
वॉशिंगटन/नई दिल्ली — अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए टैरिफ़ और उसके बाद हुई कड़ी आलोचनाओं ने एक बार फिर दोनों देशों के रिश्तों में तनाव बढ़ा दिया है। व्हाइट हाउस ने भारत पर कुल मिलाकर 50% तक के शुल्क लगाने के कदम के फैसले को औपचारिक रूप दिया है — जिसमें 7 अगस्त को पहले 25% लागू किया गया और अतिरिक्त 25% (रूसी तेल खरीद से जुड़े आयातों पर) बाद में लगाया जाना है।

पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने इस नीति पर ट्रंप की जमकर निंदा की और कहा कि यह अमेरिका के हितों के खिलाफ एक “बड़ी भूल” साबित हो सकती है। बोल्टन ने चेतावनी दी कि ऐसे कड़े टैरिफ़ कदमों से भारत रूस व चीन की ओर और अधिक झुक सकता है — जो दीर्घकालिक तौर पर अमेरिका के रणनीतिक लक्ष्यों को नुकसान पहुंचा सकता है।
बोल्टन की टिप्पणी में पाकिस्तान का भी ज़िक्र आया — उन्होंने व्यंग्यात्मक अंदाज़ में कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित करने की पेशकश कर सकते हैं। यह बयान ऐसे समय में आया है जब पाकिस्तान ने जून 2025 में औपचारिक रूप से डोनाल्ड ट्रंप के 2026 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए सिफारिश का ऐलान किया था।

ट्रंप ने अपने फैसले का बचाव करते हुए दावा किया कि भारत बड़े पैमाने पर रूसी तेल खरीद रहा है और उसे खुले बाज़ार में मुनाफे पर बेच रहा है — जिससे रूस को आर्थिक लाभ मिल रहा है और यह रूस-यूक्रेन युद्ध को अनपेक्षित समर्थन दे रहा है। ट्रंप ने सोशल मीडिया (Truth Social) पर इस तर्क को दोहराया और आलोचकों पर कटाक्ष भी किए।
भारत में इस कदम का विरोध तेज़ है — व्यापार और उद्योग पर संभावित भारी प्रभावों की वजह से हीरा-गहनों के कटिंग-पॉलिश उद्योग से लेकर कृषि क्षेत्रों तक में चिंता देखी जा रही है। पंजाब में किसान समूहों ने ट्रंप की प्रतिमा जलाकर भी विरोध जताया है, जबकि आर्थिक विश्लेषक यह संकेत दे रहे हैं कि 50% तक का टैरिफ़ विशेष तौर पर श्रमिक-प्रधान निर्यात-उद्योगों को प्रभावित कर सकता है।

विश्लेषकों का कहना है कि यह घटनाक्रम यूएस-इंडिया रिश्तों में एक कठिन मोड़ है — पिछले कुछ वर्षों में सुरक्षा और भू-रणनीति के क्षेत्र में करीब आ रहे दोनों देशों के बीच अब व्यापारिक भरोसा आघात का सामना कर सकता है। कुछ विशेषज्ञ सुझाव दे रहे हैं कि भारत को अपनी व्यापार रणनीतियाँ विविध करने और घरेलू उद्योगों को सपोर्ट देने के उपाय तेज़ करने होंगे।
क्या अगले कदम होंगे? डिप्लोमैटिक चैनलों पर दबाव और बातचीत की संभावना बनी हुई है — दोनों देशों के बीच संपर्क जारी हैं, परन्तु टैरिफ़ के प्रभावों और उसकी समय-सीमा (पहला चरण 7 अगस्त से और द्वितीयक चरण 21 दिनों बाद लागू तय) ने विषय को जटिल बना दिया है। निर्णयों का असर आने वाले हफ्तों में व्यापार आँकड़ों और राजनयिक प्रतिक्रियाओं में साफ़ दिखेगा।