
“जो दूसरों के दिल बचाने के लिए जीते हैं, वही अक्सर अपने दिल की अनदेखी कर बैठते हैं.” यह वाक्य चेन्नई के युवा कार्डियक सर्जन डॉ. ग्रैडलिन रॉय की असमय मौत के बाद लोगों के मन में गूंज रहा है। अस्पताल में राउंड के दौरान अचानक हार्ट अटैक आने से उनकी मृत्यु हो गई। आधुनिकतम चिकित्सा सुविधाओं और तत्काल इलाज के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका।
न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर कुमार ने सोशल मीडिया पर बताया कि रॉय अचानक गिर पड़े थे। साथी डॉक्टरों ने CPR, इमरजेंसी एंजियोप्लास्टी, स्टेंटिंग, इन्ट्रा-ऑर्टिक बैलून पंप और यहां तक कि ECMO तक का सहारा लिया। लेकिन लेफ्ट मेन आर्टरी में 100% ब्लॉकेज के कारण सब प्रयास विफल रहे। उनकी मौत ने पूरे मेडिकल समुदाय को झकझोर दिया।
डॉक्टरों में हार्ट अटैक का खतरा क्यों ज्यादा
डॉ. कुमार ने इसे “वेक-अप कॉल” बताया। उनके अनुसार लंबे कार्य घंटे, अनियमित दिनचर्या, अस्वस्थ खानपान, तनाव, नींद की कमी और प्रिवेंटिव हेल्थ चेकअप की अनदेखी, डॉक्टरों को हार्ट अटैक के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनाती है। उनका कहना है, “डॉक्टरों को भी अपने दिल की सुरक्षा करनी चाहिए और जरूरत पड़ने पर ‘ना’ कहना सीखना चाहिए।”
नींद और कार्य-परिस्थितियों पर सवाल
सोशल मीडिया पर कई यूजर्स ने चिंता जताई कि डॉक्टरों को बिना पर्याप्त आराम के काम करना पड़ता है। एक यूजर ने लिखा, “पायलट्स को आराम जरूरी है, तो डॉक्टरों को क्यों नहीं?” डॉ. कुमार ने भी माना कि नींद की कमी से डॉक्टर गलत निदान कर सकते हैं, लेकिन कई बार जूनियर डॉक्टरों के पास विकल्प नहीं होता।
समाज के लिए सबक
यह घटना सिर्फ डॉक्टरों ही नहीं, बल्कि हर शहरी इंसान के लिए चेतावनी है। तनाव, असंतुलित जीवनशैली और नींद की कमी हार्ट अटैक का बड़ा कारण बन रही है। डॉ. रॉय की असमय मृत्यु हमें याद दिलाती है कि स्वस्थ दिनचर्या और पर्याप्त आराम भी जीवन बचाने में उतने ही जरूरी हैं जितना आधुनिक इलाज।