उपेंद्र डनसेना
रायगढ़ । संगीत चाहे किसी भी विधा की हो, दरअसल संगीतकार उस विधा का कल्चरल एम्बेस्डर होता है । जहां तक बांसुरी की बात है तो भगवान श्री कृष्ण ही बांसुरी के सबसे बड़े वादक हैं । इसलिए बांसुरी और वीणा को सबसे प्राचीन वाद माना गया है । देश के ख्यातनाम बांसुरी वादक रजत प्रसन्ना दिल्ली में आज मीडिया से चर्चा करते हुए अपने मन की यह बात कही ।
रायगढ़ के ऐतिहासिक और प्रतिष्ठापूर्ण चक्रधर समारोह में शिरकत करने पहुंचे रजत प्रसन्ना ने बताया कि उनके पिता रविशंकर प्रसन्ना की उनके गुरू रहे हैं उनका परिवार बनारस में रहते हुए पिछले चार सौ सालों से इस विधा को संजो कर रखे हुए हैं | रायगढ़ के चक्रधर समारोह में उनसे पहले उनके अग्रज और गुरू यहां अपनी प्रस्तुती दे चुके हैं | ऐसे में इस मंच पर खड़े होकर बजाना उनके लिए एक अभिनव चुनौती की तरह है । प्रसन्ना ने बताया कि बचपन से बांसुरी उनके होठों से लग गई और अब भी लगी हुई है । महज 12 साल की उम्र में उनका एलबम धरोहर 2 बाजार में आया था । कुछ साल पहले भटकाव के दौरान उन्होंने बॉवीवूड का रूख किया और श्रेया घोषाल, पंकज उदाध जैसे बॉलीवूड के नामचीन फनकारों और कई फिल्मों में अपने फन का मुजाहिरा किया । मगर शास्त्रीय संगीत से पारिवारिक लगाव होनें के कारण वे फिल्मी दुनिया को छोड़कर फिर से इस दुनिया में वापिस आकर यहां रंग चुके है । देश विदेश के कई ख्यातिलब्ध मंचों पर अपनी प्रस्तुती दे चुके है ।
रजत प्रसन्ना का कहना था कि अभिभावक अगर चाहें तो अपने बच्चों को सही दिशा दिखा सकते हैं और उन्हें इस दिशा में सही और संयुक्त प्रयास करने की जरूर है। नए फनकारों और बांसुरी के इस फन से रूबरू होनें वाले श्रोताओं के बारे में उन्होंने कहा कि लोग राग तलाशें कलाकार को नही । यदि ऐसा हो तो कला को अपने आप उंचाई के साथ-साथ कलाकार को भी उंचाई मिल जाती है ।