नई दिल्ली / देश में कोरोना की दूसरी लहर का अंदेशा चार माह पहले ही जाहिर कर दिया गया था। इसमें कहा गया था कि ठंड के मौसम में कोरोना की दूसरी लहर आएगी। यह कुछ मायनों में सच भी साबित हुआ। दिल्ली समेत देश के दर्जन भर राज्यों में संक्रमण की रफ़्तार में दोबारा तेजी देखी गई। लेकिन अब इसकी रफ़्तार में कमी नजर आने लगी है। जानकारों का मानना है कि एक ओर जहाँ वायरस कमजोर पड़ा है वही लोगों की जागरूकता और सतर्कता से भी संक्रमण पर लगाम लगी है। जानकारों के मुताबिक देश की एक बड़ी शहरी और ग्रामीण आबादी ने अपनी इम्युनिटी बढ़ाने में भी जोर लगाया है।

इसके चलते कोरोना बैक फुट पर आने लगा है। एक करोड़ कोरोना संक्रमितों के करीब आंकड़ा पहुंचने से साफ़ है कि भारत में अब तक 60 फीसदी लोग संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। ऐसे में अमेरिका, इटली और जर्मनी समेत अन्य देशों की तरह संक्रमण की दूसरी लहर ज्यादातर राज्यों में दिखाई नहीं दे रही है। उनका यह भी मानना है कि अब दूसरी – तीसरी लहर का आना मुश्किल है। भारत सरकार के विशेषज्ञ समूह लगातार कोरोना संक्रमण को लेकर गणितीय मॉडल के आधार पर निगरानी रखे हुए हैं।

उनका यह भी मानना है कि 20,000 सक्रिय केस के साथ फरवरी तक कोरोना निष्क्रिय होने लगेगा। दो माह बाद अगले वर्ष फरवरी 2021 तक वायरस काफी हद तक स्थिर हो जाएगा। उनके मुताबिक महज 20,000 सक्रिय मरीज ही बचेंगे। इस समूह में ने हाल ही में सुपर मॉडल के आधार पर कोरोना संक्रमण के भविष्य को लेकर अध्ययन भी किया था। यह काफी सटीक रहा। इसी समूह ने अपने अध्ययन में बताया है कि देश में संक्रमण के मिसिंग केस ज्यादा हैं। इसके पीछे पूरी तरह से निगरानी न होना, एंटीजन किट्स के जरिए जांच के फॉलोअप में कमी इत्यादि है। देश में 85 से 90 प्रतिशत तक मिसिंग केस होने का अनुमान है। जिन राज्य में रिकवरी दर सबसे ज्यादा है वहां मिसिंग मामले भी अधिक हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि भारत में जहां संक्रमण के मिसिंग मामले अत्यधिक है। वहीं विदेशों में इनकी संख्या कम है। यूरोप अमेरिका और इटली जैसे देशों में एक-एक कोरोना मरीज पर 10 से 12 प्रतिशत मिसिंग मरीज हैं। ठीक इसी तरह से फ्रांस, ब्राजील और जर्मनी में 20 से 25 मामले प्रति संक्रमित मरीज पर मिसिंग मिल रहे हैं। इस समूह में सीएमसी वेल्लौर किटी के विशेषज्ञ डॉक्टर गगनदीप कांग, आईआईटी हैदराबाद के प्रोफेसर विद्यासागर, भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु के प्रोफेसर बिमान बागची, भारतीय सांख्यिकी संस्थान कोलकाता के शंकर पाल और अरूप बोस के अलावा कानपुर आईआईटी के प्रोफेसर मनींद्र अग्रवाल शामिल हैं।

उधर आईसीएमआर की राय है कि इस समूह के गणितीय मॉडल पर पूरी तरह यकीन नहीं कर सकते। आईसीएमआर के पूर्व महामारी विशेषज्ञ डॉक्टर रमन गंगाखेड़कर का कहना है कि गणितीय मॉडल के आधार पर संक्रमण की स्थिति को लेकर यकीन नहीं किया जा सकता है। जब चीन, अमेरिका और इटली जैसे देशों में कोरोना फैला तो वहां के गणितीय आकलन के हिसाब से भारत में स्थिति का अनुमान लगाया गया था लेकिन कोरोना के आने के बाद देश में एक अलग स्थिति देखी जा रही है जो अन्य देशों से एकदम अलग है।

हालाँकि उन्होंने भी कहा कि भारत में फिर से संक्रमण की लहर आना मुश्किल है। इसके पीछे एक बड़ी वजह टीकाकरण को लेकर काफी हद तक तैयारियां का पूरा होना है। यह कहा जा सकता है कि दूसरी लहर आने से पहले ही देश की एक चौथाई जनता में एंटीबॉडी पैदा हो जाएंगे। फ़िलहाल वैज्ञानिकों की राय गौरतलब और राहत देने वाली है।
