बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भिलाई में गरीबों की जमीन हड़पने में अपने पद और प्रभाव का बेजा इस्तेमाल किया था। इस दौरान दुर्ग के तत्कालीन कलेक्टर और EOW में पदस्थ जांच अधिकारियों ने पूर्व मुख्यमंत्री को बचाने के लिए झूठे और अनाधिकृत तथ्य पेश किये थे। ताकि अदालती कार्यवाही प्रभावित हो सके। इस मामले में बगैर कोई ठोस जांच-पड़ताल के राज्य सरकार के विधि विभाग ने सिर्फ खानापूर्ति कर ऐसे तथ्य पेश किये थे, जिससे प्रकरण का खात्मा ही हो जाये। प्रशासनिक सूत्रों के मुताबिक अपने पद और प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने भिलाई में दर्ज उस FIR का ही खात्मा करने का फरमान जारी किया था, जिसके चलते तत्कालीन मुख्यमंत्री के सामने जेल की हवा खाने का खतरा मंडरा रहा था। बताया जाता है कि इस मामले में जांच भटकाने और मामले को रफा-दफा करने के लिए शासन-प्रशासन ने ऐसी रिपोर्ट पेश की थी, जिससे प्रकरण के खात्मे पर अदालत की मुहर लग सके।
जानकारी के मुताबिक वर्ष 2018 में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आसीन होते ही बघेल ने सबसे पहले उनके खिलाफ दर्ज प्रकरण का खात्मा किया। इसके बाद आम जनता के लिए कांग्रेस की न्याय यात्रा निकाली थी। राजनीति के जानकारों के मुताबिक इस यात्रा से आम जनता को तो न्याय सुलभ नहीं हो पाया अलबत्ता पूर्व मुख्यमंत्री के काले कारनामों से छत्तीसगढ़ शासन की छवि और साख तार-तार हुई थी।
एक बार फिर यह मामला सुर्ख़ियों में है। याचिकाकर्ता राज्य की विष्णुदेव साय सरकार से उच्च स्तरीय जांच की मांग करते हुए मुख्य आरोपी को उसके असल ठिकाने भेजने की मांग कर रहे है। जानकारी के मुताबिक गरीबों की जमीन हड़पने के इस मामले में कई गंभीर आरोप लगाते हुए याचिकाकर्ता अशोक शर्मा ने हाई कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की थी। हाई कोर्ट ने याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए आर्थिक अपराध अन्वेषण इकाई (ईओडब्ल्यू) व राज्य शासन को नोटिस जारी कर दस्तावेज पेश करने के निर्देश दिए थे।
याचिकाकर्ता ने पुनर्विचार याचिका में कहा था कि वर्ष 1995 में भूपेश बघेल पाटन विधानसभा क्षेत्र के विधायक निर्वाचित हुए थे। उस वक्त अपने पद व राजनीतिक प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए भिलाई अरपा साडा में अपनी पत्नी व मां के नाम जमीन आवंटन के लिए आवेदन लगाया था। अरपा साडा के इंजीनियरों ने आवेदन पर कार्रवाई करते हुए ईडब्ल्यूएस के लिए आरक्षित दो भूखंड को चिन्हांकित किया और चार-चार हजार स्क्वेयर फीट जमीन का आवंटन मुख्यमंत्री बघेल की मां व पत्नी के नाम पर कर दिया। याचिकाकर्ता ने दलील दी थी कि नियमों के तहत यह जमीन गरीबों के लिए आरक्षित की गई थी। याचिका के अनुसार जमीन आवंटन की जानकारी के बाद ईओडब्ल्यू में अशोक शर्मा व विजय बघेल (अब भाजपा सांसद) ने शिकायत दर्ज कराई थी। जांच पड़ताल के बाद शिकायत को सही पाते हुए आवेदनकर्ताओं के विरुद्ध ईओडब्ल्यू रायपुर ने एफआईआर दर्ज किया था।
याचिकाकर्ता ने कहा कि वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य की सत्ता पर काबिज हो गई और बघेल सीएम बन गए थे। मुख्यमंत्री बनने के बाद ईओडब्ल्यू ने एफआईआर को रद्द करते हुए मामले की जांच बंद कर दी थी। यहाँ तक की EOW के तत्कालीन जांच अधिकारियों ने निचली अदालत में क्लोजर रिपोर्ट पेश कर दिया था। ईओडब्ल्यू द्वारा पेश क्लोजर रिपोर्ट पर विशेष अदालत में सुनवाई हुई और रिपोर्ट पर सहमति जताते हुए क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था।
बताया जाता है कि विशेष अदालत के फैसले और ईडब्ल्यूएस के क्लोजर रिपोर्ट को चुनौती देते हुए अशोक की याचिका पर जस्टिस आरसीएस सामंत की सिंगल बेंच में सुनवाई जारी रही। सूत्रों के मुताबिक इस याचिका पर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए तत्कालीन EOW प्रमुख आईजी शेख आरिफ ने ना केवल पूर्व मुख्यमंत्री को बचाने के लिए अपने पद और प्रभाव का दुरुपयोग किया था, बल्कि अदालत में EOW की ओर से गैर-जरुरी तथ्य पेश किये थे। उनकी कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में बताई जाती है।
यह भी बताया जा रहा है कि EOW ने प्रदेश के विधि विभाग को भी गुमराह कर पूर्व मुख्यमंत्री के बचाव में अनाधिकृत तथ्य पेश किये थे। इस दौरान बगैर ठोस और निष्पक्ष जांच के दुर्ग के तत्कालीन कलेक्टर के मार्फ़त आधी-अधूरी रिपोर्ट अदालत को सौंपी गई थी। ईओडब्ल्यू में दर्ज प्रकरण में वर्ष 2017 में भूपे बघेल, उनकी माता और उनकी पत्नी के खिलाफ मामला दर्ज किया था। बघेल पर आरोप था कि जब वह विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के पदेन सदस्य थे तब उन्होंने दुर्ग जिले के भिलाई स्थित मानसरोवर हाउसिंग स्कीम में जमीन आवंटन को लेकर अनियमितता की थी।
ईओडब्ल्यू ने यह मामला दुर्ग जिले के सांसद और वरिष्ठ भाजपा नेता विजय बघेल तथा अन्य की शिकायत पर दर्ज किया था। अदालत में पेश खात्मा रिपोर्ट में बताया गया था कि बघेल के खिलाफ जमीन वितरण में किसी तरह की अनियमितता किया जाना साबित नहीं हुआ है। बहरहाल, राज्य में अब विष्णुदेव साय सरकार कांग्रेस शासन काल में अंजाम दिए गए भ्रष्टाचार और घोटालों को लेकर न्याय का रास्ता साफ कर रही है। ऐसे दौर में इस प्रकरण की बंद फाइल फिर खुलने के आसार है।