अब जेल से छूटेगा टुटेजा ? हज़ारों करोड़ के गोलमाल के आरोपी के खिलाफ जांच एजेंसियां और साय सरकार की कमजोरी आई सामने, सुप्रीम कोर्ट ने ख़ारिज किये तर्क…. 

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दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में 36 हज़ार करोड़ के नान घोटाले, 700 करोड़ के कोल परिवहन घोटाले, 2200 करोड़ के शराब घोटाले, पुलिस मुख्यालय में 13 करोड़ की घटिया बुलेट प्रूफ जैकेट खरीद-फरोख्त के मुख्य आरोपी रिटायर्ड प्रमोटी आईएएस पर ‘सरकार की मेहरबानी’ सुर्ख़ियों में है। ताजा खबरों के मुताबिक राज्य के सबसे बड़े घोटालों को अंजाम देने वाले इस नौकरशाह की दलीलों के सामने केंद्र और राज्य सरकार की एजेंसियां बौनी साबित होते नजर आ रही है। इसकी बानगी देश की सुप्रीम कोर्ट में उस वक़्त नजर आई जब इस कुख्यात घोटालेबाज की दलीलों के सामने सरकार की दलीले कमजोर साबित हुई।

नतीजतन सुप्रीम कोर्ट ने एजेंसियों को जहाँ फटकार लगाई वही राज्य की बीजेपी सरकार को भी कटघरे में ला खड़ा किया है। राज्य के सीधे-साधे ही नहीं भोले-भाले मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मुख्य नीतिगत फैसले ‘भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस नीति’ सुप्रीम कोर्ट में तार-तार साबित हो रही है। दरअसल, केंद्र और राज्य की कमजोर दलीलों को सुनने के बाद सुको ने टुटेजा की जमानत अर्जी लगभग सुनिश्चित कर दी है। इस मामले की हालिया सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कथित छत्तीसगढ़ शराब घोटाले से संबंधित धनशोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा की गई पूर्व आईएएस अनिल टुटेजा की गिरफ्तारी में ‘परेशान करने वाली चीजें’ दिखती हैं, जैसी टिप्पणी कर एजेंसियों को हैरत में डाल दिया है।

शीर्ष अदालत ने ईडी द्वारा मामले में टुटेजा को गिरफ्तार करने में जल्दबाजी किए जाने पर पांच दिसंबर को हुई सुनवाई में नाराजगी व्यक्त की थी। पीठ ने कहा, ‘यह निंदनीय है। आप किसी व्यक्ति को आधी रात में कैसे गिरफ्तार कर सकते हैं? यह क्या हो रहा है, क्या यह इतना जरूरी था। आप उसे अगले दिन बुला सकते थे। वह कोई आतंकवादी नहीं था जो बम लेकर अंदर चला जाता।’ इसके बाद ED की ओर से पेश वरिष्ठ क़ानूनविद वकील राजू ने एजेंसी की कार्रवाई को सही ठहराने का तर्क देते हुए साफ किया कि टुटेजा के भूमिगत होने की आशंका थी, क्योंकि वह नोटिस की अनदेखी कर रहा था।

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कुख्यात आरोपी टुटेजा की गिरफ्तारी मामले के तथ्यों को ‘सुस्पष्ट’ बताया और कहा कि 20 अप्रैल को हुई पूर्व नौकरशाह की गिरफ्तारी में ‘परेशान करने वाली चीजें हैं। पीठ ने अपने आदेश में रेखांकित किया, ‘याचिकाकर्ता (अनिल टुटेजा) 20 अप्रैल 2024 को शाम करीब 4.30 बजे रायपुर स्थित एसीबी कार्यालय में बैठा था। सबसे पहले, उसे रात 12 बजे ईडी के सामने पेश होने का निर्देश देते हुए समन भेजा गया।’

न्यायालय ने कहा, ‘इसके बाद, जब वह एसीबी के कार्यालय में था, तब उसे एक और समन भेजा गया, जिसमें उसे शाम 5.30 बजे ईडी के सामने पेश होने के लिए कहा गया। इसके बाद उसे ईडी द्वारा लाई गई वैन में ईडी के कार्यालय ले जाया गया और रात भर पूछताछ की गई तथा सुबह 4 बजे गिरफ्तार कर लिया गया। तथ्य सुस्पष्ट हैं।’ इसने टुटेजा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी और अन्य वकीलों को अपील वापस लेने की अनुमति दे दी और उन्हें जमानत के लिए निचली अदालत जाने की छूट प्रदान कर दी। 

