देश में आतंकवाद और विध्वंसक गतिविधियों की जांच के लिए गठित शीर्ष संस्था नैशनल इन्वेस्टिगेटिव एजेंसी “NIA” छत्तीसगढ़ में हंसी का पात्र बन गयी है | प्रदेश में चाय पान के ठेलो से लेकर सरकारी दफ्तरों और मंत्रालय में NIA की कार्यप्रणाली चर्चा का विषय बनी हुई है | दरअसल लगभग सात साल बाद NIA को याद आया कि झीरम घाटी काण्ड में शामिल नक्सलियों की अब धरपकड़ कर ली जाए | लिहाजा NIA के जागरूक और सक्रिय अफसरों ने बस्तर के कई इलाको मे नक्सलियों की गिरफ्तारी के लिए पोस्टर वॉर छेड़ा है | झीरम घाटी हत्याकांड में शामिल नक्सलिओ की सूची जारी कर NIA ने उन पर 50 हजार से लेकर 9 लाख तक की इनामी रकम घोषित की है | जंगलो में चस्पा किये जा रहे पोस्टरों पर NIA ने यह भी दावा किया है कि सूचना देने वालो का नाम गोपनीय रखा जाएगा |

झीरम घाटी के अलावा सुकमा और दंतेवाड़ा जिले के कई गांव में इन दिनों NIA का यह पोस्टर ग्रामीणों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है | आम ग्रामीणों के अलावा इन इलाको में तैनात पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान भी NIA के पोस्टरों को देख कर मुस्कुरा रहे है | उनकी जुबान से निकले लफ्जो में ” हुजूर आते आते बहुत देर कर दी ” जैसा जुमला भी जरूर शामिल होता है | पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलो के जवान भी इस तथ्य को लेकर हैरत में है कि NIA ने झीरम घाटी के गुनाहगारो की धरपकड़ के लिए मात्र पोस्टर जारी करने में लगभग सात साल लगा दिए | दरअसल 25 मई 2013 को बस्तर की झीरम घाटी में नक्सलिओ ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा में शामिल लगभग सभी बड़े नेताओ और कार्यकर्ताओ को मौत के घाट उतार दिया था | इस घटना में 32 नेताओ और कार्यकर्ताओ को नक्सलियों ने अपनी गोलियों से भून डाला था | तत्कालीन केंद्र सरकार ने इस हत्याकांड की जांच की जवाबदारी NIA के कंधो पर सौपी थी | लेकिन NIA की जांच रिपोर्ट ना तो पीड़ितों के परिजनों के गले उतरी और ना ही राज्य की जनता और मौजूदा छत्तीसगढ़ सरकार के | नतीजतन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने झीरम घाटी मामले में NIA की जांच रिपोर्ट को दरकिनार करते हुए SIT का गठन किया था | छत्तीसगढ़ पुलिस महकमे के अफसरों को SIT में शामिल कर राज्य सरकार ने झीरम घाटी काण्ड की असलियत उजागर करने के निर्देश दिए थे | हालांकि SIT की जांच में रोड़ा अटकाते हुए NIA ने मामले की फ़ाइल SIT को सौपने से इंकार कर दिया था |

वैसे तो NIA में कई पेशेवर अधिकारियों की तैनाती देश में उसकी सक्रियता बढ़ाने के लिए की गयी थी | लेकिन झीरमघाटी हत्याकांड को लेकर उन अफसरों की कार्यप्रणाली पर अब सवालियां निशान लगने लगा है | खासकर उस वक्त जब छत्तीसगढ़ सरकार में NIA की जांच रिपोर्ट पर कई तथ्यों को लेकर सवालियां निशान लगाए गए थे | NIA के रुख से असंतुष्ट छत्तीसगढ़ सरकार ने इस घटना की जांच SIT से कराने का फैसला लेकर केंद्र सरकार को भी घेरा था | NIA के मौजूदा पोस्टर वॉर को छत्तीसगढ़ सरकार की SIT के गठन की कवायत से जोड़ कर देखा जा रहा है | लोगो को लग रहा है कि यदि छत्तीसगढ़ सरकार SIT का गठन नहीं करती तो शायद NIA पोस्टर वॉर तक नहीं छेड़ती |
NIA को झीरम घाटी के गुनाहगारो की धरपकड़ के लिए लगभग सात साल बाद पोस्टर वॉर छेड़ने की जरुरत क्यों पड़ी ? इसे लेकर मंथन का दौर जारी है | ग्रामीण पूछ रहे है, इस हत्याकांड में शामिल नक्सलियों की शिनाख्ती को लेकर उसे क्या इतने बरस लग गए ? क्या NIA के शीर्ष अफसरों की कार्यप्रणाली की खामियों के चलते झीरम घाटी के गुनाहगारो के खिलाफ यही अभियान समय पर छेड़ा नहीं जा सका | NIA को इतने सालो बाद होश आया कि चलो नक्सलियों पर इनाम घोषित कर उनकी धरपकड़ के लिए नए सिरे से अभियान छेड़ा जाए | गौरतलब है कि पिछले सात सालो में नक्सल प्रभावित इलाको से ऐसे कई नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया जो झीरम घाटी हत्याकांड में शामिल थे | यही नहीं ऐसे कई नक्सली भी विभिन्न वारदातों में मारे गए जिन्होंने इस नरसंहार में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी | लेकिन इन दोनों ही प्रकरणों में NIA ने इतने वर्षो में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई | उनसे ना तो इन मामलो को लेकर मैदानी इलाके में तैनात पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के अफसरों से कोई संपर्क किया और ना ही मारे गए नक्सलिओ के बारे में कोई ठोस जानकारी इकठ्ठा की | जाहिर है NIA का झीरम घाटी काण्ड को लेकर अचानक सक्रिय होना वाकई उसकी गंभीरता है या सिर्फ फेस सेविंग की कवायत मात्र | बहरहाल बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ NIA का पोस्टर वॉर कितना कारगर होगा यह तो वक्त ही बताएगा |
