दिल्ली/रायपुर. छत्तीसगढ़ में सरकारी रकम के दुरुपयोग को लेकर प्रदेश के पूर्व खुफिया प्रमुख आनंद छाबड़ा एक बार फिर सुर्खियों में है। एसएस फंड के बेजा इस्तेमाल को लेकर उनके खिलाफ कार्यवाही की मांग जोर पकड़ रही है। महादेव एप घोटाले में शामिल रहे 2001 बैच के इस आईपीएस अधिकारी की कार्यप्रणाली के चलते सिर्फ मैदानी इलाकों ही नही बल्कि नक्सल प्रभावित इलाकों की जनता को भी बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ा है।बताते है कि मुखबिरी फंड की बड़ी रकम का गोलमाल कर दिए जाने से नक्सली उन्मूलन अभियान कई कठिनाइयों के दौर से गुजर रहा है। बस्तर के ज्यादातर इलाकों में पुलिस का सूचना तंत्र ठप्प हो जाने से नक्सलियों के हौसले एक बार फिर बुलंद हो गए थे। कांग्रेस के सत्ता से हाथ धोते ही बस्तर में अचानक कई लोगो को मौत के घाट उतार दिया गया था।
राज्य में बीजेपी के सत्ता संभालने के बाद से अचानक नक्सली वारदातो में आई तेजी के लिए पुलिस के खुफिया तंत्र पर उंगलियां उठ रही है। बताते है कि पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में एसएस फंड के सैकड़ों करोड़ रुपए हवाला के जरिए इधर से उधर ठिकाने लगा दिए गए थे। एसएस फंड सिर्फ कागजों में भुगतान तक ही सीमित रहा था। सूत्रों के मुताबिक तत्कालीन खुफिया प्रमुख आनंद छाबड़ा सिर्फ कागजों में ही फंड का इस्तेमाल कर रहे थे। जबकि ज्यादातर मुखबिरों को एक ढेला तक नही मिल रहा था। बताते है कि एसएस फंड का इतना अधिक दुरुपयोग और किसी नक्सल प्रभावित राज्यों में नही हुआ। जितना की छत्तीसगढ़ में इसका बेजा इस्तेमाल किया गया था। नक्सल प्रभावित बस्तर डिविजन में राज्य की पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलो को हाल ही में जानमाल का काफी नुकसान उठाना पड़ा है।
सूत्रों के मुताबिक नक्सल प्रभावित इलाकों में मुखबिरी फंड के ना के बराबर पहुंचने से पुलिस का सूचना तंत्र काफी लचर हो चुका है। राज्य की बीजेपी सरकार को इस ओर ठोस कदम उठाए जाने की जरूरत बताई जा रही है। बस्तर डिविजन में नक्सली घटनाओं में एकाएक आई तेजी का कारण पुलिस के सूचना तंत्र का कमजोर हो जाना काफी महत्वपूर्ण कारण के रूप में गिनाया जा रहा है। जबकि छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा सालाना 50 करोड़ से ज्यादा की रकम सूचना तंत्र को मजबूत बनाने के नाम पर खर्च की जा रही थी। इतना ही नहीं इतनी मोटी रकम कब,किसे और क्यों दी गई,इसकी जांच जरूरी बताई जा रही है।इसके साथ ही एसएस फंड के ( इंटरनल ऑडिट ) की मांग जोर पकड़ रही है। भारत सरकार को भेजी गई एक शिकायत में 2001 बैच के आईपीएस अधिकारी आनंद
छाबड़ा की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लगाते हुए उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित करने की मांग की गई है। इस शिकायत में पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराने की मांग केंद्रीय गृहमंत्रालय से की गई है।
बताते है कि कांग्रेस शासन काल के पूरे पांच बरस तक बस्तर के तमाम जिलों में मुखबिरी फंड के नाम पर सिर्फ औपचकरिता ही निभाई गई थी। पुलिस अधीक्षकों को एसएस फंड से नाम मात्र की रकम सौप कर तत्कालीन इंटेलिजेंस प्रमुख अपना पल्ला झाड़ लिया करते थे। वही दूसरी ओर रकम नहीं मिलने से पुलिस का खुफिया तंत्र दिन ब दिन कमजोर होता चला गया था। यही नहीं राज्य में बीजेपी के सत्ता संभालते ही नक्सली वारदातो में अचानक तेजी आ गई थी। नक्सलियों ने स्थानीय ग्रामीणों के अलावा पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलो को जानमाल का नुकसान पहुंचाया था, हालाकि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने हालात पर काबू पा लिया है। बस्तर डिविजन में एक बार फिर पुलिस का खुफिया तंत्र मजबूती की ओर बढ़ रहा है इस बीच कुपात्रो को वीआईपी सुरक्षा देने के मामले में भी आनंद छाबड़ा चर्चा में है। सरकारी धन और अपने पद के दुरुपयोग को लेकर उनके खिलाफ अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की मांग की जा रही है।
