ऐसा तो 1974 में भी नहीं हुआ, जब 21 दिनों का था चक्काजाम, इमरजेंसी के दिनों से लेकर अब तक इतना कामयाब नहीं रहा कोई अभियान, जनता कर्फ्यू कोरोना के खिलाफ कारगर मुहिम

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दिल्ली वेब डेस्क / राजनैतिक गलियारों में जनता कर्फ्यू को सबसे कामयाब अभियान के रूप में देखा जा रहा है | यह देश का पहला आंदोलन है जिसमे सत्ताधारी दल से लेकर विपक्ष तक अपने घरों में कैद रहा | भले ही कोरोना नामक बीमारी के खिलाफ यह कदम हो, लेकिन जनता कर्फ्यू की गूँज भारत के शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों में देखी जा रही है | जनता कर्फ्यू को देखने के बाद कई राजनेता फ्लेशबैक में चले गए है | वो इसकी तुलना इमरजेंसी और उसके पहले के दौर से कर रहे है |

कई नेताओं को उस दौर की याद आ गई जब उन्होंने अपने विरोधियों को सत्ता से बाहर करने के लिए इस तरह के अभियान छेड़े थे | राजनीति में अब गिने चुने ऐसे नेता ही बचे है जिन्होंने इमरजेंसी का दौर देखा है | ऐसे ही नेताओ से हमारी टीम रूबरू हुई | 

खनऊ में निवासरत समाजवादी नेता शिवगोपाल मिश्रा ने कहा कि  पूर्व केंद्रीय मंत्री जार्ज फर्नांडीस के रेल रोको अभियान के तहत 8 मई 1974 से 15 मई 1974 तक चक्काजाम पूरी तरह से सफल रहा था।  उन्होंने बताया कि आंदोलन पूरे 22 दिन तक चला। कई जगह 3 दिन, कई जगह 4 दिन और कई जगह 15 दिन चक्काजाम रहा। जार्ज फर्नांडीस 1 मई 1974 को लखनऊ में हिरासत में ले लिए गए। लिहाजा कई जगहों पर हड़ताल 2 मई से शुरू हो गई। हालांकि जहां 2 मई से हड़ताल हुई वहां हड़ताल फेल भी हुई थी। लेकिन ऐसा नज़ारा नहीं देखने मिला जैसा कि जनता कर्फ्यू के दिन दिखाई दिया |

 उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए बताया कि चक्काजाम ने आठ मई से जोर पकड़ा और 15 मई तक पूरे देश में ही रेल का चक्काजाम रहा था। हालांकि कुछ जगहों पर ट्रेनें चली भी थी। कई जगह सरकार ने फर्जी तरीके से रेलवे ट्रैक पर सिर्फ इंजन चलाया। खाली इंजन चलते रहे और सीटी बजाते रहे, यात्री ट्रेन में नहीं बैठे। सेना के जवान ही ट्रेन में सवार थे। छिटपुट ट्रेन चलती रही थी। उन्होंने कहा कि इस मामले में जनता कर्फ्यू यादगार रहा | 

शिवगोपाल मिश्रा ने हमारी टीम से बातचीत में यह भी बताया कि फरोजपुर रेल मंडल, मुरादाबद रेल मंडल, लखनऊ रेल मंडल में हड़ताल बेहद सफल रहा था। दिल्ली रेल मंडल में 75 प्रतिशत, लखनऊ 80 प्रतिशत, भटिंडा में भी करीब-करीब पूरी ट्रेन बंद थी। पंजाब मेल व लखनऊ मेल सरकार ने फर्जी तरीके से चलाई। 8 मई से 15 मई के बीच सबसे ज्यादा असर चक्काजाम का दिखा। 28 मई 1974 को ऑल इंडिया रेलवे फेडरेशन ने हड़ताल को वापस लिया।

फ़िलहाल कोरोना के खिलाफ लोगों की मुहिम कुछ इसी तर्ज पर नज़र आ रही है | रेलवे, सड़क और आवाजाही सब कुछ ठप्प है | शहरों से लेकर ग्रामीण इलाकों में वीरानी छाई है | लोगो ने स्वस्फ़ूर्त जनता कर्फ्यू में अपनी हिस्सेदारी तय की है | 

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