
दिल्ली / रायपुर : – छत्तीसगढ़ से लेकर दिल्ली में सत्ता के गलियारे से लेकर विपक्ष की दहलीज तक पूर्व मुख्यमंत्री बाप -बेटे के काले कारनामों की गूंज सुनाई दे रही है। राजनीति के सौदागरों की 5 वर्षो की काली करतूतें गाँव -कस्बों तक लोगों की जुबान पर है। इस बीच IT -ED, CBI और ACB -EOW जैसी महती जाँच एजेंसियां भी घोटालों के गुनहगारों के गिरेबान पर हाथ डालने के लिए एक्टिव मोड़ पर बताई जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद बचाव पक्ष के संकटमोचकों का नया पैतरा एक बार फिर सुर्खियां बटोर रहा है।

जानकारी के मुताबिक पूर्व दागी मुख्यमंत्री और उसके गिरोह से सम्बद्ध IPS अधिकारी विभिन्न घोटालों के सबूत नष्ट करने में अपने पद और प्रभाव के इस्तेमाल के मामले में अभी भी पीछे नहीं बताये जाते है। यह भी बताया जाता है कि आरोपियों की अग्रिम जमानत का मामला पंचर होने के बाद जाँच एजेंसियों के अरमानों पर पानी फेरने के लिए कुछ महत्वपूर्ण गवाहों और चश्मदीदों पर दबाव बनाये जाने की कवायतें जोर -शोर से शुरू कर दी गई है। इस तरो -ताजा मामले में भू -पे गिरोह के रणनीतिकार 2001 और 2005 बैच के IPS क्रमशः आंनद छाबड़ा और शेख आरिफ़ का नाम सामने आ रहा है। इन दोनों अधिकारियों के ठिकानों पर कुछ माह पूर्व CBI ने छापेमारी की थी।

जानकारी के मुताबिक केंद्रीय जाँच एजेंसियों के रुख को भांपते हुए घोटालों के सरगना और गिरोह के सदस्य नई मोर्चेबंदी में जुटे है। पूर्व मुख्यमंत्री को बचाने में जुटे IPS अधिकारीयों की कथित कार्यप्रणाली उच्च स्तरीय जाँच के दायरे में बताई जाती है। कई गवाह और चश्मदीदों की चिंताए लगातार बढ़ रही है, इनमे से एक नाम भिलाई के कारोबारी विजय भाटिया का भी बताया जाता है। सूत्रों के मुताबिक भू -पे गिरोह ने गवाहों को मुँह बंद रखने के लिए डराना -धमकाना शुरू कर दिया है। यह भी बताया जाता है कि जेल में बंद ASI चंद्र भूषण वर्मा और निखिल चंद्राकर पर भी बयान बदलने को लेकर हिदायत दी गई है, अन्यथा परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी गई है।

आपराधिक मामलो के जानकारों के मुताबिक रायपुर सेन्ट्रल जेल में बंद चैतन्य उर्फ़ बिट्टू बघेल ने विभिन्न घोटालो के आरोपियों से मेल -मुलाकात के लिए अपनी पूरी ताकत झोक दी है। दरअसल, इसी जेल में कई ऐसे गवाह और चश्मदीद भी जुडिशियल रिमांड पर अपना वक्त गुजार रहे है, जिनका मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने के बाद भू -पे से करीब का नाता था। इसी तर्ज पर दो दर्जन से ज्यादा उन दागी आबकारी अधिकारीयों पर भी डोरे डाले जा रहे है, जिनके खिलाफ ACB -EOW ने अदालत में चार्जशीट दाखिल की थी। बताया जा रहा है कि जेल की हवा खाने से बचने के लिए ऐसे आबकारी अधिकारी पूर्व मुख्यमंत्री के ”हमराह” साबित हो रहे है। जानकार तस्दीक कर रहे है कि सुप्रीम कोर्ट से झटका लगने के बाद आरोपी बाप -बेटे कई महत्वपूर्ण सबूतों को प्रभावित करने की क़वायतो पर जोर – शोर से जुटे हुए है।

उधर, सुप्रीम कोर्ट से कड़ी फटकार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बघेल ने दिल्ली से रायपुर का रुख कर लिया है। अब वे बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर होने वाली याचिका की तैयारी में व्यस्त बताये जाते है। दिल्ली से रायपुर की उड़ान भरने के बाद राजनैतिक हलकों से लेकर अदालती गलियारों में ” बघेल भुगतान ” चर्चा का विषय बन गया है। अग्रिम जमानत याचिका के विशेष फटकार भरे अदालती फ़रमान जारी होने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री का रुख भी सवालों के घेरे में बताया जाता है। सुप्रीम राहत पाने के लिए क़ानूनी सलाह और पैतरेबाजी पर मोटे भुगतान की चर्चा विभिन्न लॉ चैंबरों में खूब डिस्कस की जा रही है, कहते है कि हप्ते भर के भीतर पूर्व मुख्यमंत्री ने लगभग 5 करोड़ की रक़म फूंक डाली थी। बावजूद इसके फैसला सुनकर, बघेल के पैरों तले जमीन खिसक गई है।

