दिल्ली/रायपुर: RAIPUR NEWS: छत्तीसगढ़ के 2200 करोड़ के शराब घोटाले की लंबित जांच शुरू होने से प्रशासनिक और राजनैतिक गलियारों में सरगर्मियां तेज है। EOW ने कांग्रेस राज में आबकारी अमले के चर्चित 18 अधिकारियों को नोटिस जारी कर, उनकी कर्तव्यनिष्ठा की जांच शुरू कर दी है। इन अधिकारियों पर अपनी पदस्थापना के दौरान आबकारी घोटाले में सहभागी बनने के गंभीर आरोप है। बताते है कि मात्र 5 वर्ष के भूपे शासन में ऐसे अधिकारियों की दिन दुगुनी और रात चौगुनी कमाई से साल दर साल एक बड़ा शराब घोटाला अंजाम दिया जा रहा था। आबकारी विभाग के उन प्रभावशील अधिकारियों पर अब ACB/EOW ने अपना शिकंजा कस दिया है। बताया जा रहा है कि लगभग 18 अधिकारियों को नोटिस की तामीली होने के बाद पूछताछ शुरू कर दी गई है।
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सूत्रों के मुताबिक तलब किये गए ज्यादातर अधिकारियों की माली हालत, अब 30 से 50 करोड़ की मजबूती की ओर रफ़्तार भर चुकी है। शराब घोटाले से कई अधिकारियों के नाते रिश्तेदारों से लेकर दूर-दराज की कंपनियों तक में निवेश बताया जाता है। उधर पूछताछ शुरू होने के बाद आबकारी अमले में खलबली मची है। लपेटे में आये कई अधिकारी अपना नाम गोपनीय रखने की मंशा जाहिर कर तस्दीक कर रहे है कि तत्कालीन मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही वे कार्य कर रहे थे।
उनके मुताबिक तत्कालीन आबकारी मंत्री कवासी लखमा सिर्फ नाम मात्र के मंत्री थे। विभाग का असल कारोबार प्राइवेट लोगों के हाथों में सौंप दिया गया था। अवैध वसूली और शराब की अफरा-तफरी से जुड़े मामलों की बैठके स्वयं तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल, उनके तत्कालीन सचिव त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर लिया करते थे।
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इन्ही बैठकों में घोटाले का ब्यौरा और भविष्य की योजनाओं पर विचार-विमर्श किया जाता था। उनके मुताबिक, घोटाले के सिस्टम से तत्कालीन मुख्यमंत्री का कार्यालय भी पूरी तरह से अवगत था। न्यूज़ टुडे छत्तीसगढ़ से चर्चा करते हुए, दो अधिकारियों ने यह भी साफ़ किया कि आबकारी घोटाले की जांच कर रही ED के खिलाफ ज्यादती करने के झूठे आरोप लगाने के लिए विभागीय अमले को पहले सचिव और उसके बाद मुख्यमंत्री द्वारा भी निर्देशित किया गया था। गौरतलब है कि घोटाले की जांच कर रही ED के खिलाफ आबकारी अमले ने कई शिकायते भी की थी। अब नोटिस जारी होने के बाद ऐसे अफसर अपनी बेगुनाही की फरियाद लगा रहे है।
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उनके द्वारा यह भी तथ्य गौरतलब बताया जा रहा है कि उपसचिव सौम्या और पूर्व मुख्यमंत्री के करीबी लोग समय-समय पर शराब बिक्री के 1 और 2 नंबर के रजिस्टर का अवलोकन किया करते थे। इसके अलावा भी घोटालों की जमी-जकड़ी परतों का खुलासा कर कई अफसरों ने तस्दीक किया है कि, उन्हें वैधानिक सरकारी संरक्षण प्राप्त हुआ तो वे पूर्व मुख्यमंत्री की असलियत को लेकर अपना बयान दर्ज करा सकते है।
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RAIPUR NEWS: जबकि अपना बचाव करते हुए दो अफसरों ने साफ़तौर पर कहा कि उनके द्वारा सरकारी निर्देशों का पालन किया गया था। ऐसे निर्देश तत्कालीन मुख्यमंत्री द्वारा कभी प्राइवेट लोगो से तो कभी वरिष्ठ अफसरों के द्वारा प्राप्त होते थे। अपनी बेगुनाही जाहिर करते हुए इन अफसरों ने यह भी कहा कि इस घोटाले से उनका कोई लेना-देना नहीं है। हालांकि, गैर-क़ानूनी आदेशों का पालन उनके द्वारा आखिर क्यों सुनिश्चित किया जा रहा था ? इसे लेकर उनका अपना तर्क था। उनके मुताबिक आदेश की अवहेलना के चलते कभी ट्रांसफर का तो कभी प्रताड़ित किये जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया था।
