गेंदलाल शुक्ला
कोरबा । नगरीय निकाय चुनाव करीब आ गया है । इसके साथ ही चार हजार करोड़ रूपयों के पंचवर्षीय बजट के धनाड्य नगर पालिक निगम कोरबा में किसका परचम फहरेगा यह सवाल लोगों के जेहन में गूंजने लगा है । यहां मुख्य मुकाबला कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच होना है, अब तक हुए चार चुनावों में तीन बार भाजपा को और एक बार कांग्रेस को नगर सत्ता पर काबिज होने का अवसर मिला है । नगर पालिक निगम कोरबा का गठन विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण (साडा) कोरबा को विद्यटित कर सन 1998 में किया गया था ।
नगर निगम गठन के बाद सन् 2000 में हुए पहले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जीत हासिल की थी। अनुसूचित जनजाति (मुक्त) के लिए आरिक्षत महापौर पद भाजपा नेत्री श्यामकंवर ने कांग्रेस के दिग्गज नेता बोधराम कंवर के अनुज बी.पी.कंवर को परास्त किया था । तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और श्याम कंवर को नगर निगम क्षेत्र के विकास के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी । उन पर दलबदल का भी भारी दबाव था, लेकिन उन्होंने कठिनाई से मुकाबला का रास्ता चुना । वर्ष 2005 में नगर निगम का दूसरा चुनाव आया । भाजपा ने एक बार फिर बाजी मारी । सामान्य (मुक्त) महापौर के पद पर लखनलाल देवांगन ने शहर के जाने माने व्यवसायी रमेश जायसवाल को पटखनी दी थी । इस समय तक प्रदेश में भाजपा की सरकार बन चुकी थी । वर्ष 2010 तक लखनलाल देवांगन के कार्याकाल में विकास के नये आयाम स्थापित हुए। झुग्गी-झोपड़ी और ग्रामीण क्षेत्र से लगाकर शहरी क्षेत्र में सर्वांगीण विकास हुए । नतीजा यह हुआ कि नगर निगम का 2010 में तीसरा चुनाव हुआ, तो भाजपा के जोगेश लाम्बा ने बड़ी ही आसानी के साथ कांग्रेस के हरीश परसाई को हार का मजा चखा दिया । जोगेश लाम्बा ने अपने कार्यकाल में अनेक गुणवत्ता पूर्ण दीर्घकालिक विकास कार्य किये । नयी सोच और नयी योजनाओं को जमीन पर उतारा । निगम को तीन सौ करोड़ की महत्वाकांक्षी नलजल योजना उनकी ही देन है । लेकिन उनका कठोर अनुशासन आमलोगों को रास नहीं आया । अनेक महत्वपूर्ण विकास कार्यों को अंजाम देने के बावजूद सन् 2013 में उन्हें कोरबा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा गया तो वे बुरी तरह से हार गये । विधानसभा चुनाव में जोगेश लाम्बा की यह हार-2015 के नगर निगम चुनाव में भाजपा पर भारी पड़ी ।
लगातार 15 वर्षों से नगर सत्ता पर काबिज भाजपा को कांग्रेस की रेणु अग्रवाल ने पहली बार हार का दर्पण दिखाया । भाजपा की हरिकांति दुबे करीब तीन हजार मतों के अंतर से पराजित हुई । भाजपा की हार का एक बड़ा कारण पार्टी के नेताओं के कथित भीतरघात को माना जाता है । हालांकि दूसरी ओर महापौर की टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस की दिग्गज नेता उषा तिवारी ने पार्टी से बगावत कर दी थी और निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गयी थीं । लेकिन समझा जाता है कि उनकी उम्मीदवारी से भाजपा का जातीय समीकरण बिगड़ गया और उसके परम्परागत समर्थक ब्राम्हण मतदाता बंट गये, जिसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिला । इस बीच वर्ष 1998 में 30 करोड़ 74 लाख रूपयों के अल्प बजट से प्रारंभ हुआ नगर पालिक निगम कोरबा का वार्षिक बजट 07 सौ करोड़ रूपये पहुंच गया है । अब नगर पालिक निगम कोरबा न केवल राजनीतिक दलों और नेताओं के लिए संसाधन की दृष्टि से महत्वपूर्ण हो गया बल्कि उनकी प्रतिष्ठा से भी जुड़ गया है । लिहांजा दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों में निगम चुनाव में खंदक की लड़ाई होने लगी है ।
बहरहाल नवम्बर-दिसंबर में नगर निगम कोरबा का पांचवा चुनाव होना है । इस बार महापौर का पद ओ.बी.सी. (मुक्त) के लिए रिजर्व है । दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों में पार्टी के नेता टिकट के जुगाड़ में जुट गये हैं । सबकी नजर चार हजार करोड़ रूपयों के भारी भरकम बजट पर और महापौर के रूप में मिलने वाली सुविधाओं तथा मान-सम्मान पर गड़ी हुई है । देखना है- इस चुनाव में किसकी लाटरी निकलती है ।
