नईम खान /
मुंगेली / असत्य पर सत्य की प्रतीक का त्यौहार विजयादशमी पूरे देश भर में रावण को दहन करके मनाया जाता है | लेकिन क्या आपने कभी रावण को दहन करने के बजाय पीट-पीटकर मारने वाली परम्परा सुनी है ? शायद नहीं | लेकिन छत्तीसगढ़ के मुंगेली में रावण को जलाने की नही बल्कि पीटने की परम्परा सैकड़ो सालो से चली आ रही है | इसके पीछे का तर्क है कि पुराने ज़माने में विस्फोटक सामग्री नही होने की वजह से लोग मिटटी के रावण ही बनाकर उसका वध करते थे | उसी परम्परा को मुंगेली का गोवर्धन परिवार अपने पूर्वजो के ज़माने से निभाते आ रहा है |
मुंगेली के मालगुजार गोवर्धन परिवार के पूर्वजो के द्वारा सैकड़ो सालो से शुरू किया गया मिट्टी के रावण को पीट पीटकर मारने की परम्परा आज भी मुंगेली में देखी जा सकती है | हर साल की तरह इस वर्ष भी गोवर्धन परिवार द्वारा दशहरा के त्यौहार के अवसर पर मिट्टी के रावण निर्माण करवाई जाती है जिसे स्थानीय वीर शहीद धनंजय सिंह राजपूत स्टेडियम पर स्थापित की जाती है,जिसके वध के लिए स्थानीय बड़ा बाजार से देशी वाद्य एवं बाजे गाजे के साथ भगवान राम की झांकी निकाली जाती है | जो आयोजित स्थल पहुचकर पहले तो इस मिट्टी के रावण की पूजा अर्चना की जाती है उसके बाद झांकी में शामिल यादव समाज और इस दशहरा में शामिल लोगो के द्वारा लाठी से पीट पीटकर मिटटी के रावण को नष्ट किया जाता है | इसका तर्क यह है कि बुराई के प्रति अपने आक्रोश को मिटाना है जिससे लोग लाठी से पीट पीटकर अहंकार को खत्म किया जाता है | वही इस मिट्टी के रावण की मिट्टी को पाने के लिए लोगो का हुजूम उमड़ता है मिटटी के एक टुकड़े पाने के लिए भगदड़ जैसी मच जाती है।इस मिट्टी की मान्यता है कि इसे घर के प्रमुख जगहों में रखने से धन्य धान्य में बढ़ोतरी होती है।

आज भी दशहरा के अवसर पर मिट्टी से निर्मित रावण को जब पीटा जाता है तो इसकी मिटटी को कई लोग सालो से अपने घरों में रखा करते है स्थानीय राजू सोनी और प्रांजल जैन बताते है कि वो कई सालों से दशहरा के समय मिटटी के रावण की मिट्टी लाते है जिसकी मान्यता है कि घरों के पूजा पाठ,धान की कोठरी,घर की तिजौरी जैसी अन्य स्थानों में रखने से धन्य धान्य में बढ़ोतरी होती है,,इसके पीछे लोगो की मान्यता है कि रावण ज्ञानी,स्वाभिमानी और शक्तिशाली पुरुष था जिसकी शरीर का हर अंग कीमती होने की वजह से मिट्टी से बने रावण की मिट्टी का भी एक अलग महत्व है। मिटटी के रावण को पीटने वाली परम्परा को देखने के लिए लोग दूर दूर से पहुचते है,और मिटटी के रावण की मिट्टी लेकर अपने घरों में ले जाते है।
असत्य पर सत्य की जीत के प्रतीक का त्यौहार मनाए जाने वाला दशहरा भले ही रावण के दहन करके मनाई जाती है लेकिन आज भी कई ऐसी परम्परा है जो सदियों से चली आ रही है उसका भी एक अलग महत्व है वही मिटटी के रावण को पीटने वाली परम्परा को देखने के लिए लोग दूर दूर से पहुचते है,और मिटटी के रावण की मिट्टी लेकर अपने घरों में ले जाते है।
