
नई दिल्ली। संसद के उच्च सदन राज्यसभा में बुधवार को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और पहलगाम आतंकी हमले को लेकर विस्तृत चर्चा हुई। चर्चा के दूसरे दिन विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने सदन को संबोधित करते हुए सरकार के कड़े रुख और उठाए गए रणनीतिक कदमों की जानकारी दी। उन्होंने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए भारत सरकार ने जो सबसे अहम कदम उठाया, वह था सिंधु जल संधि को स्थगित करना।

जयशंकर ने कहा, “सिंधु जल संधि कई मायनों में एक अनोखा और असाधारण समझौता था। दुनिया में ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जहां एक देश ने अपनी प्रमुख नदियों का जल बिना अधिकार दिए दूसरे देश को दिया हो।” उन्होंने कहा कि इस समझौते को स्थगित करने का फैसला एक ऐतिहासिक मोड़ है और यह तब तक स्थगित रहेगा जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को पूरी तरह से समर्थन देना बंद नहीं करता।
‘खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते’
विदेश मंत्री ने दो टूक कहा, “खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि पाकिस्तान अगर आतंकवाद का समर्थन करता रहेगा तो भारत उसके साथ सामान्य व्यवहार नहीं कर सकता। जयशंकर ने विपक्ष पर भी निशाना साधते हुए कहा कि कुछ लोग इतिहास को भूल जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें वह असहज करता है। “वे बस वही बातें याद रखना पसंद करते हैं जो उन्हें शोभा देती हैं,” उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।

‘तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भारतीय राज्यों के हितों को नजरअंदाज किया’
जयशंकर ने 1960 में हुए सिंधु जल समझौते पर सवाल उठाते हुए कहा कि उस समय की केंद्र सरकार और तत्कालीन प्रधानमंत्री ने भारतीय राज्यों के हितों को नजरअंदाज किया। उन्होंने बताया कि “लोकसभा में दिए गए भाषण में पाकिस्तान के पंजाब की चिंता की गई, लेकिन जम्मू-कश्मीर और पंजाब जैसे भारतीय राज्यों की जरूरतों को दरकिनार कर दिया गया।”

‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता का किया जिक्र
जयशंकर ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता का उल्लेख करते हुए कहा कि भारत की एजेंसियों ने त्वरित और प्रभावी कार्रवाई करते हुए आतंकवादियों को निशाना बनाया और पाकिस्तानी प्रोपेगेंडा को करारा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि भारत अब सिर्फ निंदा करने वाला देश नहीं रहा, बल्कि जवाब देने वाला राष्ट्र बन चुका है।

निष्कर्ष:
जयशंकर के इस बयान ने साफ कर दिया है कि भारत अब कूटनीतिक और रणनीतिक स्तर पर पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाने को तैयार है। सिंधु जल संधि का स्थगन केवल एक प्रतीकात्मक कदम नहीं बल्कि एक मजबूत संदेश है कि अब भारत की नीति ‘पहले वार की प्रतीक्षा नहीं’ पर आधारित है।