
दिल्ली : – अमेरिकी टैरिफ से निपटने के लिए भारत सरकार ने चौतरफ़ा पहल शुरू कर दी है। माना जा रहा है कि मोदी नीति से अमेरिका के मंसूबों पर पानी फिरना तय है। अमेरिका को होने वाले निर्यात में कमी आने की आशंका के मद्देनजर भारत ने सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योगों से लेकर बड़ी इंडस्ट्रीज तक निर्यात की बेजोड़ तैयारी कर ली है। हालांकि टैरिफ के शुरुआती हप्ते में ही भारत के उत्तर में पंजाब से लेकर, पश्चिम में गुजरात और दक्षिण में तमिलनाडु तक अमेरिकी चाल का असर दिखने भी लगा है।

रूस से तेल खरीदने के लिए भारत पर जुर्माने के तौर पर अमेरिका की तरफ से लगाए गए 25 फीसदी आयात शुल्क 27 अगस्त से लागू होते ही कारोबारी हलचल तेज है। कई उद्योगपति और कारोबारी अचानक टैरिफ की मार से दो – चार हो रहे है। दरअसल, भारत पर अब अमेरिका ने कुल 50 फीसदी टैरिफ लगा दिए हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 7 अगस्त को ट्रंप प्रशासन के निर्देश पर व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत पर पहले ही 25 प्रतिशत आयात शुल्क लगा दिया था। जो बढ़कर अब 50% टैरिफ बोझ के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि इसका भारत पर आंशिक असर देखा जा रहा है। माना जा रहा है कि अमेरिका के इस कदम का असर तुरंत नहीं होगा, हालांकि लंबी अवधि में दोनों देशों में होने वाला व्यापार काफी प्रभावित हो सकता है।

एक जानकारी के मुताबिक अमेरिका को होने वाले निर्यात में कमी आने की आशंका के मद्देनजर भारत में सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योगों से लेकर बड़ी इंडस्ट्रीज तक ने तैयारी कर ली है। भारत के उत्तर में पंजाब से लेकर, पश्चिम में गुजरात और दक्षिण में तमिलनाडु तक इसका असर दिखने भी लगा है। जहां पंजाब में अमेरिकी टैरिफ की वजह से 20 हजार करोड़ के निर्यात से जुड़े उद्योगों पर असर पड़ना तय है तो वहीं उत्तर प्रदेश के कानपुर और भदोही के हजारों करोड़ के चमड़ा और कालीन उद्योग पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता दिख रहा है। अमेरिका के टैरिफ से अब तक भारत के कुछ एक राज्यों में मामूली असर पड़ता दिख रहा है।

भारत में जिन सेक्टर्स पर 50 फीसदी टैरिफ की मार झेलनी पड़ रही है, उनमें टेक्सटाइल, आभूषण और रत्न, कृषि और कुछ अन्य सेक्टर के प्रभावित होने की आशंका जाहिर की जा रही है। इन सेक्टर्स से जुड़े उत्पादों पर आयात शुल्क लगने के बाद यह अमेरिका में महंगे हो जाएंगे। इसका असर यह होगा कि अमेरिका में भारतीय उत्पादों की मांग घट सकती है और उसके मुकाबले ऐसे देशों के उत्पाद की मांग बढ़ सकती है, जिन पर अमेरिका ने कम टैरिफ लगाया है और इसके चलते वे सस्ते हैं। सबसे ज्यादा असर अभी से हीरा कारोबारियों के कारोबार में नजर आने लगा रहा है। कई नामचीन कारोबारियों ने अचानक अपने दफ्तर सिमटाना शुरू कर दिया है। स्टाफ में कटौती के साथ कई नुस्खे आजमाएं जा रहे है। जानकारों के मुताबिक अभी आंशिक ही सही, टैरिफ का असर भारत के बाजार पर भी पड़ेगा। अमेरिका जैसे बड़े निर्यात बाजार में कम बिक्री होने से भारत में उत्पादन में कमी आ सकती है, जिसके चलते कंपनियों को न सिर्फ घाटा होगा, बल्कि यहां कई उद्योगों में लोगों को रोजगार गंवाना पड़ सकता है। हालांकि, यह स्थिति तब बेहतर हो सकती है, अगर भारत ने अमेरिका जैसा ही निर्यात बाजार बनाने में सफलता हासिल कर ली।

रत्न और आभूषण कारोबारी पसोपेश में है, भारत की तरफ से वित्त वर्ष 2024-25 में 10 अरब डॉलर के रत्न-आभूषण अमेरिका को निर्यात किए गए थे। यानी दुनिया में रत्न-आभूषणों का जितना अमेरिका को निर्यात होता है, उसकी कुल 40 फीसदी हिस्सेदारी अकेले भारत की है। अमेरिका के टैरिफ अगस्त से ठीक पहले तक 2.1 फीसदी थे। हालांकि, अब यह 52.1 प्रतिशत हो जाएंगे। भारत में गुजरात का सूरत, महाराष्ट्र का मुंबई और राजस्थान का जयपुर रत्न-आभूषणों के निर्यात के केंद्र के तौर पर जाने जाते हैं। इन केंद्रों में लाखों लोगों को रत्न-आभूषणों की कटिंग, पॉलिशिंग और मैन्युफैक्चरिंग में शामिल किया जाता है।

