वॉशिंगटन। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने H-1B वीजा को लेकर नई फीस नीति लागू की है। इसके तहत अब नए आवेदकों को एकमुश्त 1 लाख डॉलर चुकाने होंगे। इस फैसले से भारतीय समुदाय और आईटी सेक्टर में हलचल मच गई है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल भारतीय पेशेवरों के अवसरों को सीमित करेगा बल्कि अमेरिकी कंपनियों के लिए भी चुनौतीपूर्ण साबित होगा।
शशि थरूर का बयान – ‘राजनीतिक फायदा उठाना मकसद’
कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने इस फैसले को अमेरिकी घरेलू राजनीति से जोड़ा। उनके अनुसार, ट्रंप अपने MAGA (Make America Great Again) समर्थकों को लुभाने के लिए एंटी-इमिग्रेशन नीतियां अपना रहे हैं। उन्होंने कहा कि ट्रंप यह धारणा बना रहे हैं कि H-1B वीजा धारक भारतीय कम वेतन पर काम करके अमेरिकी नागरिकों की नौकरियां छीन रहे हैं।
भारतीय पेशेवरों पर सीधा असर
थरूर ने चेतावनी दी कि यह नीति सीधे भारतीय आईटी प्रोफेशनल्स को प्रभावित करेगी। गौरतलब है कि अमेरिका में H-1B वीजा धारकों का करीब 70% हिस्सा भारतीयों का है। अब केवल उच्च स्तर के और महंगे प्रोफेशनल्स को ही कंपनियां नियुक्त करेंगी, जबकि मिड-लेवल और एंट्री-लेवल नौकरियों में भारतीयों की हिस्सेदारी घट जाएगी।
ट्रंप प्रशासन का तर्क
ट्रंप प्रशासन का कहना है कि H-1B वीजा का दुरुपयोग हो रहा है और यह अमेरिकी नागरिकों के रोजगार और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है। हालांकि, थरूर ने इसे भ्रामक बताते हुए कहा कि इसका असली उद्देश्य केवल राजनीतिक लाभ उठाना है।
भारतीय समुदाय में चिंता
अमेरिका में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते और काम करते हैं। नई फीस नीति से उनके बीच असुरक्षा की भावना बढ़ गई है। आईटी कंपनियों को भी डर है कि इतनी ऊंची फीस से उनके ऑपरेशंस प्रभावित होंगे और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में वे पिछड़ सकते हैं।
