गेंदलाल शुक्ला |
कोरबा । संयुक्त क्षेत्र के उद्यम भारत एल्यूमिनियम कंपनी लिमिटेड (बालको) में 23 सितंबर 2009 को हुए चिमनी हादसा के चालीस मृतकों के आश्रितों को अभी भी न्याय की प्रतीक्षा है । दस साल बाद भी न तो हादसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर दोष सिद्ध हो पाया है और न ही राज्य सरकार की ओर से कराई गयी न्यायिक जांच पर कोई कार्रवाई हो सकी है । सबसे त्रासदी पूर्ण स्थिति यह है कि बालको प्रबंधन ने सभी मृतकों के एक-एक आश्रितों को नौकरी देने की घोषणा के बावजूद अब तक एक भी व्यक्ति को नौकरी नहीं दी है । चिमनी हादसा में मृत बालको नगर के एक मात्र कामगार भोलासिंह की पत्नी ने बालको प्रबंधन से नौकरी मांगी तो उसे ठेका मजदूरी के लिए ठेके दार के पास भेज दिया गया । उसे अभी भी बालको में नियोजित नहीं किया गया है ।
तत्कालीन केन्द्र सरकार के नौ-रत्नों में शामिल भारत एल्युमिनियम कंपनी (बालको) का तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार ने सन 2001 में विनिवेश किया था । स्टरलाईट इंडस्ट्रीज ने 551 करोड़ रूपयों में बालको का 51 प्रतिशत शेयर हस्तगत कर प्रबंधन अपने हाथ में ले लिया था । तब विनिवेश के खिलाफ श्रमिक संघों ने देश के इतिहास में सबसे लम्बा और सबसे बड़ा 67 दिन का कामबंद आन्दोलन किया था । बहरहाल आन्दोलन समाप्त होने के बाद बालको के स्टरलाईट इण्डस्ट्रीज नियंत्रित प्रबंधन ने बालको संयंत्र का आधुनिकीकरण और विस्तार प्रारंभ किया । इसी योजना के तहत बालको में एक हजार दो सौ (1200) मेगावाट क्षमता युक्त ताप विद्युत संयंत्र का निर्माण किया जा रहा था । 23 सितंबर 2009 की शाम विद्युत संयंत्र की 240 मीटर ऊंची चिमनी सहसा ही ताश के पत्तों की तरह ढह गयी। इस हादसे में मौके पर मौजूद चालीस (40) कामगारों की मौत हो गयी थी ।
चिमनी हादसा के बाद प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह की सरकार ने दुर्घटना की जांच के लिए न्यायाधीश संदीप बख्शी जांच आयोग का गठन किया । दो वर्ष से अधिक समय तक चली न्यायिक जांच की रिपोर्ट राज्य सरकार को सौंप दी गयी है । इस बीच बालको नगर पुलिस ने हादसा को लेकर अपराधिक प्रकरण भी दर्ज किया । जांच के बाद प्रकरण न्यायालय में विचाराधीन है । चिमनी हादसा के जिम्मेदार लोगों के खिलाफ न तो न्यायिक जांच की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई हो सकी है और न ही न्यायालय में प्रस्तुत आपराधिक प्रकरण में कोई निर्णय हुआ है । मृतकों के परिजन अभी भी न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं ।
न्यायालयीन सूत्रों के अनुसार इस मामले में पिछले 4 वर्षों से छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से स्टे लगा हुआ है, जिसके कारण प्रकरण में सुनवाई ठप पड़ी हुई है । ना तो छत्तीसगढ़ की भाजपा नीत पूर्व सरकार ने मामले को आगे बढ़ाने में 3 सालों में कोई रुचि दिखाई और ना ही वर्तमान कांग्रेस सरकार इस मामले में रुचि लेकर प्रकरण के निराकरण की दिशा में कोई कार्रवाई कर रही है । हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और मामले में एक पक्षकार के वकील अशोक तिवारी ने बताया कि पिछले 4 वर्षों से मामले की सुनवाई हाईकोर्ट से स्टे के कारण रुकी हुई है । अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश कोरबा के न्यायालय में यह प्रकरण लंबित है । बालको प्रबंधन ने हाईकोर्ट से यह स्टे लिया है ।

