किशोर साहू बालोद [Edited by: ऋतुराज वैष्णव ]
बालोद / हर पिता का एक सपना होता है की वो अपनी बेटी को ढोली में बिठाकर ससुराल विदा करे…और इसके लिए पिता बेटी के जन्म होते ही ब्याह में होने वाले खर्च के लिए पाई-पाई पैसा जोड़ने में लग जाता है | ताकि विवाह की उम्र होते तक बेटी के विवाह में होने वाले खर्च के लिए पैसा जोड़ सके | बालोद जिले के वनांचल क्षेत्र व आदिवासी ब्लॉक डौंडी स्थित ग्राम दिघवाड़ी के रहने वाले मनिहार नेताम ने भी अपनी बेटी के विवाह के लिए सपना देखा था…जिसके लिए लड़के पक्ष द्वारा लड़की के लिए रिश्ता आने पर दोनों पक्ष द्वारा आपस में चर्चा कर विवाह की सहमती बनी और विवाह की तारिक तय कर दी गई | … पिता भी बेटी की विवाह की तैयारियों में जुट बेटी की शादी के लिए जोड़ के रखे पैसे और कुछ पैसे दूसरों से कर्ज लेकर शादी की खरीददारी में जुट गया…और बेटी को भेट देने आलिमारी, पलंग गद्दा सहित खाने पिने की सामन की खरीदी कर चित परिचित को शादी का आमंत्रण कार्ड भेज तैयारियों में जुटे रहा…30 मार्च को बेटी नागेश्वरी के हाथो में हल्दी लगने वाली थी, की एक दिन पहले 29 मार्च को लड़के पक्ष से आया एक सन्देश ने एक पिता, एक माँ, एक भाई और एक बेटी की खुशियों पर पानी फेर दिया…दरअसल लड़की पक्ष की माने तो लड़के पक्ष ने यह कहकर लड़की से विवाह करने से इनकार कर दिया…की लड़की का पूरा परिवार समाज और गाँव से बहिष्कृत है !
हैरानी की बात तो यह है की इस परिवार को समाज से बहिष्कृत किए लगभग पांच साल बीत गए है…लेकिन इस परिवार को समाज से अलग रखने का कारण आज तक समाज के रखवाले या यु कहे समाज के ठेकेदार नहीं बता पाए | इस परिवार को जरूरत पड़ने पर खाद्य सामाग्री हो या और कोई जरूरत के समान गाँव के दुकानों से ना लेने दिया जाता है…ना ही गाँव में किसी के यहाँ रोजी मजदूरी के लिए इस परिवार को बुलाया जाता है…इस गरीब आदिवासी परिवार की कुछ कृषि भूमि है…जिसमे खेती कर ये परिवार अपना भरण पोषण करता है | …अब पीड़ित परिवार न्याय की आश में पुरे मामले को लेकर डौंडी थाने की शरण में पहुच गया है | उन्हें उम्मीद है कि न्याय मिलेगा… पुलिस विभाग मामले में शिकायत मिलने की बात कहते हुए जाँच के बाद जांच में तथ्य मिलने पर कार्यवाही करने की बातो पर जोर दे रहा है …देखने वाली बात होगी की क्या पीड़ित परिवार को पुलिस कोई न्याय दिला पाती है !
दरअसल यह खबर शासन, प्रशासन सहित उन लोगों को आईना दिखाने के लिए काफी है…जो काले रंग का चश्मा पहन मंच में खड़े होकर सामाजिक समरस्ता और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की बड़ी-बड़ी बाते कर अपने लिए ताली बजवाते है…क्या इस परिवार का दर्द उन लोगो को नजर नहीं आ रहा..जो समाज के रखवाले बनते फिरते है…क्या बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की बड़ी-बड़ी होडिंग लगाने से ही शासन-प्रशासन की जिम्मेदारी पूरी हो जाती है ! यह एक गंभीर विषय है |