रा में जुड़ते चले गए और अगले गांव तक पहुंचे |
बताया जा रहा है बस्तर की प्राणदायनी इंद्रावती नदी को बचाने के लिए लगातार 10 से 12 दिनों तक चित्रकूट तक पैदल यात्रा किया जाएगा | इस बीच लोगों का जन समर्थन भी यात्रा को प्राप्त हो रहा है | बस्तर के लोगों ने बताया इंद्रावती का कम होता जलस्तर भविष्य में जल संकट में तब्दील हो सकता है | अगर अभी वक्त रहते इसे बचाया नहीं या तो आने वाले भविष्य में इंद्रावती नदी किताबों में देखने और कहानियों में सुनने मिलेगी | इसका अस्तित्व खत्म हो जाएगी | पैदल यात्रियों ने कहा कि उनके यात्रा का उद्देश्य दोनों राज्य सरकारों का ध्यान आकर्षित कराना है | ताकि कातीगुड़ा डेम से ओडिशा सरकार से हुये अनुबंध के तहत पानी बस्तर को दें | क्योंकि बस्तर में एकमात्र नदी इंद्रावती है जो बस्तर के लोगों को पानी उपलब्ध कराती है | साथ ही जगदलपुर संभाग मुख्यालय में पेयजल का सबसे बड़ा स्रोत इंद्रावती नदी ही है | दोनों सरकारों पर दबाव बनाने के साथ-साथ जोरा नाला में अधूरे स्ट्रक्चर निर्माण को पूरा कराना उद्देश्य है |
बारिश के अलावा ग्रीष्म काल में भी इंद्रावती नदी में पानी हो इसलिए इस आंदोलन की शुरुआत हुई है, जो मांग पूरी होने तक जारी रहेगी,पद यात्रियों के मुताबिक इंद्रावती को बचाने के लिए चरणबद्ध आंदोलन किया जा रहा है | उन्होंने कहा कि नदी की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है और सरकार को इस ओर का ध्यानाकर्षण करना ही उनका उद्देश्य है | नदी में पानी कम और मैदान ज्यादा नजर आने लगा है | इसलिए उक्त आंदोलन प्रतिदिन सुबह शुरू होगी और 5 किलोमीटर तक यात्रा चलती रहेगी यह यात्रा चित्रकूट में संपन्न होगी,पदयात्री संपत झा ने कहा कि बस्तर की प्राणदायिनी नदी केवल बस्तर के लिए ही नहीं उन जीव जंतुओं के लिए भी है जो गर्मी के वक्त विपरीत परिस्थिति से गुजरते हैं | उन्होंने बताया कि भविष्य में अगर जल की कमी होगी तो इंसानों के साथ साथ जीव-जंतु भी इसकी चपेट में आएंगे | बेहतर होगा कि सरकारें इस ओर ध्यान दें ताकि बस्तर की आने वाली पीढ़ी इंद्रावती के जल का उपयोग कर सके |
पर्यावरणविद हेमंत कश्यप ने इस दौरान कहा की नदी को बचाने के साथ साथ प्रत्येक गांव में वृक्षारोपण करने की भी आवश्यकता है | वृक्षारोपण करने से लोगों को राहत तो मिलेगी ही इससे पर्यावरण को भी संतुलित किया जा सकता है | उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि संबंधित विभाग भी इस ओर ध्यान दें |