रायपुर: छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के उच्च प्रतिमान स्थापित करने वाले पत्रकारों की फेहरिस्त में मुकेश सिंह का नाम सम्मान के साथ लिया जाता है। प्रदेश सरकार ने मुकेश सिंह को स्वर्गीय मधुकेर खेर स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार से नवाज़ा था। हालिया, उन्हें पब्लिक रिलेशन्स सोसाइटी ऑफ़ इंडिया के रायपुर चैप्टर ने राष्ट्रीय जनसम्पर्क दिवस के मौके पर डीपी चौबे स्मृति जनसम्पर्क पुरुस्कार प्रदान किया है। मुकेश सिंह की पत्रकारिता का अपना ही अलग मिजाज बताया जाता है। पेशेवर पत्रकारिता के साथ सैद्धांतिक पत्रकारिता का घालमेल कर आखिर कैसे प्रजातंत्र में जनता की आवाज बुलंद की जाती है, मुकेश सिंह को बखूबी आता है।

अंग्रेजी अख़बार ‘द हितवाद’ में वर्षों से कार्यरत मुकेश की लेखनी ‘होनी-अनहोनी’ से जनता को ना केवल परिचित करवाती है, बल्कि कानूनी पहलुओं का बखूबी वर्णन कर घटना का रचात्मक और नकारात्मक प्रभाव से भी लोगों को आगाह करती है। देश-प्रदेश में सैद्धांतिक पत्रकारिता का दौर लगभग ख़त्म हो चूका है, यू कहे कि नैतिकता की पत्रकारिता अंतिम सांसे गिन रही है, हालाँकि कानून के तकाजे पर खरी उतरने वाली खबरों के प्रकाशन-प्रसारण को लेकर आज भी सत्ता के गलियारों से लेकर आम जनता के बीच उस पत्रकार को सराहा जाता है, जिसके हाथ कागज-कलम की मजबूत पकड़ और मुँह में सच उगलने योग्य जुबान होती है, मुकेश सिंह के हाथों में ऐसी बागडोर और आत्म अभिव्यक्ति की वो ललक नजर आती है, जो पेशेवर पत्रकारिता कों नया आयाम दे रही है।

छत्तीसगढ़ में मुकेश सिंह अपने ही अंदाज में नित नए कलेवरों से प्रजातंत्र के चौथे स्तंभ की विजय-पताका फैला रहे है। पत्रकारिता के विशेष रंग में पले-बढ़े मुकेश एस सिंह ने ‘द हितवाद’ अंग्रेजी समाचार पत्र में सर्वेयर के पद से अपने कामकाज की शुरुआत की थी। ऐसा बहुत कम संयोगवश ही होता है कि किसी शख्स को नौकरी में कदम रखने वाले संस्थान में ही उच्च विशेष पद पर कार्य करने का मौका भी मिले, खासतौर पर पत्रकारिता संस्थानों में। आमतौर पर ऐसे संस्थानों में सुनहरे भविष्य के मद्देनजर बौद्धिक क्षमता का इधर से उधर होना स्वाभाविक माना जाता है। इस लिहाज से गौरव करने वाले अभिभूत क्षणों की अनुभूति करने वालों में मुकेश सिंह भाग्यशाली बताये जाते है। उन्होंने जिस अंग्रेजी अख़बार में सर्वेयर के पद से अपने पत्रकारिता जीवन की नींव रखी थी, आज उसी संस्थान और समाचार पत्र में न्यूज एडिटर के पद पर कार्यरत हैं।

मुकेश के करीबी तस्दीक करते है कि वे छत्तीसगढ़ में शिव के गण के रूप में भी जाने-पहचाने जाते है। वाराणसी भगवान शंकर की नगरी, उनका जन्म स्थान है, जबकि भगवान राम का ननिहाल छत्तीसगढ़, मुकेश की कर्मभूमि। पत्रकारिता की तमाम विधाओं में पारंगत मुकेश का अंदाज ए बयां ‘जय भोलेनाथ’ सहज प्रतीत पड़ता है।

1998 के दौर में प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार स्व. रम्मू श्रीवास्तव और जॉर्ज कुरियन के निर्देशन में मुकेश सिंह को स्टाफ रिपोर्टर की पहली जिम्मेदारी सौंपी गई थी। उन्होंने बखूबी के साथ अपना कार्य किया। 2001 में छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद मध्य भारत के प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्र के संपादकीय प्रमुख की जिम्मेदारी वरिष्ठ पत्रकार और चिंतक स्व. रमेश नैयर के हाथों में सौंप दी गई। इस दौर में मुकेश सिंह को पत्रकारिता के एक अन्य रंग में रंगने का मौका मिला। उन्होंने खेल रिपोर्टर की लेखनी को इतना पैना बनाया था कि कई नामी-गिरामी खिलाड़ी अपना जौहर अख़बारों में देखने के लिए लालायित रहते। मुकेश सिंह की खबरों का खिलाड़ियों को घंटों इंतज़ार रहता। इस दौर में सुबह-सबेरे खेल मैदानों में हाथों में अख़बार थामे, खिलाड़ियों के बीच मुकेश की लेखनी एनर्जी टॉनिक का काम करते नजर आती थी।

हौसला अफजाई के साथ जीत-हार का अद्भुत समावेश उनकी खबरों में होता। अख़बारों पर नजर दौड़ाने के बाद खिलाड़ी फूले नहीं समाते थे, यही तो है, इस पत्रकार का चमत्कार।मुकेश सिंह की पत्रकारिता ने प्रदेश में अलग मुकाम हासिल किया है। छत्तीसगढ़ को राष्ट्रीय परिदृश्य में बनाये रखने के लिए उनका योगदान आज पर्यन्त तक जारी है। खोजी पत्रकारिता की विशेष पहचान कायम कर चुके मुकेश सिंह की धार-धार लेखनी इन दिनों देश-प्रदेश तक सुर्खियां बटोर रही है, बतौर पत्रकार अपने कर्तव्यों के प्रति पूर्ण प्रतिबद्धता से स्थापित उनका मुकाम पत्रकारिता की नई पीढ़ी के लिए आदर्श साबित हो रहा है।
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