
दिल्ली/रायपुर: छत्तीसगढ़ में डेढ़ साल पुरानी बीजेपी सरकार में सब कुछ ठीक ठाक चल रहा है ? इसका अंदाजा इसी प्रकरण से लगाया जा सकता है कि बहुमत होने के बावजूद छत्तीसगढ़ हज कमेटी से बीजेपी उम्मीदवार को दरकिनार कर कमेटी की कुर्सी एक-तरफा पूर्व मुख्यमंत्री करप्शन बघेल के हाथों में सौंप दी गई। वारदात के मुताबिक छत्तीसगढ़ हज कमेटी के मतदान के दौरान चुनाव टीम और पीठासीन अधिकारी को बंधक बना लिया गया था। इसके बाद मौत के घाट उतारे जाने के भय से पीठासीन अधिकारी ने हाथो-हाथ पूर्व मुख्यमंत्री समर्थक उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित कर दी। जबकि जीत दर्ज करने वाले उम्मीदवार और बीजेपी उम्मीदवार को बराबर-बराबर वोट मिले थे। मतगणना के दौरान आपत्ति किये जाने पर भूपे समर्थित उम्मीदवार एक मात्र वोट के अंतर से हार गया था। बावजूद इसके उसे निर्वाचन प्रमाण पत्र सौंप दिया गया। मामला गंभीर बताया जाता है।

जानकारी के मुताबिक बंधक मुक्त होने के बाद पीड़ित पीठासीन अधिकारी ने इस धांधली और अपनी आपबीती से छत्तीसगढ़ सरकार को रूबरू कराया है। उन्होंने बाकायदा चीफ सेक्रेटरी और विभागीय प्रमुख सचिव को प्रतिवेदन रिपोर्ट भेज कर घटनाक्रम की जानकारी भी दी। लेकिन नौकरशाही का रुख देखिए ? संवैधानिक संस्थान में बरती गई धांधली में पीठासीन अधिकारी की गुहार पर ना तो कोई FIR दर्ज की गई और ना ही राज्य सरकार ने इस मामले में कोई गंभीरता दिखाई। नतीजतन, छदृम जीत से ओत-प्रोत भूपे गिरोह जहाँ अपने बाहुबल को लेकर ख़ुशी से सराबोर है, वही नौकरशाही के जरिये राज्य के मुख्यमंत्री को हाईजैक करने की तैयारी भी दिनों-दिन परवान चढ़ रही है।

प्रदेश की नौकरशाही में भूपे गिरोह का दबदबा अभी भी कायम बताया जा रहा है। इस गिरोह के कुख्यात नौकरशाहों से मुक्ति पाने में बीजेपी सरकार नाकामयाब साबित हुई है। राजनैतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि बीजेपी सरकार के अभी तक के कार्यकाल में कांग्रेसी पृष्ठभूमि के अफसरों का मलाईदार पदों पर काबिज होना आम बात थी। लेकिन अब संवैधानिक कमेटियों (निगम मंडल) में पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के अंधभक्तों का कब्ज़ा होना शुरू हो गया है।

छत्तीसगढ़ हज कमेटी के चुनाव का मामला इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है। बताया जाता है कि कथित कामयाबी हासिल करने के बाद नव नियुक्त चेयरमैन ने कार्यभार ग्रहण करते ही सीधेतौर पर उस ठिकाने का रुख किया था, जहाँ से ‘कृपा बरस’ रही है। बीजेपी सरकार के अरमानों पर पानी फेरने वाले चेयरमैन ने पूर्व मुख्यमंत्री का मुँह मीठा कर शुक्रिया अदा किया। सोशल मीडिया में वायरल हो रही ये तस्वीरें और हज कमेटी चुनाव का अंक गणित, बीजेपी को मुँह चिढ़ाने के लिए काफी बताया जा रहा है।

राजनैतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि सत्ता से हाथ धोने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री का गिरोह नई कवायत में व्यस्त है, इसके तहत मौजूदा मुख्यमंत्री और उनके सचिवालय को हाईजैक करने की कोशिशें जोरो पर जारी है। प्रदेश में सत्ता और सरकार भले ही बीजेपी की हो लेकिन इसकी चाबी बघेल गिरोह के रंग में रंगी प्रभावशील नौकरशाही के हाथों में बताई जा रही है। यह भी बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की मंशा पर पानी फेरने की शक्ति कांग्रेस की बूते में नहीं है, इस तथ्य को पूर्व मुख्यमंत्री भली भांति जानते है, लिहाजा वे नौकरशाही के उस धड़े कों प्रभावशील और अधिकार संपन्न बनाने में जुटे है, जहाँ से महत्वपूर्ण फैसलों पर मुख्यमंत्री कार्यालय की मुहर लग रही है।

सूत्र तस्दीक करते है कि बीजेपी सरकार में चलनशील नौकरशाह नीतिगत फैसलों के नाम पर कांग्रेस पार्टी के प्रति निष्ठावान लोगों और सरकारी सेवकों को उपकृत करने का एजेंडा चला रहे है। प्रदेश के चहुमुखी विकास की ओर अग्रसर मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के सामने कांग्रेस पार्टी नहीं बल्कि नौकरशाही का वो धड़ा नई मुश्किलें और चुनौतियां पेश कर रहा है, जिसने कांग्रेस राज में इस प्रदेश की धन सम्प्रदा को बचाने के बजाय सरकारी तिजोरी को ही पूर्व मुख्यमंत्री बघेल गिरोह के हाथों में सौंप दिया था, ऐसे चुनिंदा नौकरशाह बीजेपी सरकार में आज भी प्रभावशील पदों पर कायम बताये जाते है।

प्रदेश में जिनकी अगुवाई में पूर्व मुख्यमंत्री और उसकी टोली ने दर्जनों घोटालों को अंजाम दिया था, वही नौकरशाह सत्ता बदलते ही बीजेपी सरकार की योजनाओं और नीतियों का निर्धारण कर रहे है। मौजूदा सरकार की रहनुमाई में एक बार फिर गैर-क़ानूनी कृत्यों का बी बोलबाला जारी है। सत्ताधारी दल की दशा-दिशा को लेकर बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता भी हैरत में बताये जाते है। में

छत्तीसगढ़ में उच्च पदस्थ नौकरशाही का रवैये से बीजेपी सरकार का विवादों से नाता जुड़ने लगा है। जानकारों के मुताबिक प्रभावशील नौकरशाही को छत्तीसगढ़ शासन के प्रति निष्ठावान बनाने में साय सरकार लगातार ना-कामयाब होती नजर आ रही है, इसके चलते पूर्व मुख्यमंत्री के प्रति निष्ठावान अधिकारियों की बीजेपी सरकार में सहभागिता जोरो पर बताई जाती है। उनकी कार्यप्रणाली से इन दिनों सत्ताधारी दल और उसके कई नेता भी दो-चार हो रहे है। बताते है कि कांग्रेस समर्थित ऐसे अफसरों की अपना-पराये वाली भावना के चलते जहाँ कांग्रेस और भूपे गिरोह गदगद है, वही बीजेपी सरकार की मंशा पर पानी फिरना भी शुरू हो गया है।

राजनीति के जानकार तस्दीक करते है कि मुख्यमंत्री की कुर्सी और सत्ता से बेदखल होने के बाद बघेल एंड कंपनी टॉप क्लास नौकरशाही के जरिये बीजेपी सरकार और उसके बेहतर कार्यों को विवादित करने में जुटी है। शासन-प्रशासन उन अधिकारियों के कब्जे में बताया जा रहा है, जो बीजेपी सरकार के कामकाज को पटरी पर लाने के बजाय मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं के इशारों पर प्रशासनिक गतिविधियों को अंजाम दे रहा है। इससे विपक्ष की दलगत भावनाओं पर पानी फेरने के बजाय छत्तीसगढ़ शासन की मंशा पर ही लगाम कसने की कवायतें जोरो पर जारी बताई जा रही है।