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राज्य के सबसे बड़े घोटालों में से एक शराब घोटाले की जांच अब वैधानिक रूप ले चुकी है। ACB/EOW ने कायदे-कानूनों के तहत अफसरों की जिम्मेदारी और उनके पक्ष को लेकर कार्यवाही शुरू कर दी है। उधर जानकार जता रहे है कि EOW भले ही कितना भी ठोस कदम उठा ले ? भ्रष्टाचारियों की गिरफ्तारी को लेकर उसे अंतिम मुहर के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय का दरवाजा ही खट-खटाना पड़ता है। लिहाजा राज्य की इस महत्वपूर्ण एजेंसी को अधिकारसंपन्न ‘फ्री हैंड’ दिया जाना जरुरी है। उनके मुताबिक दागी आबकारी अमले को घोटाले की असलियत सामने लाने के लिए सरकारी संरक्षण नितांत आवश्यक है।
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राज्य सरकार को उन अफसरों को वैधानिक दायरे में संरक्षण दिया जाना जरुरी है, जो पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की कार्यप्रणाली को लेकर अपना बयान दर्ज कराना चाहते है। ऐसे भी अधिकारी है, जो शराब घोटाले की अब तक की जांच को हास्यस्पद बताने में पीछे नहीं है। उनके मुताबिक घोटाले के तमाम डिजिटल सबूत भी विभाग में फैले पड़े है, उसका जब्ती पंचनामा तक नहीं बना है। दुर्भाग्य है कि अभी भी पूर्व मुख्यमंत्री बघेल को बचाया जा रहा है।
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यह गौरतलब है कि कई अफसरों ने घोटाले का ठीकरा तत्कालीन मुख्यमंत्री पर फोड़ा है। छत्तीसगढ़ की 10 माह पुरानी मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार की साख इन दिनों दांव पर लग चुकी है। पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के बचाव में नौकरशाही का एक धड़ा जोर-शोर से जुटा हुआ है। उनकी तिकड़म से कई मौकों पर बीजेपी की फजीहत भी हो रही है। सूत्र तस्दीक करते है कि अन्य घोटालों की तर्ज पर पूर्व मुख्यमंत्री बघेल को इस मामले में भी क्लीन चिट देने की तैयारी कर ली गई है। इसके लिए ACB/EOW के पर कतरने जैसी कवायत भी जोरो पर है।
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यह भी बताया जा रहा है कि कई दागी अधिकारियों को पूर्व मुख्यमंत्री भूपे का नाम जुबान पर ना लाने तक की हिदायत भी दी गई है। प्रदेश के राजनैतिक धरातल में EOW की कार्यवाही एक बड़ी चुनौती के रूप में देखी जा रही है। भ्रष्टाचार के खिलाफ बीजेपी सरकार की जीरो टॉलरेंस नीति का पूरा दारोमदार ACB/EOW पर निर्भर बताया जाता है। उधर एजेंसी के मुख्यालय में आबकारी अमले की खुलती जुबान को लेकर गहमा-गहमी भी देखी जा रही है। उसकी सक्रियता से घोटालेबाजों के माथे पर बल पड़ते नजर आने लगा है।
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छत्तीसगढ़ में नौकरशाही के नजरिये में बदलाव के आसार कम ही नजर आ रहे है। यहाँ नौकरशाही पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तर्ज पर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार पर भी हावी होती नजर आ रही है। प्रदेश के एक मुख्यमंत्री द्वारा जन आकांक्षाओं के विपरीत एक से बढ़ कर एक, कई घोटालों को अंजाम देने के बावजूद सरकारी एजेंसियां उसके गिरेबान में हाथ डालने तक में नाकाम हो रही है। दागी मुख्यमंत्री बघेल की गिरफ्तारी दूर की कौड़ी साबित हो रहा है। जबकि जनता पूछ रही है, प्रदेश का पहला इतना भ्रष्ट मुख्यमंत्री आखिर कब गिरफ्तार होगा ?
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उसकी खासम-खास उपसचिव इतने महीनों बाद भी जब जेल से नहीं छूट रही है तो क्या तमाम घोटालों को सिर्फ उसने अकेले ही अंजाम दिया था ? पूर्व मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं है ? बहरहाल प्रदेश के तमाम घोटालों में पूर्व मुख्यमंत्री की सहभागिता और सहमति को लेकर राजनीति गरमाई हुई है। सवाल किया जा रहा है कि आखिर क्यों भ्रष्टाचार के भू-पे को बचाया जा रहा है ? यही नहीं यदि पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की इन घोटालों में संलिप्तता नहीं पाई जा रही है, तो उन्हें क्लीन चिट देने में आखिर क्यों छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लेट-लतीफी की जा रही है। फ़िलहाल लोगों की निगाहे ACB/EOW के रुख पर टिकी है।