रायपुर : रायपुर छत्तीसगढ़ में 27 अक्टूबर वर्ष 2017 में एक सेक्स सीडी काण्ड ने देश प्रदेश की राजनीति गर्मा दी थी। इस अश्लील काण्ड की गूंज अब तक सुनाई दे रही हैं। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस मामले में मुख्य आरोपी है। जबकि उनके सलाहकार विनोद वर्मा सहअभियुक्त। रायपुर से लेकर दिल्ली तक इस मामले की चर्चा जोरो पर हैं। अब इस तथ्य को लेकर माथापच्ची हो रही है कि अखिर क्यों सुप्रीमकोर्ट में तारीख में तारीख मिलती जा रही हैं। वो तब जब जज साहब ने इस मामले की सुनवाई के लिए फाइनल डिस्पोजल की तिथि तय कर दी थी। इस बीच जस्टीस अशोक भूषण रिटायर हो गये। कानूनी दांवपेचों के चलते करीब डेढ़ साल से इस मामले की सुनवाई अटकी हुई हैं। इस मामले में पीड़ित बीजेपी नेता राजेश मूणत का कहना है कि राजनीति में सुचिता की जरूरत हैं। खासतौर पर कांग्रेस और उनके नेताओं ने उनकी चरित्र हत्या की जो साजिश रची थी। उसका पर्दाफास हो चुका हैं। राज्य की जनता देख रही हैं, कि सत्ता में आने के लिए बघेल और उनकी टोली कितने नीचे गिर सकती हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ महतारी कांग्रेसी नेताओं का गंदा खेल देख रही हैं। चूंकि मामला कोर्ट में विचाराधीन हैं, इसलिए वे सिर्फ इतना ही कहेगे कि जल्द सुनवाई के लिए वे कानूनी कदम उठा रहे हैं।
उधर, इसे गजब का संयोग कहा जाये कि पुलिस के जिन तत्कालीन आलाधिकारियों ने भूपेश बघेल को सेक्स सीडी काण्ड का सरगना करार देकर जेल की सैर करायी थी। आज एक बार फिर वे नई बोतल में पुरानी शराब की तर्ज पर उनके सामने आसीन हैं। वक्त ने ऐसा करवट बदला की मुख्य आरोपी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गया। उन अधिकारियों के साथ बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भविष्य की योजनाओं को लेकर माथा पच्ची करनी होती हैं। मसलन पुलिस के आधुनिकीकरण से लेकर कानून व्यवस्था और अपराध के नियंत्रण को लेकर वैचारिक आदान-प्रदान। यही तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था का खास अंदाज हैं। पांच-पांच वर्षों के अंतराल में सरकारे और अक्सर नेता आते जाते रहते है, लेकिन अफसर एक निश्चित समय तक अपनी कुर्सी पर काबिज रहते हैं। यह मामला भी ऐसा ही हैं। समय का चक्र ऐसा घूम रहा है कि एक गम्भीर मामले के आरोपी के समक्ष खाकी वर्दी नतमस्तक हो गई हैं। वही जूनियर अफसरों का एक धड़ा राजनैतिक संरक्षण में अपने ही वरिष्ठ अफसरों के खिलाफ साजिशों में जुट गया हैं।
