छत्तीसगढ़ पुलिस मुख्यालय में डीजी की पदोन्नती पर  गतिरोध, प्रशासनिक मशीनरी के लकवाग्रस्त होने से नियम कायदे रद्दी की टोकरी में, सरकारी फैसले अदालत की दहलीज में, कमजोर प्रशासनिक नेतृत्व से अदालत में मुकदमों का बढ़ता बोझ…. 

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दिल्ली/रायपुर: बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ प्रदेश से जुड़े घोटालों के बाद राज्य सरकार के अधीनस्त नौकरशाहों की पदोन्नति और बहाली को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों की झड़ी लगी हुई है। प्रदेश की शासन व्यवस्था को लेकर स्थापित नियम कायदों के उल्लंघन, त्रुटि-चूक और पदोन्नति में वरिष्ठता कों नजरअंदाज कर कृपापात्र अधिकारियों को अवसर प्रदान करने के प्रकरणों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वही दूसरी ओर लीक से हट कर अनुचित कार्यप्रणाली का परिचय देने के चलते कई मौकों पर राज्य सरकार को अदालती फटकार भी लग रही है। बावजूद इसके हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में प्रशासनिक खामियों को लेकर दायर याचिकाओं की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है।

कायदे कानूनों के तहत प्रदेश स्तर में ही सुलझने-निपटने वाले प्रकरणों के अदालत में बढ़ते बोझ को कानून के जानकार प्रदेश की प्रशासनिक मशीनरी की विफलता से जोड़ कर देख रहे है। उनके मुताबिक कभी विभाग प्रमुखों की विवादित कार्यप्रणाली तो कभी निर्दिष्ट नियम-कानूनों की अवहेलना के चलते शासन के कई सरकारी सेवकों कों बेवजह अदालत के चक्कर काटने पड़ रहे है। जानकारों के मुताबिक भ्रष्टाचार और घोटालों की तर्ज पर कानून का मखौल उड़ाने वाले विभागीय फैसलों से प्रदेश के प्रशासनिक नेतृत्व की कार्य क्षमता और अहर्ता सवालों के घेरे में है। सवाल उठ रहा है कि चीफ सेक्रेटरी, डीजीपी और अन्य विभागीय प्रमुखों का चयन उनकी प्रशासनिक और नेतृत्व क्षमता के आंकलन के बजाय कही ‘कुपात्रों’ को उपकृत करने के नीतिगत फैसले से तो नहीं जुड़ा है।

ताज़ा मामला पुलिस मुख्यालय में डीजी के पद पर चयनित उम्मीदवारों से जुड़ा है। दरअसल, 1994 बैच के आईपीएस हिमांशु गुप्ता के डीजी पदोन्नती को लेकर कई गंभीर सवाल खड़े हो गए है। जानकारी के मुताबिक पद्दोनति प्रक्रिया में वरिष्ठता और नियमों का पालन नहीं करने से पुलिस मुख्यालय में डीजी के पद को लेकर गतिरोध कायम हो गया है। कई विधिवेत्ताओं के अलावा प्रशासनिक क्षमता के धनी अधिकारियों को बीजेपी शासित छत्तीसगढ़ में एक अदद चीफ सेक्रेटरी, पुलिस महानिदेशक और वन एवं जलवायु विभाग के प्रमुख का इंतजार है। उनका मानना है कि ऐसे महत्वपूर्ण पदों के लिए योग्यता के साथ कार्यक्षमता को नजरअंदाज करना नौकरशाही पर भारी पड़ रहा है।

कई अफसर काम काज छोड़ अदालत का चक्कर काट रहे है। आम जनता से जुड़े महत्वपूर्ण विभागों के ‘मुखिया’ (विभाग प्रमुख) के चयन में खामियां बरते जाने से जहाँ विकास अवरुद्ध हो रहा है, वही कई सरकारी महकमों में गतिरोध पैदा हो गया है, क्षमताहीन और अकुशल अधिकारियों के फैसलों को अदालत में चुनौती दी जा रही है। वन एवं जलवायु विभाग के बाद पुलिस मुख्यालय में पदस्थ कई आलाधिकारी भी नियम कायदों के तहत पदों में नियुक्ति को लेकर दो चार हो रहे है।