यह ऐसा पहला मामला बताया जा रहा है, जिसमे राज्य के चर्चित घोटालो को रफा -दफा किये जाने के लिए सौ सुनार की और एक लौहार की कहावत को चरितार्थ करते हुए इतनी मोटी रक़म को हप्ते भर के भीतर ही फूंक दिया गया था। कई वरिष्ठ वकीलों की जुबान पर है कि क़ानूनी सलाह, मीडिया मैनेजमेंट और गैरकानूनी मामलों के तिकड़मी सलाहकारों पर किसी क्लाइन्ड द्वारा कोर्ट – कचहरी में इतनी अधिक धनराशि खर्च की गई हो। लेकिन न्याय के मंदिर में एजेंसियों पर दबाव बनाने की कोई भी युक्ति कारगर साबित नहीं हुई। पूर्व मुख्यमंत्री की अग्रिम और उनके पुत्र की जमानत याचिका को अद्वितीय मामला बताया जा रहा है।

”जहाँ चवन्नी दौड़ रही थी, रूपया भी अब वहां चल तक नहीं पा रहा है” क़ानूनी दांवपेच तैयार करने वाले एक कारखाने में पूर्व मुख्यमंत्री के ये उदगार कई वरिष्ठ वकीलों की जुबान पर है। बताते है कि अदालती फैसला सुनने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री इतने बिफरे थे कि असलियत उनकी जुबान पर आ गई। संकट – मोचकों से चर्चा के दौरान भू -पे की यह आपबीती चौंकाने वाली बताई जाती है। इसकी तस्दीक करते हुए कई शख्स साफ़ कर रहे है कि पूर्व मुख्यमंत्री का न्याय खरीदने का मंसूबा उस समय धरा की धरा रह गया, जब अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई शुरू हुई थी। उनके मुताबिक एक ही झटके में अदालत ने दूध का दूध और पानी का पानी साफ़ कर नई नजीर पेश कर दी। केंद्रीय जाँच एजेंसियों के अधिकारों में कटौती और घोटालो की जाँच पर लगाम लगाने जैसे मंसूबों से जुड़े तथ्यों पर सुनवाई के दौरान अदालत का रुख काफी सख्त नजर आया। सुप्रीम कोर्ट ने PMLA के सेक्शन 50 और 63 को चुनौती देने के लिए याचिकाकर्ता को अलग से रिट पेटिशन दाखिल करने के निर्देश दिए।

सुप्रीम कोर्ट से लौटाई गई अग्रिम जमानत याचिका के तथ्यों को लेकर लगभग आधा दर्जन लॉ चेंबरो में जूनियर वकीलों के बीच गहमा -गहमी भी दिखाई दे रही है। बताते है कि आरोपी बाप -बेटे की ओर से बिलासपुर हाईकोर्ट में आने वाले दिनों दायर होने वाली एक नई याचिका का ड्राफ्ट इसी लॉ चेंबर में तैयार होने की जानकारी भी सामने आई है। यह भी दावा किया जा रहा है कि केंद्र और राज्य सरकार की जाँच एजेंसियों ने अदालती फरमान के बाद पूर्व मुख्यमंत्री और उसके गिरोह की अर्थ व्यवस्था पर अपनी निगाहें गढ़ा दी है।

बता दें, सुप्रीम कोर्ट में छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री बघेल की दो याचिकाओं पर सुनवाई हुई थी। पूर्व मुख्यमंत्री ने एक याचिका में अपने आरोपी पुत्र का बचाव किया था। जबकि दूसरी में भू -पे बघेल ने अपनी गिरफ्तारी से सुरक्षा की मांग के साथ ही PMLA के सेक्शन 44 के दुरुपयोग को चुनौती दी थी। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने बघेल की ओर से दलील देते हुए कहा था कि देश में ये क्या हो रहा है? इस मामले में चार्जशीट दाखिल हो चुकी है लेकिन गिरफ्तार करने से पहले मजिस्ट्रेट की अनुमति तक नहीं ली जा रही है। किसी को भी किसी भी समय मनमाने तरीके से गिरफ्तार किया जा रहा है। फ़िलहाल, 3200 करोड़ के शराब घोटाले में राजनीति और क़ानूनी दांवपेचों का चखना लोगों को खूब भा रहा है, पीडित जनता घोटालों के सरग़ना की गिरफ़्तारी का बेशब्री से इंतजार है।