नई दिल्ली / कोरोना काल में मजूदरों की आवाजाही ने ना केवल आम लोगों के बल्कि सरकार की नाक में भी दम कर दिए था | श्रमिकों को तीन माह तक मुफ्त राशन, दवा और रहने का प्रबंध नियोक्ताओं से नौकरी से ना निकालने और वेतन कटौती नहीं करने के पीएम मोदी के फरमान के बावजूद देश भर में मजदूरों ने अचानक अपनी घर की राह पकड़ ली थी | लॉकडाउन तोड़ सडकों पर मजदूरों के आ जाने से सरकार को ट्रेने चलानी पड़ी | बसों का इंतज़ाम करना पड़ा | यही नहीं मजदूरों के इस रुख के चलते कोरोना संक्रमण और उफान पर आ गया | इस दौरान सबसे ज्यादा भयावह दृश्य उस समय दिखाई दिया जब मजदूरों को वापस पैदल अपने घर लौटते देखा गया। कोरोना के खौफ के चलते लाखों मजदूर पैदल चलकर अपने प्रदेशों में लौटे | इस बीच कितने मजदूर अपने घर वापस लौटे और कितने फिर वापस काम पर आए, इसका आंकड़ा ना तो सरकार के पास है और ना ही किसी सामाजिक संस्था के पास।
केंद्र सरकार उस समय बगले झाकने लगी थी जब लोकसभा में एक सवाल के दौरान उसने कहा था कि कोरोना काल में मजदूरों की आवाजाही का आंकड़ा उसके पास नहीं है | हालाँकि अब सरकार ने इससे सबक लेकर भविष्य के लिए तैयारी करना शुरू कर दी है। देश में पहली बार श्रमिकों की गणना का बीड़ा उठाया गया है | केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने देशव्यापी श्रमगणना की तैयारी की है। मंत्रालय के तहत काम करने वाला लेबर ब्यूरो अब देश में हर पेशे से जुड़े व्यक्ति की गणना करेगा। इसमें देश में कितने डॉक्टर हैं, कितने इंजीनियर हैं, कितने वकील और सीए हैं के साथ-साथ कितने मजदूर, माली, कुक और ड्राइवर की गणना को भी शामिल किया जाएगा। बताया जा रहा है कि जनवरी 2021 से सर्वे की शुरुआत हो सकती है।
अभी यह गिनती हर छह महीने और भविष्य में हर तीन महीने में की जाएगी। कमिटी के सदस्य और श्रम ब्यूरो के महानिदेशक डीपीएस नेगी ने बताया कि यह गणना वैज्ञानिक सर्वे के आधार पर की जाएगी। सर्वे के तरीके पर अगले 15 दिन में स्पष्ट नीति सामने आ जाएगी।उन्होंने बताया कि सर्वे में जिला स्तर पर फैक्ट्री, दफ्तर, अस्पताल और आरडब्ल्यूए जैसे संस्थानों से पेशेवरों का आंकड़ा लिया जाएगा। इसके साथ हर जिले में सीमित हाउसहोल्ड सर्वे भी किए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि आंकड़ा जिला, राज्य और केंद्र स्तर पर तैयार किया जाएगा। सर्वे टीम का प्रशिक्षण भी अगले दो महीने में पूरा किया जाएगा।
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उन्होंने बताया कि श्रमगणना की जरूरत इसलिए भी है क्योंकि राज्य कामगारों-पेशेवरों की सूचना समय पर नहीं मिलती या फिर नियोक्ता इसे देने में देरी करते हैं। उन्होंने कहा कि अब कानून में बदलाव करके लेबर ब्यूरो को इसके लिए पूरी तरह से अधिकार दिया गया है। उन्होंने बताया कि इसके लिए सभी पेशेवरों को सोशल सिक्योरिटी नेटवर्क से जोड़ा जाएगा। उनके मुताबिक आंकड़ों के आधार पर नीतियों में अपेक्षित बदलाव किए जाएंगे और कामगारों के वेतन पर भी विचार किया जाएगा।