बताया जाता है कि ‘डीजी’ पद पर नियमानुसार पदोन्नति हेतु 1994 बैच के आईपीएस शिवराम प्रसाद कल्लूरी के बजाय एक अन्य अधिकारी को पदोन्नति का तोहफा दे दिया गया है। जबकि सरकारी सेवा में 30 सालों की मियाद पूरी करने के बाद भी एसआरपी कल्लूरी को अपने पद के लिए बाँट जोहनी पड़ रही है। जानकारी के मुताबिक हिमांशु गुप्ता 1994 बैच के आईपीएस अधिकारी है, उनके मूल कैडर संयुक्त मध्यप्रदेश में 1995 बैच की वरिष्ठता सूची में हिमांशु गुप्ता का नाम शामिल नहीं किया गया है। बावजूद इसके छत्तीसगढ़ में उन्हें डीजी के पद पर पदोन्नत कर दिया गया है। इसके चलते पदोन्नति प्रक्रिया विवादों से घिर गई है। 

विभागीय सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक आईपीएस अधिकारियों की 1995 की वरिष्ठता सूची में गुरजिंदर पाल सिंह और शिवराम प्रसाद कल्लूरी का नाम दर्ज है। लेकिन इस महत्वपूर्ण तथ्यों को डीपीसी में नजरअंदाज कर दिया गया था। प्रशासनिक मामलों के जानकार यह भी तस्दीक करते है कि हिमांशु गुप्ता कनिष्ठ होने के बावजूद वरिष्ठता सूची में कैसे बाजी मार गए ? यह गंभीर जांच का विषय है। अखिल भारतीय सेवा अधिनियम के नियमों के तहत डीपीसी के वरिष्ठता सूचि का अवलोकन नहीं करने से मामला अब तूल पकड़ रहा है। 

जानकारी के मुताबिक हिमांशु गुप्ता त्रिपुरा कैडर के आईपीएस है, कैडर ट्रांसफर योजनांतर्गत उन्हें मध्यप्रदेश कैडर आबंटित किया गया था। वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद जब छत्तीसगढ़ राज्य अस्तित्व में आया तब उन्हें कैडर विभाजन में छत्तीसगढ़ आबंटित किया गया था। भारतीय पुलिस सेवा की कैडर ट्रांसफर नीति अंतर्गत मध्यप्रदेश कैडर की सूचि में हिंमाशु गुप्ता का नाम सम्मलित है।

DOPT के नियमानुसार अखिल भारतीय सेवा का जो अधिकारी कैडर ट्रांसफर के अंतर्गत किसी राज्य में स्थानांतरित किया जाता है तो उसका नाम उस राज्य के पदक्रम सूची में वरिष्ठता क्रम में अपने बैच में अंतिम स्थान पर प्रविष्ट किया जाता है। लेकिन प्रदेश में हालिया संपन्न हुई डीपीसी में इस वरिष्ठता क्रम और नियम के अनुसार एसआरपी कल्लूरी का नाम डीजी पद के लिए दर्ज नहीं किया गया था। बल्कि उनके स्थान पर हिमांशु गुप्ता बाजी मारने में कामयाब रहे। 

शिकायत में गृह विभाग की प्रक्रियाओं पर भी सवाल उठाये गए है। यह भी बताया जाता है कि केंद्रीय न्यायिक अभिकरण द्वारा दिनांक 30.04.2024 को 1994 बैच के आईपीएस गुरजिंदर पाल सिंह (जीपी सिंह) के अनिवार्य सेवा निर्वित आदेश को अदालत ने अपास्त कर दिया था। पीड़ित जीपी सिंह के समस्त परिणामी लाभ सहित सेवा में वापस बहाली के आदेश अदालत द्वारा दिया गया था। इस अदालती फैसले को आश्चर्यजनक ढंग से राज्य सरकार ने चुनौती दी थी। जून 2024 के अंतिम सप्ताह में छत्तीसगढ़ शासन द्वारा डीजी के रिक्त पदों पर पदोन्नति की कार्रवाही की गई, तब न्यायालय के आदेश परिपालन में नियमानुसार जीपी सिंह की पदोन्नति हेतु लिफाफा सील कर डीजी का एक पद आरक्षित रखा जाना चाहिए था ? लेकिन ऐसे महत्वपूर्ण तथ्यों को भी डीपीसी ने नजरअंदाज कर दिया था।

सूत्र तस्दीक करते है कि मौके का लाभ उठाने के लिए गृह विभाग के तत्कालीन अवर सचिव मनोज श्रीवास्तव ने गलत जानकारी सौंप कर डीपीसी को गुमराह किया था। जबकि वरिष्ठता क्रम में हिमांशु से ऊपर होने के बावजूद जीपी सिंह को दरकिनार कर दिया गया। जानकारी के मुताबिक माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश के परिपालन में 20.12.2024 को समस्त परिणामी लाभ सहित अपनी सेवा में जीपी सिंह उपस्थित हुए थे।