सूत्रों द्वारा बताया जा रहा है कि दिल्ली में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल से जुड़े कई सटोरियों और हवाला कारोबारियों को भी सरकारी वाहन और पीएसओ उपलब्ध कराए गए थे। इन पर होने वाले खर्चों को आनंद छाबड़ा ही मैनेज किया करते थे। बताते है कि दिल्ली में आधा दर्जन से ज्यादा ऐसे कुपात्रो को पीएसओ उपलब्ध कराए गए थे जो सीधे तौर पर मनी लांड्रिंग के कारोबार से जुड़े हुए थे। इन्हे इंटेलिजेंस विभाग द्वारा वाहन एवम अन्य सुविधाएं भी प्रदान की जाती थी,जो कि आनंद छाबड़ा के निर्देश पर किया जा रहा था।
सूत्रों द्वारा यह भी बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ से एकत्रित होने वाली अवैध वसूली का बड़ा हिस्सा दिल्ली में बैठे हवाला कारोबारियों के माध्यम से ही ठिकाने लगाया जाता था। ये सभी कारोबारी पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के करीबी बताए जाते है। इसके अलावा कांग्रेस की तत्कालीन प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा को भी सरकारी खर्चों से वीआईपी सुरक्षा और वाहन उपलब्ध कराए गए थे। जबकि नियमानुसार छत्तीसगढ़ के बाहरी इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था मुहैया कराने का अधिकार राज्य के खुफिया प्रमुख को नहीं है। बावजूद इसके अपने पद का दुरुपयोग करते हुए तत्कालीन खुफिया प्रमुख ने एसएस फंड का जमकर बेजा इस्तेमाल किया था। यह भी बताया जा रहा है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में बस्तर में नक्सली हिंसा और पुलिस एवं केंद्रीय सुरक्षा बलो को हुए जानमाल के नुकसान की जवाबदारी भी अभी तक तय नहीं की गई है। पीड़ित परिवार भी मामले की जांच की मांग कर रहा है इसके लिए आनंद छाबड़ा के कार्यकाल की खुफिया ऑडिट को जांचे परखे जाने की जरूरत पर भी बल दिया जा रहा है।
गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ में तत्कालीन मुख्यमंत्री बघेल के कार्यकाल में खुफिया विभाग ने शराब ठेकेदारों,आर्थिक घोटालों में शामिल दागियों और महिलाओ के यौन शोषण से जुड़े अपराधो में शामिल लोगो को भी पीएसओ उपलब्ध कराए थे। बताते है कि तत्कालीन खुफिया प्रमुख छाबड़ा ने फर्जी तौर पर कुपात्रो को वीआईपी सुरक्षा प्रदान करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी थी। राज्य में कुपात्रो को पीएसओ उपलब्ध कराने का मामला काफी गंभीर बताया जा रहा है। इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग कई आरटीआई कार्यकर्ताओ, व्हिसल ब्लोवर और पत्रकारों ने भी की थी। उन्होंने मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय का ध्यान इस ओर दिलाते हुए कहा है कि कुपात्रों को जारी वीआईपी सुरक्षा तत्काल प्रभाव से वापिस ली जानी चाहिए। उन्होंने पूर्व खुफिया प्रमुख आनंद छाबड़ा की कार्यप्रणाली की उच्चस्तरीय जांच की मांग भी की है।
जानकारी के मुताबिक महादेव एप सट्टा को संरक्षण देने के एवज में प्रतिमाह लाखो रुपए वसूले जाने के मामले में ईडी ने राज्य के ईओडब्ल्यू को पत्र लिख कर जिन आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए निर्देशित किया है,उसमे छाबड़ा का नाम अव्वल नंबर पर है। यही नहीं कई पुलिस अधिकारियों,पत्रकारों और प्रभावशील लोगो के फोन टेप करवाने और उन्हे धमकाने के मामलो में भी छाबड़ा कुख्यात रहे है। पूर्व एडीजी मुकेश गुप्ता ने भी अवैध फोन टेपिंग की शिकायत सबूतों के साथ सुप्रीमकोर्ट को सौपी थी। फिलहाल छाबड़ा के खिलाफ सरकार क्या कदम उठाती है, इस ओर जनता की निगाहें लगी हुई है।