राजनैतिक गलियारों में माथापच्ची इस बात को लेकर भी हो रही है कि आखिर कौन पर्दे के पीछे से सत्ता का संचालन कर रहा है। दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री बघेल के विश्वासपात्र अफसरों के हाथों में ही मौजूदा बीजेपी सरकार की कमान है, जनता से जुड़े ज्यादातर महत्वपूर्ण विभागों के प्रभावशील पदों पर पूर्व मुख्यमंत्री के प्रति निष्ठावान अफसर ही आसीन है, उनकी कार्यप्रणाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की तर्ज पर ही सामने आ रही है। प्रशासनिक कामकाज के बजाय ऐसे सरकारी कमाऊ पूत पूर्व मुख्यमंत्री के हितों को ध्यान में रखते हुए सत्ता के दुरुपयोग में जुटे बताये जाते है।

जानकारों के मुताबिक अब नौकरशाही के जरिए पूर्व मुख्यमंत्री अपनी राजनैतिक रोटी सेंक रहे है। मुख्यमंत्री की शक्तियों को हाईजैक करने के लिए ‘सुपर सीएम’ जैसी शक्तियां एक बार फिर राजनैतिक और प्रशासनिक गलियारों में हिलोरे मार रही है। जानकार यह भी तस्दीक करते है कि कई महत्वपूर्ण मामलों को मुख्यमंत्री साय के संज्ञान में लाये बगैर ही सचिवालय से फरमान जारी होने लगे है, बवाल मचने पर संशोधन भी जोरो पर है।

बीजेपी सरकार के अब तक के बेहतर प्रदर्शन पर बेलगाम नौकरशाही भारी पड़ती नजर आ रही है। उसका मंसूबा संदिग्ध बताया जाता है। जानकारों के मुताबिक मुख्यमंत्री साय ‘बीजेपी घोषणा पत्र’ के तमाम वादों को लागू करने के लिए जी-तोड़ प्रयास कर रहे है, इसका व्यापक असर भी हो रहा है। लेकिन बेलगाम नौकरशाही के क्रियाकलापों से कांग्रेस को बैठे-बिठाये एक से बढ़कर एक मुद्दे भी सौंपे जा रहे है। इन्ही मुद्दों को हथियार बना कर भूपे गिरोह बीजेपी सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतर रहा है।

छत्तीसगढ़ राज्य हज कमेटी का चुनाव भी नौकरशाही के मंसूबों से जोड़ कर देखा जा रहा है। जानकार सूत्रों के मुताबिक नौकरशाही का एक धड़ा आने वाले दिनों बीजेपी को ऐसे ही मामलों में उलझा कर तगड़ा झटका देने की तैयारी में है। हज कमेटी के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मोहम्मद इमरान और पूर्व मुख्यमंत्री बघेल से उनकी मुलाकात प्रदेश में जारी नए समीकरणों की ओर सीधा संकेत कर रही है। बताते है कि चेयरमैन की कुर्सी संभालने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री की शरण में पहुंचे हज कमेटी के अध्यक्ष ने हाजियों एवं मुस्लिम समाज के हित में बेहतर कार्य करने के लिए अपनी प्रतिबद्धता दोहराई।

जानकारी के मुताबिक हज कमेटी के हालिया चुनाव में बड़ा विवाद सामने आया है। कहा जाता है कि बीजेपी समर्थित उम्मीदवारों के हिस्से में 6 वोट निर्धारित थे, मतदान पूर्व ही उनकी जीत सुनिश्चित मानी जा रही थी। लेकिन नौकरशाही के जरिये सेंधमारी में जुटी टीम भूपे ने मतदान के पूर्व ही बीजेपी के 5 वोटरों को ऐसी घुटी पिलाई की वे चुनाव का बहिष्कार कर बैठे। चुनावी मैदान से बाहर हुए इन महत्वपूर्ण वोटरों के रुख से मुकाबला कांटेदार हो गया। सूत्रों के मुताबिक पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व मंत्री अकबर की रणनीति के तहत चुनावी कार्य में व्यस्त पीठासीन अधिकारी को मौके पर अचानक बंधक बना लिया गया।