सुनवाई के दौरान सिंघवी ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 8 अप्रैल, 2024 को ईडी द्वारा दर्ज धनशोधन मामले को पूर्व में रद्द कर दिया था। उन्होंने दलील दी कि ईडी ने तीन दिन बाद उन्हीं तथ्यों और सामग्री के आधार पर एक नई ईसीआईआर (शिकायत) दर्ज की। न्यायमूर्ति ओका ने पूछा कि क्या ईडी दूसरे मामले के पंजीकरण को उचित ठहराने के लिए पहली ईसीआईआर की उसी सामग्री पर भरोसा कर सकता है, जिसे रद्द कर दिया गया था। राजू ने कहा कि दूसरी ईसीआईआर की जांच के दौरान धन शोधन रोकथाम अधिनियम 2002 की धारा 50 के तहत दर्ज किए गए बयानों सहित सभी प्रासंगिक दस्तावेज पहली ईसीआईआर के जांच अधिकारी से प्राप्त किए गए थे। उन्होंने तर्क दिया कि एकत्र की गई सामग्री रिकॉर्ड में रहेगी और आगे की कार्यवाही का आधार बन सकती है।

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि पहली ईसीआईआर को रद्द करना किसी विधेय अपराध की अनुपस्थिति पर आधारित था। अदालत ने कहा कि वह जांच की वैधता में नहीं जा रही है और वह यह देखना चाहती है कि क्या गिरफ्तारी अवैध थी। इसके बाद न्यायमूर्ति ओका ने सिंघवी से पूछा कि क्या वह इस मुद्दे पर विस्तृत निष्कर्ष चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर अदालत अपना तर्क दर्ज करती है, तो इसका जमानत पर असर पड़ सकता है। इसके बाद सिंघवी ने मामले में जमानत के लिए आवेदन करने की छूट के साथ याचिका वापस लेने की अनुमति मांगी।

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने निर्देश दिया, ‘जमानत के लिए आवेदन करने की छूट के साथ विशेष अनुमति याचिका का वापस लिए जाने के रूप में निपटारा किया जाता है और यदि मामले के विशिष्ट तथ्यों पर विचार करते हुए ऐसा कोई आवेदन किया जाता है, तो संबंधित विशेष अदालत जमानत आवेदन के निपटारे को आवश्यक प्राथमिकता देगी।’ इंडी का प्रतिनिधित्व कर रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने पीठ को सूचित किया कि एजेंसी ने ऐसी घटनाओं से बचने के लिए उपचारात्मक उपाय किए हैं और इस आशय की एक प्रेस विज्ञप्ति 29 अक्टूबर, 2024 को जारी की गई थी। 

छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री बघेल का खास सहयोगी और कई घोटालों के मुख्य आरोपी अनिल टुटेजा की अब रिहाई की कगार पर नजर आने लगी है। सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट में उसकी जमानत को लेकर प्रभावशील वकीलों ने खूब हाथ-पैर मारा था। लेकिन सरकारी एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठे नजर आ रही थी। सुको के गलियारों में चर्चा है कि टुटेजा को गिरफ्त में लेने के सरकारी प्रयास आखिर क्यों फिसड्डी साबित होते है। सरकारी तर्कों से आखिरकार जांच एजेंसियों की नाकामी भी सामने आई है। पूर्ववर्ती कांग्रेस की भूपे सरकार में अनिल टुटेजा की तूती बोला करती थी, उसे सुपर सीएम का दर्जा प्राप्त था। 

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट में कमजोर दलीलों के चलते राज्य की बीजेपी सरकार की साख दांव पर लग चुकी है। यह तथ्य जग-जाहिर है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी में काबिज होने के बाद मात्र 5 साल के भीतर भूपे और उसके गिरोह ने हज़ारों करोड़ों का साम्राज्य खड़ा किया है। ऐसे कुख्यात आरोपियों की रिहाई से ना केवल भ्रष्ट नौकरशाहों को बल मिलेगा, बल्कि छत्तीसगढ़ का एक बड़ा वर्ग गरीबी और निम्न वर्ग अमीरी की उचाईयां तय करेगा।

अब यह देखना गौरतलब होगा कि दर्जनों विभागों में गोलमाल कर सरकारी तिजोरी पर हाथ साफ करने वालों पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय सरकार नरम रुख अपनाएगी या फिर भ्रष्टचार के खिलाफ खुद की नीति ‘जीरो टॉलरेंस’ का समुचित पालन करेगी। राजनीति के जानकारों के मुताबिक सरल स्वभाव के मुख्यमंत्री को गुमराह कर अधिकारियों की एक टोली सिर्फ दीवा स्वप्न ही दिखा रही है। वही दूसरी ओर भ्रष्ट नौकरशाहों को ठिकाने लगाने वाली मोदी गारंटी का दम निकल रहा है। असल में प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी आम सभाओं में जिन घोटालेबाजों को सबक सिखाने का एलान कर उनकी राह तय कर दी थी। ऐसे दागी अफसरों और नेताओं की राज्य में बीजेपी सरकार के सत्ता में आने के बाद एक के बाद एक रिहाई सुनिश्चित हो रही है ?