बताया जाता है कि तत्कालीन पुलिस महानिदेशक अशोक जुनेजा के सेवानिवृत्ति के बाद 5.2.2025 को डीजी का एक पद रिक्त होने पर फरवरी 2025 के प्रथम सप्ताह में रिव्यूह डीपीसी आयोजित की गई थी। लेकिन इस बैठक में एक बार फिर डीपीसी का रुख नियम कायदों के पालन के उल्लंघन के दायरे में नजर आया था। नियमों के तहत जीपी सिंह की पदोन्नति हेतु 2.7.2024 से जिस पद को आरक्षित रखा जाना था, उसमें 5.2.2025 को हिमांशु गुप्ता की पदोन्नति की अनुशंसा कर दी गई। मामला संज्ञान में आने के बावजूद प्रभावशाली अधिकारियों ने 2.7.2024 को षड्यंत्र पूर्वक पदोन्नति दर्शाते हुए लोक सेवा आयोग को पुनः प्रस्ताव भेज दिया। मामला तूल पकड़ चूका है। 

सूत्र तस्दीक करते है कि एक अधिकारी को डीजी पद पर पदोन्नत करने के लिए डीपीसी ने गंभीर आपराधिक खामी बरती थी। डीजी के पद पर एक वरिष्ठ आईपीएस की पदोन्नति के लिए उसने सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के तहत गठित विशाखा कमेटी की रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया था। बताते है कि इस रिपोर्ट को ख़ारिज (फाइल) कर डीपीसी में शामिल तत्कालीन अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के सामने भी कड़ी चुनौती पेश कर दी है।

सवाल उठ रहा है कि क्या महिला उत्पीड़न से जुड़ी विशाखा कमेटी की रिपोर्ट को राज्य सरकार या उसका कोई अधिकारी फाइल या खात्मा कर सकता है। लेकिन प्रदेश में एक नहीं बल्कि कई प्रकरणों में लीक से हट कर लिए जा रहे कई फैसले संविधान को मुँह चिढ़ा रहे है।

सूत्र तस्दीक करते है कि सचिवालय और पुलिस मुख्यालय स्तर पर इस त्रुटि को सुधारने के कोई ठोस प्रयास नहीं होने के चलते मामला पीएमओ और केंद्रीय गृह मंत्रालय में शिकायत के पिटारे के रूप में भेज दिया गया है। डीजी पद के लिए आयोजित की गई डीपीसी में शामिल अधिकारियों की मंशा और कार्यप्रणाली से जुड़ी एक शिकायत में ADG हिमांशु गुप्ता समेत अन्य अधिकारियों की डीजी के रूप में पदोन्नति को दूषित-षड्यंत्र करार देते हुए यूपीएससी को भी भ्रामक एवं गलत जानकारी भेजे जाने के आरोप लगाया गया है। उनकी नियुक्ति को नियमविरुद्ध पदोन्नति करार देते हुए नए सिरे से डीपीसी गठित किये जाने की मांग भी की गई है। 

पीड़ित पक्ष न्याय की गुहार लगा रहा है। यह भी बताते है कि त्रुटि-खामी उजागर होने के महीनों बाद भी राज्य सरकार स्तर पर वैधानिक कदम नहीं उठाने के चलते यह प्रकरण भी बतौर याचिका, अदालत की दहलीज तक पहुंच गया है। इधर प्रदेश के वन एवं जलवायु विभाग की कमान भी वरिष्ठ आईएफएस अधिकारियों के बजाय जूनियर अधिकारी श्रीनिवास राव को सौंपने से प्रदेश की वन और पर्यावरण विभाग की कई गतिविधियां भ्रष्टाचार की भेट चढ़ गई है।

कई वरिष्ठ अधिकारी अपनी पदोन्नति को लेकर हाथ-पैर मार रहे है। सूत्र तस्दीक करते है कि PCCF के पद पर लगभग आधा दर्जन अधिकारियों की पदोन्नति को कैबिनेट में हरी झंडी दिए हफ़्तों बीत गए है। लेकिन पदोन्नत अधिकारियों का नियुक्ति आदेश मंत्रालय में धूल खाते रही है।

आखिरकार लंबे इंतजार के बाद पीसीसीएफ अधिकारियों की पदोन्नति सूची आज जारी कर दी गई। अब मूर्ख दिवस के दिन ऐसी खुशख़बरी अधिकारियों के भी गले नहीं उतर रही है।विभागीय प्रमुख सचिव साल में कई बार दुबई सैर-सपाटे में बताई जाती है। इसके चलते भी वन एवं जलवायु विभाग के कई महत्वपूर्ण फैसले अधर में लटके है।