देवउठनी पर घर-घर मे हुआ तुलसी विवाह ,हुई गन्ने की विशेष पूजा

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उपेन्द्र डनसेना

रायगढ़ । देश-प्रदेश समेत जिले में भी देवउठनी एकादशी मनाई गई और गन्ने की पूजा के साथ-साथ घर-घर में तुलसी और शालीग्राम का विवाह संपन्न कराया गया। आज से चतुर्मास का समापन हो गया और चार माह से सोए देव भी उठ गए।

ऐसी मान्यता हैं कि, इस दिन भगवान विष्णु अपनी शेष शय्या पर योगनिद्रा से जाग जाते हैं। इसी दिन से सभी मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी देवउठनी एकादशी के नाम से पूजनीय मानी जाती है। देवउठनी एकादशी आज जिले के घर-घर में धूमधाम से मनाई गई। इसे छोटी दिवाली भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की निद्रा से जागते है। श्रद्धालुओं ने भगवान विष्णु और महालक्ष्मी की पूजा के साथ घर-घर में तुलसी की विशेष पूजा भी की। तुलसी विवाह एक आम विवाह की तरह किया जाता है। जिसमें विवाह के मंडप को गन्नों (कुसियार) से सजाकर तुलसी को लाल कपड़े के साथ सजा कर विशेष श्रृंगार किया जाता है। शालीग्राम में तिल चढ़ाकर उसे रखा जाता है। शालीग्राम के बाईं तरफ तुलसी को रख कर पूजा की होती है।

मान्यता ऐसी है कि तुलसी विवाह की पूजा में शामिल होकर प्रार्थना करने वाले अविवाहित युवक-युवतियों का विवाह जल्दी हो जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की प्रतिमा की सात परिक्रमा करते समय देव उठनी के गीत गाएं जाते है। मान्यता ऐसी भी है कि जिनके घर में बेटियां नहीं होती, वे तुलसी विवाह के जरिए कन्यादान का सुख प्राप्त करते है। तुलसी विवाह की तैयारी के लिए शहरभर में गन्नों का बाजार सजा रहा और पूरे दिन जमकर खरीददारी हुई। इसके साथ ही श्रृंगार सामग्री और चौक चौराहों पर फूल, कंद, सिंघाड़ा, आंवला, बेर आदि की बिक्री भी जमकर हुई। आज से शुरू होंगे मांगलिक कार्यक्रम अक्षय तृतीय की तरह ही देवउठनी एकादशी को भी शादी-विवाह के लिए शुभ मुहुर्त माना जाता है। चार माह शादी- विवाह जैसे आयोजनों में ब्रेक लगने के बाद देव उठनी एकादशी से शुरू हो जाते हैं।