कपड़े और बुनकर उद्योग ने भी अब अपनी नीतियां अमेरिकी बाजार अनुरूप तय करना शुरू कर दिया है। भारत के कपड़ा उद्योग के निर्यात का बड़ा हिस्सा अमेरिका पर निर्भर है। भारत से होने वाला कुल टेक्सटाइल निर्यात का 28 फीसदी अकेले अमेरिका को जाता है, जिसकी कुल कीमत 10.3 अरब डॉलर से ज्यादा है। अमेरिका अब तक भारत के इस क्षेत्र पर नौ से 13 फीसदी तक टैरिफ लगाता था, हालांकि अब इस क्षेत्र पर आयात शुल्क कुल मिलाकर 63 फीसदी से ज्यादा हो गया है। दूसरी तरफ भारत पर इस सेक्टर में अतिरिक्त टैरिफ लगने का फायदा वियतनाम, इंडोनेशिया, बांग्लादेश और कंबोडिया जैसे देशों को होगा, जहां अमेरिकी टैरिफ 20 फीसदी के दायरे में रखे गए हैं। भारत में तमिलनाडु का तिरुपुर, उत्तर प्रदेश का नोएडा, हरियाणा का गुरुग्राम, कर्नाटक का बंगलूरू और पंजाब का लुधियाना और राजस्थान का जयपुर सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।

कृषि और मरीन उत्पाद के बाजार में भी हलचल तेज है। भारत अमेरिका को 5.6 अरब डॉलर से ज्यादा के कृषि उत्पाद निर्यात करता है। उसके बड़े निर्यातों में से मरीन उत्पाद, मसाले, डेयरी उत्पाद, चावल, आयुष और हर्बल उत्पाद, खाद्य तेल, शक्कर और ताजा सब्जियां और फल भी निर्यात इसमें शामिल है। माना जा रहा है कि ट्रंप के टैरिफ का सबसे ज्यादा असर भारत की सीफूड इंडस्ट्री यानी मरीन उत्पादों पर पड़ेगा। भारत पर अतिरिक्त टैरिफ के चलते पाकिस्तान, थाईलैंड, वियतनाम, केन्या और श्रीलंका जैसे कम टैरिफ वाले देशों के कृषि-मरीन उत्पाद अमेरिका को सस्ते पड़ेंगे। इसे भारत के अधिकतर राज्यों को नुकसान होने की संभावना है। दरअसल, भारत मुख्यतः कृषि प्रधान देश है, ऐसे में अमेरिकी निर्यात बाजार में ज्यादा टैरिफ लगने से पंजाब से लेकर उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र से लेकर कर्नाटक तक कृषि उत्पादों के निर्यात पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

लेदर-फुटवियर बाजार अब किस ओर करवट लेगा यह देखना भी गौरतलब होगा। भारत के चमड़ा और फुटवियर उद्योग से अमेरिका को हर वर्ष 1.18 अरब डॉलर के उत्पाद निर्यात किए जाते हैं। इस क्षेत्र पर 50 फीसदी टैरिफ लगने का फायदा वियतनाम, चीन, इंडोनेशिया और मैक्सिको जैसे देशों को पहुंचने का अनुमान है। उधर इससे भारत के चमड़ा और फुटवियर उद्योग के केंद्र- उत्तर प्रदेश के कानपुर, आगरा और तमिलनाडु के अंबूर-रानीपेट क्लस्टर को बड़ा नुकसान होगा।

कालीन कारोबारियों ने अमेरिकी नीति से निपटने के लिए कमर कस ली है। भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में अमेरिका को 1.2 अरब डॉलर के कालीन निर्यात किए हैं। अमेरिकी बाजार में भारत करीब 60 फीसदी हिस्सेदारी रखता है। जहां पहले इस उत्पाद पर अमेरिका का टैरिफ महज 2.9 फीसदी था, वहीं अब यह 53 फीसदी तक पहुंच गया है। इसके चलते भारत के कालीनों के लिए एक अहम बाजार बंद होने का खतरा पैदा हो गया है। भारत में उत्तर प्रदेश के भदोही, मिर्जापुर और जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में स्थित कालीन के कारोबार पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दूसरी तरफ भारत पर जबरदस्त टैरिफ का लाभ तुर्किये, पाकिस्तान, नेपाल और चीन जैसे देश उठा सकते हैं।

हथकरघा बाजार भी अमेरिकी मुश्किलों से निकलने की जुगत में व्यस्त दिखाई दे रहा है। भारत की तरफ से अमेरिका को वित्त वर्ष 2024-25 में करीब 1.6 अरब डॉलर के हथकरघा उत्पादों का निर्यात किया गया है। अमेरिका के ऐसे उत्पादों के कुल आयात में भारत की हिस्सेदारी 40 फीसदी तक है। यानी हथकरघा जैसे सेक्टर पर अमेरिकी टैरिफ लगने से राजस्थान के जोधपुर, जयपुर और उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद और सहारनपुर जैसे केंद्रों में फैक्टरियों में संचालन संबंधी दिक्कतें आ सकती हैं। इसकी जगह चीन, तुर्किये और मैक्सिको जैसे देश आगे अमेरिका को निर्यात बढ़ा सकते हैं।