दरअसल, मतदान में बीजेपी और कांग्रेस समर्थित उम्मीदवारों को बराबर-बराबर मात्र 3-3 वोट हासिल हुए थे। लेकिन मतगणना के दौरान आपत्ति जाहिर किये जाने पर पीठासीन अधिकारी ने पूर्व मुख्यमंत्री समर्थक मोहम्मद इमरान का तीसरा वोट अवैध घोषित कर निरस्त कर दिया था। यह भी बताया जाता है कि बीजेपी उम्मीदवार की जीत तय होते ही कमरे में अचानक शोरगुल हुआ और चुनाव अधिकारी दशरथ साहू, अपर सचिव छत्तीसगढ़ शासन को बंधक बना लिया गया। शिकायतकर्ताओं के मुताबिक बंधक मुक्त होने के लिए अपर सचिव और उनकी टीम ने जमकर हाथ-पैर मारा था। लेकिन बाहुबलियों के सामने उनकी एक ना चली।

शिकायत में यह भी बताया गया है कि मौके पर मौजूद कई लोगों ने घटना की जानकारी वक्फ बोर्ड के चेयरमैन डॉ. सलीम राज को दी थी। हालांकि वाक्या सामने आने के बाद डॉ. सलीम राज तो मौके पर नहीं पहुंचे, लेकिन उनके वाहन चालाक ने आपात परिस्थितियों का सामना करते हुए पीड़ित चुनाव अधिकारी दशरथ साहू और उनकी टीम को सुरक्षित रूप से सरकारी दफ्तर तक पहुँचाया था।

पीड़ित पीठासीन अधिकारी ने एक प्रतिवेदन सौंप कर छत्तीसगढ़ शासन को अपनी आपबीती सुनाई है। यह भी बताया जाता है कि पीड़ितों द्वारा इस प्रतिवेदन रिपोर्ट को राज्य सरकार को भेजे लंबा समय गुजर चूका है। लेकिन राज्य सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की, उसने घटनाक्रम की गंभीरता को लेकर ना तो पीड़ितों की गुहार को ‘गौर’ करने लायक समझा और ना ही जांच के निर्देश दिए। शिकायत में बताया गया है कि हज कमेटी के चुनाव को जीतने के लिए ‘भूपे गिरोह’ ने कई अवैध कदम उठाये थे। इसमें बंदी बनाई गई चुनाव टीम को मौत के घाट उतारे जाने की चेतावनी जैसी दास्तान भी शामिल बताई जाती है। जानकारी के मुताबिक पीड़ित पीठासीन अधिकारी और चुनाव टीम ने प्रतिवेदन ने अपनी आपबीती सुनाते हुए पूरे घटनाक्रम को सिलसिलेवार दर्ज कराया गया है।

यह प्रतिवेदन मुख्य सचिव के कार्यालय से लेकर अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव तक के कार्यालय में सौंपा गया था। बताते है कि भूपे रंग में रंगी नौकरशाही ने इस प्रतिवेदन को रद्दी की टोकरी में धकेल दिया, लंबा समय गुजर जाने के बावजूद पीड़ितों के इस प्रतिवेदन पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। प्रदेश की टॉप क्लास नौकरशाही के रुख से राज्य सरकार के प्रति निष्ठावान कर्मियों में रोष देखा जा रहा है। उनका मानना है कि पीठासीन अधिकारी सरकारी सेवा के तहत चुनाव कार्य संपन्न कराने के लिए संबंधित संस्थान पहुंचे थे। लेकिन विरोधी पक्षों ने इस टीम को जोर-जबरदस्ती बंधक बनाकर निर्वाचन प्रमाण पत्र हासिल कर लिया था।
उनके मुताबिक संवैधानिक संस्था के चुनाव में जोर-जबरदस्ती से बीजेपी से ज्यादा छत्तीसगढ़ शासन की छवि धूमिल हुई है। पीड़ित कर्मचारियों ने भी अंदेशा जाहिर किया है कि कांग्रेस सरकार की रवानगी के बाद आमूलचूल बदलाव नहीं होने से नौकरशाही में ऐसे तत्वों की भरमार हो गई है, जिनके कु-चक्र का सामना करते-करते सरकारी कर्मचारी भी पस्त है। उनके मुताबिक ऐसे अधिकारियों की करतूतों ने पहले कांग्रेस सरकार का भट्टा बिठाया अब बीजेपी को निशाने पर लिया गया है। चुनाव दर चुनाव रंग बदलते उच्च पदस्थ नौकरशाहों की कार्यप्रणाली पर आपत्ति जाहिर करते हुए पूरे मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की गई है।