आमतौर पर देखा जाता है कि तीज-त्यौहार का वक्त आते ही लोग पचांग देखकर शुभ मूहूर्त की खोजबीन में जुट जाते हैं। फिर उस शुभ योग में भगवान का पूजा अनुष्ठान होता हैं। इस दौरान अक्सर खबरों में बताया जाता है कि सौ साल या दो सौ साल बाद ऐसा शुभ मूहूर्त आया हैं। शादी विवाह के मामलों में भी पंडित जी बताते है कि विवाह की ऐसी बेला उस वक्त भी थी जब ’’राम सीता’’ और ’’शिव पार्वती’’ की लग्न हुई थी। ग्रह दशा और ग्रहों के योग को लेकर अक्सर कहा जाता है कि ऐसा योग सतयुग और त्रेतायुग के हजारों साल बाद एक बार फिर इस कलयुग में आया है। अर्थात् कई वर्षों बाद ग्रह और नक्षत्र एक ही कक्षा में नजर आते हैं। ऐसा योग छत्तीसगढ़ में चंद वर्षों में ही आ गया। जब भूपेश बघेल मुख्यमंत्री के पद पर और उनका जेल योग तय करने वाले अफसर उनके हुक्म की तालीम में खडे़ हैं।
दरअसल वर्ष 2017 के सितम्बर-अक्टूबर माह में एक अश्लील सीडी की चर्चा खूब शुरू हुई थी। इस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के मंत्री मण्डल के सदस्य राजेश मूणत मुफ्त में बदनाम होते रहे थे। उन्हें अश्लील सीडी अपना शिकार बनाया था। लेकिन चंद घंटों में ही असलियत सामने आ गयी। राजेश मूणत की छवि पहले की तरह उस वक्त निखर गयी, जब पता पडा कि किसी अन्य शख्स के चेहरे पर उनका चेहरा लगाकर विडियों एडिट किया गया हैं। यह कार्य मुम्बई दिल्ली में अंजाम दिया गया था। इस मामले की जाँच के बाद हकीकत सामने आने पर बीजेपी और मूणत समर्थको ने रहत की सांस ली थी। उधर छत्तीसगढ़ पुलिस ने जाँच के बाद इस अश्लील सीडी के निर्माता निर्देशक को जनता के सामने ला खडा किया। पुलिस ने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल और उनके करीबी रिश्तेदार विनोद वर्मा को अपनी गिरफ्त में लिया था। इस मामले की गम्भीरता को देखते हुए सीबीआई जाँच के निर्देश भी दिये गये थे। सीबीआई ने भी अपनी जाँच में बघेल और विनोद वर्मा को सेक्स सीडी काण्ड के मुख्य आरोपी के रूप में नामजद कर जेल की सीखंचों के भीतर भेजा था।
सेक्स सीडी काण्ड के दौरान रायपुर के पुलिस अधीक्षक के पद पर संजीव शुक्ला, आईजी प्रदीप गुप्ता और इंटेलिजेन्स प्रमुख एडीजी अशोक जुनेजा पदस्थ थे। इन्ही अफसरों के मार्ग दर्शन और निर्देशन में छत्तीसगढ़ पुलिस ने रायपुर से लेकर दिल्ली तक कामयाबी का सफर तय किया था। अश्लील सीडी काण्ड के आरोपियों को राजनैतिक गलियारे से खोज निकालना और उन्हें जेल की सैर कराना वाकई हैरत अंगेज और साहसिक कार्य था। इन अफसरों की कर्तव्यनिष्ठा और बगैर किसी राजनैतिक दबाव के सम्पन्न की गई वैधानिक कार्यवाही आज भी अदालतों में चर्चा का विषय बनी हुई हैं।दिलचस्प बात यह है कि ग्रह दशा का वही योग एक बार फिर इस वर्ष देखने मिल रहा हैं। नये साल में गुरू-पुष्प नक्षत्र का ऐसा योग मात्र पांच साल में ही आ गया। अब बघेल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे है, तो रायुपर के तत्कालीन एसपी संजीव शुक्ला के हाथों में डीआईजी सीआईडी की कमान हैं। तत्कालीन एडीजी इंटेलिजेन्स अशोक जूनेजा अब डीजीपी बन चुके हैं। जबकि एडीजी प्रदीप गुप्ता को प्रदेश के अगले डीजीपी की कुर्सी में बैठाने की कवायत अभी से शुरू हो गयी हैं।
