महाराष्ट्र वेब डेस्क / महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की कुर्सी फ़िलहाल बची रहेगी | लेकिन वो पूरे पांच साल इस कुर्सी पर विराजमान रहेंगे, यह कहना मुश्किल है | अभी तो उनके मुख्यमंत्री बने रहने का रास्ता साफ़ हो गया है | उद्धव ठाकरे बिना चुनाव लड़े मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन वह अभी तक विधानसभा या विधान परिषद के सदस्य नहीं बन पाए हैं। कोरोना वायरस की वजह से एमएलसी चुनाव भी नहीं कराया जा सकता है। ऐसे में राज्य की कैबिनेट ने उन्हें राज्यपाल की ओर से मनोनीत किए जाने को लेकर प्रस्ताव भेजने का फैसला किया है। राज्यपाल 2 सदस्यों को मनोनीत कर सकते हैं। लिहाजा उनके संवैधानिक अधिकारों ने उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री की कुर्सी में बिठाये रखने का समीकरण फिट कर दिया है |
महाराष्ट्र सरकार के मंत्री नवाब मलिक ने गुरुवार को बताया, ‘आज की कैबिनेट बैठक में फैसला लिया गया है कि राज्यपाल की ओर से मनोनीत किए जाने वाले 2 सदस्यों के खाली पदों में एक सीट के लिए मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के नाम की सिपारिश की जाएगी। क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से अभी एमएलसी चुनाव नहीं हो सकते हैं। यह संवैधानिक संकट को टालने की वजह से किया जा रहा है।
गौरतलब है कि उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र में विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा था। उनके बेटे आदित्य ठाकरे चुनाव लड़ने वाले परिवार के पहले सदस्य रहे। लेकिन चुनाव बाद बीजेपी से रिश्ता बिगड़ा तो शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के सहयोग से सरकार बना ली। गठबंधन सहयोगियों ने उद्धव को मुख्यमंत्री बनाए जाने की शर्त पर सर्मथन दिया। ऐसे में विधायक बने बिना ही उद्धव ने सत्ता संभाल ली।
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नियम के मुताबिक, विधायक दल का नेता किसी भी व्यक्ति को चुना जा सकता है भले ही वह विधानसभा या विधानपरिषद का सदस्य हो अथवा नहीं। लेकिन छह महीने के भीतर विधानसभा या विधानपरिषद (जिन राज्यों में है) का सदस्य होना अनिवार्य होता है। उद्धव ठाकरे के लिए समय सीमा अगले महीने खत्म हो रही है। उन्होंने 28 नवंबर 2019 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। फ़िलहाल इस फैसले के बाद शिव सेना ने राहत की साँस ली है |