मुंबई वेब डेस्क / महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे आज 28 मई को पूरे छह माह की अवधि पूरी कर रहे है | लोगों की निगाहें राज्यपाल के फैसले पर टिकी है | दरअसल कोई भी शख्स संवैधानिक आधार और प्रावधानो के आधार पर छह माह तक मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रह सकता है | इस अवधि के भीतर उसे चुनाव लड़कर सदन का सदस्य बनना अनिवार्य है | इस लिहाज से उद्धव ठाकरे क़ानूनी प्रावधानों के शिकंजे में है | देखना होगा कि आज उनका दिन बतौर मुख्यमंत्री आखिरी दिन साबित होगा या फिर किसी ठोस कारण का हवाला देते हुए केंद्र सरकार , राज्यपाल और राष्ट्रपति इस संवैधानिक प्रावधान पर उन्हें छूट देते है | माना जा रहा है कि कोरोना का संक्रमण भले ही कई लोगों के लिए मुसीबत लेकर आया हो , लेकिन उद्धव ठाकरे को कोरोना का चक्रव्यूह काफी राहत दे सकता है | कैसा है ये चक्रव्यूह और क्या उद्धव ठाकरे इससे निकल पायेंगे? इस सवाल को लेकर राजनैतिक गलियारा गरमाया हुआ है |
28 नवंबर 2008 को करीब महीनेभर तक चले सियासी ड्रामें के बाद जब उद्धव ठाकरे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी | लेकिन उनकी सरकार के 3 महीने पूरे होने से पहले ही देश में एक ऐसा संकट आ गया जिसकी न तो किसी ने कल्पना की थी और जिससे निपटने का किसी के पास अनुभव था | ये संकट कोरोना वायरस के रूप में आया | हालांकि भारत में जनवरी से इक्का दुक्का मरीजों के मिलने की शुरूवात हुई लेकिन इसके बाद बडी ही तेजी से कई राज्यों में फ़ैल गया | महाराष्ट्र कोरोना प्रभावित देश का सबसे बडा राज्य बनकर उभरा है |
कोरोना ने महाराष्ट्र सरकार के लिये एक सियासी संकट भी पैदा कर दिया है | उद्धव ठाकरे का मुख्यमंत्री पद खतरे में पड गया है | अगर महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने ठाकरे को 28 मई के कार्यालयीन समय से पहले विधान परिष्द के सदस्य के तौर पर नामांकित नहीं किया तो महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार गिर सकती है | यही नहीं इसके बाद महाराष्ट्र में फिरसे एक राजनीतिक ड्रामा शुरू हो सकता है | जब उद्धव ठाकरे सीएम बने तब वे न तो विधानसभा के सदस्य थे और न ही विधान परिषद के | राजनैतिक समीकरणों के तहत उद्धव ठाकरे को उम्मीद थी कि अप्रैल के मध्य में जब विधानपरिषद की खाली सीटों के लिये चुनाव होंगे तो वे किसी एक सीट पर चुन लिये जायेंगे | लेकिन कोरोना संक्रमण ने उनके अरमानों पर पानी फेर दिया | मामला तब बिगड़ गया जब महाराष्ट्र में कोरोना संकट तेजी से आ खड़ा हुआ | नतीजतन तमाम चुनाव टाल दिये गये |
राजनीति के जानकारों के मुताबिक अब ठाकरे के पास विधानपरिषद में जाने के लिये यही विकल्प रह गया कि वे राज्यपाल के कोटे से सदन के लिये नामांकित हों | हालांकि इसी उम्मीद के साथ उनका नाम राज्यपाल के पास कैबिनेट ने भेज दिया है | उधर इस प्रस्ताव को भेजे 3 हफ्ते बीत चुके है , राज्यपाल ने ठाकरे को विधानपरिषद सदस्य नामांकित किये जाने की सिफारिश पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है | दूसरी ओर शिवसेना में चिंता का वातावरण पैदा हो गया है | मुख्यमंत्री की कुर्सी दांव पर है | अगर 28 मई तक राज्यपाल ने उन्हें सदस्य नामांकित नहीं किया तो ठाकरे को इस्तीफा देना पड़ेगा और सरकार गिर जायेगी | ऐसे में बीजेपी भी नजरें गड़ाए हुए बैठी है कि 28 मई तक उद्धव ठाकरे के साथ क्या होता है ?