रघुनंदन पंडा /
भिलाई / सेक्सोफोन की दुनिया यूं ही बड़ी नहीं है | इस वाद्ययंत्र में दुनिया के बड़े से बड़े तानाशाह की हुकूमत को चुनौती देने की हिम्मत और ताकत बरकरार है | यह साज़ एक साथ कई एक्सप्रेशन की ताकत रखता है | इसके स्वर में कोमलता, उत्तेजना, उन्मुक्ता, जुनून और स्व्छंदता है , तो वही आंसू, उदासी और विद्रोह का जबरदस्त तेज भी मौजूद है | भिलाई शहर में सेक्सोफोन पर आधारित म्यूजिकल कार्यक्रम का आायोजन किया गया। इस कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी पहुंचे। यह आयोजन कला मंदिर ऑडिटोरियम में आयोजित किया गया था। इस वेस्टर्न म्यूजिक के इंस्ट्रूमेंट पर जब छत्तीसगढ़ी लोकगीतों की धुन बजी तो मुख्यमंत्री बेहद खुश हुए।
इस मौके पर मुख्यमंत्री ने कहा कि संगीत मन को शांत करता है। छत्तीसगढ़ संगीत में बहुत समृद्ध है। हमारे लोकगीतों की धुन अद्भुत है। संगीत हमारे जीवन में रचा बसा है। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने प्रख्यात गायक किशोर कुमार को भी याद किया। कार्यक्रम में कलाकारों ने शंकर जयकिशन और ओपी नैय्यर जैसे संगीतकारों की मशहूर धुनों को भी बजाया। इस मौके पर इंदिरा कला एवं संगीत विश्व विद्यालय के फाइन आर्ट्स के छात्रों ने श्रोताओं के स्केच भी बनाये। छत्तीसगढ़ी गीत अरपा पैरी धार और सुन सुन मोर मया पीरा जैसे गीतों को सेक्सोफोन पर सुनकर लोग अभिभूत हो गए |

सेक्सोफोन के बारे में बताया जाता है कि इस साज को बेल्जियम के एडोल्फ सेक्स ने बनाया था जिसके पिता खुद वाद्य यंत्रों के निर्माता थे. सेक्स का बचपन बहुत त्रासद और नारकीय स्थितियों में गुजरा , जब वह पांच साल का था तो दूसरी मंजिल से गिर गया | इस हादसे में उसका पैर टूट गया फिर उसे खसरा हुआ | लंबे समय तक वह कमजोरी का शिकार रहा | एक बार उसकी मां ने यह तक कह दिया कि वह सिर्फ नाकामियों के लिए ही पैदा हुआ है | इस बात से दुखी होकर एडाल्फ सेक्स ने सल्फरिक एसिड के साथ खुद को जहर दे दिया | फिर कोमा में कुछ दिन गुजारे | जब वह कुछ उबरा तो उसने सेक्सोफोन बनाना प्रारंभ किया | सेक्सोफोन बन तो गया, लेकिन इस साज़ को किसी भी तरह के आर्केस्ट्रा या सिंफनी में जगह नहीं मिली | अभिजात्य वर्ग ने उसे ठुकरा दिया, लेकिन सेक्सोफोन बजाने वालों ने उसे नहीं ठुकराया | धीरे-धीरे यह वाद्य लोगों के दिलों में अपना असर छोड़ने लगा. यह वाद्य जितना विदेश में लोकप्रिय हुआ उतना ही भारत में भी मशहूर हुआ | किसी समय तो इस वाद्ययंत्र की लहरियां हिंदी फिल्म के हर दूसरे गाने में सुनाई देती थीं, लेकिन सिथेंसाइजर व अन्य इलेक्ट्रानिक वाद्ययंत्रों की धमक के चलते बड़े से बड़े संगीतकार सेक्सोफोन बजाने वालों को हिकारत की नजर से देखने लगे | उनसे किनारा करने लगे |
इधर एक बार फिर जब दुनिया ओरिजनल की तरफ लौट रही है तब लोगों का प्यार इस वाद्ययंत्र पर उमड़ रहा है | ऐसा इसलिए संभव हो पा रहा है क्योंकि बाजार के इस युग में अब भी सेक्सोफोन को एक अनिवार्य वाद्य यंत्र मानने वाले लोग मौजूद है | अब भी संगीत के बहुत से जानकार यह मानते हैं कि दर्द और विषाद से भरे अंधेरे समय को चीरने के लिए सेक्सोफोन और उसकी धुन का होना बेहद अनिवार्य है | बेदर्दी बालमां तुझको… मेरा मन याद करता है… है दुनिया उसकी जमाना उसी का… गाता रहे मेरा दिल…हंसिनी ओ हंसिनी… सहित सैकड़ों गाने आज भी इसलिए गूंज रहे हैं क्योंकि इनमें किसी सेक्सोफोनिस्ट ने अपनी सांसे रख छोड़ी है | छत्तीसगढ़ में भी चंद कलाकार ऐसे हैं जिन्होंने इस वाद्ययंत्र की सांसों को थाम रखा है |छत्तीसगढ़ के दुर्ग शहर के निवासी ( अब नागपुर ) कथाकार मनोज रुपड़ा ने सेक्सोफोन को केंद्र पर रखकर साज-नासाज जैसी कहानी भी लिखी हैं. इस मकबूल कहानी पर दूरदर्शन ने एक फिल्म भी बनाई है |
