इस बेटी ने कभी सपने में नहीं सोचा था कि उसे 20 हजार करोड़ रुपये की प्रापर्टी पर हिस्सा मिलेगा, वसीयत में नहीं होने के बावजूद अदालत ने राजा की वारिस माना, पंजाब के फरीदकोट राजघराने का प्रॉपर्टी विवाद सुलझा

0
11

चंडीगढ़ वेब डेस्क / पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने फरीदकोट के स्वर्गीय राजा हरिंदर सिंह बराड़ की 20 हजार करोड़ रुपये की प्रापर्टी को लेकर फैसला सुना दिया है | अदालत ने उनकी बेटी अमृत कौर और दीपिंदर कौर को भी संपत्ति से हक देने का फैसला दिया है | वसीयत में दोनों बेटियों का नाम नहीं था | इसी के साथ रॉयल संपत्तियों का 25 प्रतिशत हिस्सा उनकी मां महारानी महिंदर कौर को दिया जाएगा |

फरीदकोट के राजा की संपति में एक महल, मनीमाजरा किला, मशोबरा, शिमला में करोड़ो की प्रॉपर्टी के अलावा बैंक में जमा धनराशि, ज्वेलरी, विंटेज कारों और इंडिया गेट के पास कोपरनिकस मार्ग पर स्थित फरीदकोट हाउस शामिल है | दरअसल महारानी महिंदर कौर और उनकी बेटी दीपिंदर कौर की अरसे पहले इस समय मौत हो चुकी है | संपत्ति के बंटवारे को लेकर राजा साहब के खानदान में जंग छिड़ी थी | अदालत के निर्देश के तहत अब उनके कानूनी उत्तराधिकारियों को हक़ मिलेगा |

जानकारी के मुताबिक 1989 में राजा हरिंदर सिंह बराड़ का निधन हो गया था | वे स्वतंत्रता के पहले तक फरीदकोट के अंतिम राजा थे| उनकी शादी पंजाब की ही नरिंद्र कौर से हुई थी| उनकी तीन बेटियां अमृत कौर, दीपिंदर कौर, महिपिंदर कौर और एक बेटा टिक्का हमोहिंदर था, जिसका 1981 में निधन हो गया था| जबकि महिपिंदर कौर की मृत्यु 2001 में हुई थी| इन दोनों ने शादी ने नहीं की थी| जबकि दीपिंदर कौर की शादी पश्चिम बंगाल के बर्दवान के शाही परिवार में हुई थी | बर्दमान कबीले के महाराजा सादे चंद महताब से उन्होंने शादी की थी |

राजा हरिंदर की पत्नी महारानी नरिंदर कौर की 1986 में मृत्यु हो गई, जबकि उनकी मां राजमाता महिंदर कौर की 1991 में मृत्यु हुई | बताया जाता है कि राजा को सबसे ज्यादा सदमा अपनी बेटे की मौत से पहुंचा था, जिसके बाद उन्होंने अपनी संपत्ति की देख रेख के लिए महारावल कावाजी ट्रस्ट बनाया था | इसी दौरान उन्होंने अपनी वसीयत लिखी थी|

राजा साहब ने इस ट्रस्ट का चेयरपर्सन दीपिंदर सिंह को बनाया | जबकि महीपिंदर कौर को वाइस चेयरपर्सन बनाया गया था | कालांतर में दीपिंदर की मृत्यु के बाद उनके बेटे जय चंद महताब को हाल ही में ट्रस्ट का अध्यक्ष बनाया गया था | दीपिंदर ने 1952 में हरिंदर द्वारा हस्ताक्षरित एक अन्य वसीयत का भी दावा किया था | उन्होंने दावा किया था कि अमृत कौर को अपनी इच्छा के खिलाफ विवाह करने के लिए पिता ने अपनी संपत्ति से निकाल दिया था |

इसके बाद राजा की सम्पत्ति को लेकर विवाद छिड़ गया | फरीदकोट संपत्ति पर अधिकार का दावा करने वाला पहला मुकदमा राजा हरिंदर के छोटे भाई, कंवर मंजीत इंदर सिंह बराड़ ने अप्रैल 1992 में दायर किया था| उन्होंने कहा था अगर किसी राजा की मृत्यु हो जाती है और उनके बेटे की भी मुत्यु हो जाती है तो ऐसे में शाही परिवार के सबसे बड़े जीवित पुरुष सदस्य को संपत्ति विरासत में मिलनी चाहिए|

दूसरी ओर 1992 में अमृत कौर ने अपने पिता की संपत्ति पर अधिकार का दावा करते हुए मुकदमा दायर किया था| उन्होंने याचिका में कहा था कि एकलौते बेटे के खोने के कारण उसके पिता “मानसिक रूप” से परेशान थे | उन्होंने यह भी दावा किया था कि पिता को उसे “पैतृक” संपत्ति से बेदखल करने का कोई अधिकार नहीं था|

उन्होंने अपील की थी कि या तो संपत्ति को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार तीन समान भागों में विभाजित किया जाए या उन्हें अकेले फरीदकोट के एस्टेट अधिनियम, 1948 के अनुसार पूरी संपत्ति मिल जाए|

मामले की सुनवाई 2013 से लेकर 2018 तक चंडीगढ़ में दो निचली अदालतों में चली | अदालत ने अमृत के पक्ष में आंशिक रूप से फैसला सुनाया था| इसमें अमृत कौर को पिता की संपति में हिस्सा देने का निर्देश दिया गया था | कोर्ट ने आदेश दिया कि अमृत और उसके बहन दीपिंदर के बीच संपत्ति का बंटवारा किया जाए | जबकि तीसरी बहन का निधन हो चुका है | अदालत ने राजा के भाई मंजीत इंदर सिंह के तमाम दावे को खारिज कर दिया था | फ़िलहाल पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने वसीयत से बेदखल की गई राजा की दोनों बेटियों को संपत्ति का हक़दार बना दिया है |