सूत्रों द्वारा बताया जाता है कि राज्य के जूनियर आईपीएस अधिकारियों के एक गुट ने जूनेजा के उत्तराधिकारी अर्थात अगले डीजीपी के रूप में प्रदीप गुप्ता की ताजपोशी की तैयारी शुरू अभी से कर दी हैं। इसके लिए 1994 बैच के एडीजी एसआरपी कल्लूरी और एडीजी जीपी सिंह को प्रतियोगिता से बाहर करने का खांका खींचा गया हैं। इसके लिए इन वरिष्ठ अफसरों को अनिवार्य सेवा निवृत्ति देने के लिए आनन फानन में एक प्रस्ताव केन्द्र को भेज दिया गया था। बताया जाता है कि राजनैतिक स्वार्थ, दुषित मानसिकता और बेबुनियाद तथ्यों पर आधारित इस प्रस्ताव को केन्द्र सरकार ने छत्तीसगढ़ सरकार को वापस लौटा दिया है।
हालांकि इस बारे में राज्य सरकार ने अधिकृत रूप से कोई बयान जारी नहीं किया हैं, कि किन कारणों से प्रस्ताव लौटा दिया गया। सूत्र बताते है कि कई विधि संगत कार्यवाहियों को नजर अन्दाज कर बगैर ठोस जानकारी के भेजे गये इस प्रस्ताव से एमएचए के अफसरों को राजनीति और द्वेष की बू आ रही थी। लिहाजा इस प्रस्ताव को वापस करना ही उन्होंने मुनासिफ समझा। बताया जाता है कि एक और एडीजी पवन देव को भी अनिवार्य सेवा निवृत्ति दिये जाने की कसरत जूनियर अफसरों ने की थी। लेकिन आखिरी समय उनकी फाईल रोक दी गयी।
इस तथ्य पर गौर करना जरूरी है कि आखिर क्यों एडीजी कल्लूरी और एडीजी जीपी सिंह को नौकरी से बाहर करने का गैर कानूनी रास्ता खोजा गया था। जबकि मौजूदा कांग्रेस सरकार ने ही उनकी योग्यता और काबिलियत को ध्यान रखते हुए इन दोनों ही अफसरों को एसीबी-ईओडब्लू की कमान सौंपी थी। इनके कार्यकाल में ऐसा क्या हुआ कि चंद महीनों में ही दोनों ही अफसरो को उनकी पदों से हटाकर फोर्सफुल रिटायरमेन्ट के लिए निशाने पर लिया गया।
सूत्र बताते है कि नान घोटाले अर्थात नागरिक आपूर्ति निगम में हुए करीब 36 हजार करोड़ के घोटाले के मुख्य सरगना आईएएस अनिल टुटेजा को बचाने के लिए इन दोनों ही अफसरों पर कांग्रेस सरकार का भारी दबाव था। यह भी कहा जा रहा हैं कि सरकार की खतरनाक मंशा को भाँपने और फिर उसे नकारने के चलते कल्लूरी को लूप लाइन में भेज दिया गया था। उनके स्थान पर बडे़ अरमानों के साथ ईओडब्लू एसीबी की कमान एडीजी जीपी सिंह को सौंपी गयी थी। जब उन्होंने ने भी इस गैर कानूनी कार्य को अंजाम देने से इंकार कर दिया तो राज्य सरकार ने पहले तो उन्हें भी लूप लाइन में भेजा। फिर फर्जी मामले दर्ज कर उनकी घेराबन्दी कर दी। फिलहाल दोनों ही अफसर कानूनी दांवपेचों में उलझे हुए हैं।
इस बीच एडीजी राजेश मिश्रा को ईओडब्लू एसीबी की कमान सौंपे जाने की चर्चा जोरों पर हैं। अब देखना होगा कि वो कुशलता पूर्वक अपना कार्यकाल पूर्ण करते है या फिर सरकार की मंशा पर खरे उतरते हैं। उधर ईओडब्लू एसीबी में किसी एडीजी की हैटरिक को लेकर लोगों की निगाहे जूनियर अफसरों के खेल पर टिकी हुई हैं।