नई दिल्ली. संयुक्त राज्य अमेरिका इस वक्त बेहद खराब आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. मंदी की आशंका के बीच अब देश की कर्ज लेने की सीमा भी पार हो चुकी है. बॉन्ड्स के जरिए उठाए गए कर्ज और अन्य बिलों के भुगतान के लिए अमेरिका के पास पर्याप्त राशि नहीं है. यूएस की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने कहा है कि देश के पास 5 जून तक का समय है उसके बाद अमेरिका डिफॉल्टर हो जाएगा. लेकिन डिफॉल्टर होने का मतलब क्या है. अगर अमेरिका कर्ज नहीं चुका पाया तो क्या होगा. गौरतलब है कि अमेरिका पर फिलहाल 31 लाख करोड़ डॉलर का कर्ज है.
मान लीजिए कि एक व्यक्ति ने बैंक से घर खरीदने के लिए लोन लिया. उसने घर खरीदा, कुछ समय तक किस्त चुकाई लेकिन फिर बैंक को पैसा देना बंद कर दिया. शख्स ने कहा कि उसके पास कर्ज चुकाने के लिए धन है ही नहीं. ऐसी स्थिति में बैंक घर को जब्त करके नीलाम कर देगा. इससे जो पैसा आएगा उससे वह अपने कर्ज की भरपाई करेगा. अब सवाल उठता है कि क्या अमेरिका की भी संपत्ति जब्त होगी. जवाब है नहीं, इस उदाहरण का शुरुआती हिस्सा अमेरिका में चल रहे संकट से बिलकुल मेल खाता है लेकिन संपत्ति नीलाम होने वाला नहीं.
तो फिर होगा क्या?
अमेरिका इसलिए इतना कर्ज उठा पाता है क्योंकि लोगों को उसकी करेंसी और अर्थव्यवस्था पर भरोसा है. अगर यूएस अपने लोन पर डिफॉल्ट करता है तो सबसे पहले ये भरोसा टूटेगा. लोग डॉलर में पैसा लगाने की बजाय उसे निकालना शुरू कर देंगे. इससे डॉलर की वैल्यू तेजी से नीचे गिरेगी. इसे करेंसी का डीवैल्यूएशन कहते हैं. ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान और श्रीलंका में हुआ. अमेरिकी डॉलर की वैल्यू नीचे जाने से वहां चीजों के दाम आसमान छूएंगे. इसकी भरपाई के लिए संभव है कि अमेरिका और करेंसी छापे. जैसा अभी अर्जेंटीना कर रहा है और श्रीलंका ने पहले किया था. नए करेंसी नोट छापने से महंगाई और तेजी से बढ़ेगी. अंतत: अर्थव्यवस्था पूरी तरह धाराशायी हो जाएगी.
और क्या होगा?
चूंकि अब अमेरिकी डॉलर या अर्थव्यवस्था पर लोगों का भरासो कम हो जाएगा तो यूएस के लिए बॉन्ड बेचकर अपने लिए कर्ज जुटा पाना बहुत मुश्किल हो जाएगा. बॉन्ड का इस्तेमाल सरकार और प्राइवेट कंपनियां दोनों ही फंड जुटाने के लिए करती हैं. लेकिन बॉन्ड बिकना बंद होने से इस फंडिंग पर असर होगा. बहुत से सारे विकास के कार्य रुक जाएंगे. कंपनियों के पास फंड की कमी होगी जिसकी भरपाई के लिए और छंटनियां की जाएंगी. स्टार्टअप्स जो फंडिंग की तलाश कर रहे हैं उन पर तगड़ी चोट होगी. इससे बाकी दुनिया पर भी असर होगा. दुनिया का करीब 60 फीसदी करेंसी रिजर्व डॉलर में है. अगर डॉलर की वैल्यू गिरती है तो इन रिजर्व में रखी रकम की कीमत भी तेजी से नीचे आएगी और देशों की परचेसिंग पावर या खरीदने की शक्ति बहुत घट जाएगी. इन रिजर्व से ही किसी देश की करेंसी को भी सपोर्ट मिलता है. इस सूरत में उस देश की खुद की करेंसी की वैल्यू पर भी असर होगा.
अभी क्या है स्थिति?
ताजा जानकारी के अनुसार, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और हाउस स्पीकर केविन मैक्कार्थी के बीच कर्ज की सीमा को बढ़ाने को लेकर एक सहमति बनी है. संभव है कि अमेरिकी सरकार डिफॉल्ट करने से पहले 3.4 लाख करोड़ डॉलर तक डेट सीलिंग को बढ़ा ले. हालांकि, मैक्कार्थी ने इसके साथ कई शर्तें रख दी हैं. इसमें कई खर्चों पर कैप लगा दिया गया है. इसके अलावा गरीबों के लिए कुछ योजनाओं पर काम करने संबंधी शर्तें भी लगाई गई हैं.
भारत के हाथ में मसाल
दुनियाभर में विभिन्न देशों की स्थिति अमेरिका या इससे भी बुरी हो गई है. इनमें से अधिकांश देश विकसित हैं. जर्मनी औपचारिक रूप से मंदी की चपेट में आ चुका है. यूके तेजी से मंदी की ओर बढ़ रहा है. अमेरिका की स्थिति से आप वाकिफ हो ही चुके हैं. अर्जेंटीना में महंगाई आसमान छू रही है. ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर समेत कई अन्य देश मंदी के खौफ में हैं. इन सब के बीच अगर कोई देश ऐसा है जो मंदी से कोसों दूर है तो वह भारत है. ब्लूमबर्ग के शोध के मुताबिक, भारत के मंदी में जाने की आशंका 0 फीसदी है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के इस अंधेरे में भारत एक चमकता सितारा बनकर उभरा है.