छत्तीसगढ़ में अपने फायदे के लिए आम मरीजों की जान “जोखिम” में क्यों डाल रही है ,  “सरकार” ? 108 एम्बुलेंस के संचालन को लेकर “मरीजों” की जान के साथ खिलवाड़ | मंत्री जी “सुस्त” , ठेकेदार “चुस्त” | 

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रायपुर / जब आप से यह सवाल किया जाये कि आप “MBBS” डॉक्टर से इलाज कराना पसंद करेंगे या फिर “खलबत्ता” छाप डॉक्टर से | जाहिर है , आपका जवाब होगा डिग्रीधारी “MBBS” डॉक्टर से | लेकिन कितनी हैरत करने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ का स्वास्थ्य विभाग और उसके मुख्य “कर्ताधर्ता” अपनी निजी स्वार्थ सिद्धि के लिए “108 एम्बुलेंस” का संचालन एक ऐसी कंपनी के हाथों में सौंप रहे है , जिसे “सिमिलर फिल्ड” में ऐसी “आपातकालीन” सेवाओं के संचालन का कोई ठोस “अनुभव” नहीं है | बताया जाता है कि मात्र 10 सामान्य एम्बुलेंस के जरिये “मुर्दा” ढोने में कार्यरत एक कंपनी प्रदेश के सभी जिलों में “108 एम्बुलेंस” का संचालन करेगी | ऐसे में मरीजों का क्या हाल होगा , यह सोचकर जनता पसोपेश में है | उधर ठेका हासिल होने के बाद यह कंपनी कर्मचारियों की “भर्ती प्रक्रिया” को लेकर सुर्ख़ियों में है | ड्राइवर समेत अन्य स्टाफ की भर्ती को लेकर रायपुर में बेरोजगार उम्मीदवारों का गुस्सा फूट रहा है |   
 

छत्तीसगढ़ में GVK नामक कंपनी इसके पूर्व 108 एम्बुलेंस का संचालन कर रही थी | लेकिन इस वर्ष हुए 108 एम्बुलेंस के ठेके में यह कंपनी प्रतियोगिता से बाहर हो गई |  GVK कंपनी अपने कार्यकाल में कभी ड्राइवरों की “हड़ताल” को लेकर सुर्ख़ियों में रही तो कभी उसके अधीन 108 एम्बुलेंस के ड्राइवरों पर यह आरोप भी लगा की वो घायल मरीजों को “सरकारी अस्पताल” पहुंचाने के बजाये ऐसे “निजी” अस्पतालों में पहुंचाते है जहां के डाक्टरों से उनकी “सांठगाठ” होती है | GVK का कांट्रेक्ट खत्म होने के बाद आम जनता को उम्मीद थी कि इस बार 108 एम्बुलेंस का संचालन “बेहतर” हाथों में सौंपा जायेगा | लेकिन प्रदेश की जनता के अरमानों पर उस समय पानी फिर गया जब स्वास्थ्य विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों और मंत्री जी ने पिछले वर्ष हुए “टेंडर” की महत्वपूर्ण शर्तों में “फेरबदल” को अपनी सहमति दे दी | टेंडर की “शर्तों” में “फेरबदल” का फैसला आखिर क्यों लिया गया ? इसका वैधानिक कारण ना तो अधिकारी बता रहे है , और ना विभागीय मंत्री ? दरअसल 108 एम्बुलेंस के संचालन के ठेके की पूर्ववर्ती “शर्ते” आखिर रातो-रात क्यों लचीली बनाई गई , यह बदलाव सवालों के घेरे में है ?  ठेके की “शर्तों” को बदलने से “जनता”  को अपनी जान का “जोखिम” नजर आने लगी है | जनता पूछने लगी है कि यदि किसी “मरीज” के साथ अनहोनी हुई , तो क्या उसकी जिम्मेदारी स्वास्थ्य विभाग के अफसर और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव लेंगे ? 

राज्य की जनता यह जानना चाहती है कि ट्रक , डम्फर और ऐसे ही भारी वाहनों के संचालन का अनुभव प्राप्त कंपनी क्या “108 एम्बुलेंस” का संचालन उतने ही “पेशेवर” तरीक़े से कर पायेगी जैसे कि इस तरह की “आपातकालीन” सेवाएं देने वाली कंपनी करती है ?  बताया जा रहा है कि 108 एम्बुलेंस के ठेके को एक खास कंपनी को सौंपे जाने के लिए टेंडर प्रक्रिया में उसकी “शर्ते” प्रभावित की गई | सुनियोजित “टेंडर” जारी होने के बाद “बिडर” को पर्याप्त समय भी नहीं दिया गया | इसके चलते देश के विभिन्न राज्यों में 108 एम्बुलेंस सेवा का संचालन करने वाली कई “पेशेवर” कंपनियां प्रतियोगिता से बाहर हो गई | नतीजतन स्वास्थ्य विभाग की “सरपरस्ती” में 108 एम्बुलेंस सेवा का संचालन ऐसे हाथों में आ गया जिसे ना तो “सिमिलर”  “फील्ड” का पर्याप्त अनुभव है , और ना ही देश के किसी राज्य अथवा प्रदेश के किसी जिले में इस कंपनी ने बेहतर ढंग से “एम्बुलेंस सेवा” के संचालन का अनुभव | 

“न्यूज टुडे छत्तीसगढ़” ने 108 एम्बुलेंस के संचालन के लिए जारी ठेकों की पूर्ववर्ती और वर्तमान तीन ऐसी महत्वपूर्ण “शर्तों” का खुलासा किया था , जिसमें रातो-रात बदलाव कर जिम्मेदार अधिकारियों ने प्रदेश की जनता के साथ “विश्वासघात” किया है | इस समाचार के प्रकाशन के बाद उम्मीद की जा रही थी कि स्वास्थ्य विभाग अथवा प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव “जनहित” के उन कारणों का खुलासा करेंगे , जिसे ध्यान में रखकर “108 एम्बुलेंस” के संचालन की “शर्ते” लचीली बनाई गई | वो यह भी उजागर करेंगे कि  “शर्तों” में बदलाव से “जनता” को फायदा होगा या फिर “स्वास्थ्य विभाग” या  “ठेकेदार” को ? 

दिलचस्प बात यह है कि जनता से जुड़े मुद्दों को लेकर “संवेदनशील” नजर आने वाले स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने भी इस “खबर” से अपनी “नजरे” फेर ली | इस मामले में बातचीत करने के लिए जब मंत्री जी से संपर्क किया गया तो उनका अधिकृत मोबाइल नंबर “बंद” पाया गया | स्वास्थ्य मंत्री के “कार्यालय” में लैंडलाइन “फोन” उठाने वाले शख्स ने पहले “मिलने” का कारण पूछा फिर “फोन” रख दिया | मंत्री जी के सहयोगी आनंद सागर से संपर्क किया गया तो उन्होंने ना तो फोन “रिसीव” किया और ना ही “कॉलबैक” | जाहिर है , स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की कार्यप्रणाली भी इस मुद्दे को लेकर  उतनी “पारदर्शितापूर्ण” नहीं नजर आ रही है , जैसा की वो दावा करते है |